अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत से मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक अब्बा ने अपनी छह साल की बच्ची को पैसों के लिए बेच दिया, जिससे 45 वर्षीय शख्स ने निकाह कर लिया। सोशल मीडिया पर बच्ची की दुल्हन बनी फोटो वायरल होने के बाद तालिबानी हुकूमत के खिलाफ लोगों में काफी आक्रोश फैल गया। अफगानी मीडिया के अनुसार, यह निकाह मरजाह जिले में हुआ था। जानकारी मिलने के बाद बच्ची के पिता और दूल्हे को गिरफ्तार कर लिया गया है। हालांकि, अभी तक आरोपी के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। बताया जा रहा है कि जिस शख्स से बच्ची का निकाह हुआ है उसकी पहले दो पत्नियां हैं। बच्ची से तीसरी शादी करने के लिए उसने उसके परिवार को पैसे दिए थे। मामला तूल पकड़ने के बाद तालिबान ने उस व्यक्ति को बच्ची को अपने घर ले जाने से रोक दिया और कहा कि उसे नौ साल की उम्र के बाद ही उसके शौहर के घर पर भेजा जा सकता है।
तालिबानी शासन में बाल विवाह में 25 फीसदी बढ़ोतरी
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर फिर से काबिज होने के बाद बाल विवाह में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। यह सब अफगानिस्तान में बढ़ती गरीबी, महिलाओं व लड़कियों पर कड़े प्रतिबंध खासकर महिला शिक्षा और रोजगार पर प्रतिबंध के कारण है। संयुक्त राष्ट्र महिला ने साल 2024 में एक रिपोर्ट में बताया था कि तालिबान द्वारा लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने से अफगानिस्तान में बाल विवाह में 25 प्रतिशत और कम उम्र में बच्चे पैदा करने की दर में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं यूनिसेफ के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा बाल वधु अफगानिस्तान में ही हैं। ध्यान दें कि अफगानिस्तान में निकाह के लिए कोई कानूनी न्यूनतम आयु नहीं है।
बाल विवाह लड़कियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा
मानवाधिकार संगठन लगातार अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग करते रहे हैं और इस बात पर जोर देते रहे हैं कि बाल विवाह लड़कियों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। मानवाधिकार संगठन के अनुसार कम उम्र में जबरन शादी के लिए मजबूर की गई लड़कियों को अक्सर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। समय से पहले गर्भधारण के कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ जाते हैं। यही नहीं इस दौरान उनके साथ घरेलू हिंसा भी होती है, जिसे वे चुपचाप सहती रहती हैं। बाल विवाह न केवल मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि अफगानिस्तान की दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को भी कमजोर करता है।
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