साल था 1949, भारत ने अभी-अभी स्वतंत्रता की हवा महसूस की थी। संविधान सभा में लोकतंत्र का नया खाका खींचा जा रहा था। एक ओर देश की नियति लिखी जा रही थी, और दूसरी ओर कुछ युवाओं ने एक विचार का बीज बोया – ऐसा विचार जो छात्र राजनीति को राष्ट्र निर्माण से जोड़ दे। यही वह क्षण था जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जन्म लिया।
इस परिषद की बुनियाद केवल छात्रहित तक सीमित नहीं थी। इसकी आत्मा भारत की मिट्टी, उसकी संस्कृति, उसकी अस्मिता और उसकी भावी पीढ़ियों से जुड़ी थी। पहले ही कदम पर इस संगठन ने राष्ट्रभाषा हिंदी और ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत घोषित करने की मांग रखी – एक साहसिक पहल, जो उस समय यह संकेत दे रही थी कि यह संगठन शिक्षा से आगे जाकर राष्ट्रीय चेतना का वाहक बनने वाला है।
समय बदला, चुनौतियाँ बदलीं, पर उद्देश्य नहीं बदला
साल दर साल बीतते गए। पीढ़ियाँ बदलीं। लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की दिशा वही रही – भारत के लिए समर्पित, छात्रों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण। आज जब देश के परिसरों में अवसाद, तनाव और निराशा की गूंज सुनाई देती है, तब ABVP की आवाज युवाओं को प्रेरित करती है – “तुम्हारा जीवन व्यर्थ नहीं, यह भारत के पुनरुत्थान का आधार है।”
जहाँ शिक्षा, वहाँ संवाद : जहाँ छात्र, वहाँ सार्थकता
अभाविप ने शिक्षा को केवल पुस्तकों की सीमाओं से नहीं बाँधा। उसने स्वाध्याय मंडलों के माध्यम से चिंतन को प्रोत्साहित किया, राष्ट्रीय कला मंच के ज़रिए रचनात्मकता को दिशा दी, और कुटुंब प्रबोधन द्वारा छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश से जोड़ने का प्रयास किया।
अभाविप का मानना रहा – यदि शिक्षक और विद्यार्थी के बीच समन्वय हो जाए, संवाद हो जाए, तो परिसर संस्कार का केंद्र बन जाता है।
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यही कारण है कि ABVP सिर्फ शिक्षा की नहीं, शिक्षा संस्कृति की बात करती है। एक ऐसी संस्कृति जिसमें छात्र केवल नौकरी पाने की दौड़ में नहीं, बल्कि अपने भीतर राष्ट्र के लिए कुछ करने की प्रेरणा लेकर उठता है।
एक भारत, श्रेष्ठ भारत की जीवंत कल्पना
आज जब पूर्वोत्तर भारत की युवा पीढ़ी देश के अन्य हिस्सों से खुद को अलग-थलग महसूस करती है, तब ABVP सील प्रकल्प के माध्यम से उन्हें भारत के कोने-कोने से जोड़ती है। यह केवल एक प्रकल्प नहीं, एक भारत श्रेष्ठ भारत की कल्पना को साकार करने का माध्यम है।
आने वाले समय की कल्पना
एबीवीपी जानती है कि आने वाला समय चुनौतियों से भरा होगा। पश्चिमी सोच के प्रभाव, मानसिक अस्थिरता, सांस्कृतिक विच्छेदन और शिक्षा की गिरती गुणवत्ता – यह सब युवा पीढ़ी के सामने विकराल रूप में उपस्थित हैं। पर अभाविप का संकल्प है अडिग। वह छात्रों में नेतृत्व क्षमता को जगाना चाहती है, भारतीय ज्ञान परंपरा को फिर से शिक्षा के केंद्र में लाना चाहती है, और विकास की उस अवधारणा को स्थापित करना चाहती है जो केवल भौतिक न होकर टिकाऊ, नैतिक और राष्ट्रोन्मुखी हो।
एक दीप से अनेक दीप जलते हैं
आज देश के अलग-अलग कोनों में, प्रशासन, शिक्षा, विज्ञान, कला, साहित्य, सेवा – हर क्षेत्र में ABVP के पूर्व कार्यकर्ता अपनी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने नारा नहीं दिया, उन्होंने कार्य किया। जब कई छात्र संगठन परिसरों में केवल राजनीतिक बहसों में उलझकर निष्प्रभावी हो रहे हैं, तब ABVP अपनी सकारात्मक कार्यपद्धति से युवाओं के बीच विश्वास और दिशा का प्रतीक बनकर उभर रही है।
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77 वर्षों की यह यात्रा केवल इतिहास नहीं, यह भविष्य की भूमिका है। एक ऐसी भूमिका, जिसमें छात्र आंदोलन केवल मांग नहीं करता, बल्कि निर्माण करता है – विचारों का, मूल्यों का, और भारत के उज्ज्वल भविष्य का।
इसलिए, जब अगली बार आप किसी विद्यार्थी को परिसर में या रचनात्मक गोष्ठी में भाग लेते देखें – तो समझिए, वह केवल छात्र नहीं, भारत के पुनरुत्थान की कहानी का वाहक है।
लेखक – राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद सदस्य एवं केंद्रीय मीडिया टोली सदस्य, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
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