नई दिल्ली, (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली को समझने और पुनर्स्थापित करने के लिए हमें ग्रंथों और अनुभवों दोनों को समान महत्व देना होगा। वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आयोजित ‘भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर प्रथम वार्षिक शैक्षणिक सम्मेलन’ को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारतीय ग्रंथों के डिजिटलीकरण पर जोर देने के साथ ही यह भी कहा कि इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ज्ञान केवल पुस्तकों में सीमित नहीं होता बल्कि वह परंपराओं, समुदायों और पीढ़ियों से संचित अनुभवों में भी समाहित होता है। उन्होंने बल दिया कि शोध के क्षेत्र में संदर्भ और सजीवता से ही सच्चा ज्ञान उत्पन्न होता है, और इसके लिए ग्रंथों और व्यवहारिक अनुभव दोनों को बराबरी से शामिल करना जरूरी है।
भारतीय ग्रंथों का हो डिजिटलीकरण
धनखड़ ने भारतीय ग्रंथों विशेष रूप से संस्कृत, तमिल, पालि, प्राकृत जैसी क्लासिकल भाषाओं में उपलब्ध साहित्य के डिजिटलीकरण की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह सामग्री शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए सार्वभौमिक रूप से सुलभ होनी चाहिए। युवाओं को दर्शन, गणना, नृविज्ञान और तुलनात्मक अध्ययन जैसे विषयों में सशक्त प्रशिक्षण देने की भी आवश्यकता है।
राष्ट्र की असली शक्ति परंपराओं की गहराई में है
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की वैश्विक शक्ति के रूप में पहचान तभी टिकाऊ होगी जब वह बौद्धिक और सांस्कृतिक गरिमा के साथ खड़ी हो। राष्ट्र की असली शक्ति उसकी सोच की मौलिकता और परंपराओं की गहराई में होती है। उपराष्ट्रपति ने भारतीय विद्या परंपरा पर पड़े ऐतिहासिक व्यवधानों को भी रेखांकित किया। इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को क्षति पहुंचाई। ऋषियों की भूमि को बाबुओं की भूमि में बदल दिया गया। हमने चिंतन और दर्शन की परंपरा छोड़कर केवल रटना और अंक लाने की प्रवृत्ति अपनाई। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे प्राचीन संस्थान न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए बौद्धिक प्रेरणा का स्रोत थे।
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मानव मस्तिष्क के सबसे गहरे विचार भारत में
उपराष्ट्रपति ने संबोधन में मैक्समूलर का उद्धरण देते हुए कहा कि यदि यह पूछा जाए कि संसार में मानव मस्तिष्क ने सबसे गहरे विचार कहां किए, तो इसका उत्तर भारत होगा। आज जब विश्व संघर्षों और विभाजन से जूझ रहा है, तब भारतीय ज्ञान परंपरा जो आत्मा और जगत, कर्तव्य और परिणाम के बीच संबंधों पर विचार करती रही है एक समावेशी और दीर्घकालिक समाधान के रूप में फिर से प्रासंगिक हो गई है।
केंद्रीय मंत्री सोनोवाल समेत कई लोग रहे मौजूद
इस अवसर पर केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, जेएनयू की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित, आईकेएसएचए निदेशक प्रो. एम.एस. चैत्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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