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अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के अंतर्गत महिलाओं पर हुए अत्याचारों और मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर गंभीर रुख़ अपनाया है। साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से महिलाओं के अधिकारों पर जो सुनियोजित हमला किया गया, उसे ICC ने उसे जानबूझकर किया गया ‘उत्पीड़न’ माना है। बंदूकधारी तालिबान हुकूमत के बड़े बड़े नेताओं, जिनमें शीर्ष नेता हैबतुल्ला अखुंदजदा शामिल है, पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में वारंट जारी किए गए हैं। तालिबान ने इस बार की अपनी हुकूमत में भी अपनी पिछली हुकूमत की तरह शरिया कानून का हवाला देते हुए महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया हुआ है। उन पर ऐसी पाबंदियां लगाई हुई हैं जो उस देश को पाषाणयुग की ओर धकेल रही हैं।
तालिबान की सोच कट्टर इस्लामी शरिया के हिसाब से चलती है। इसका सबसे बुरा असर उस देश की महिलाओं पर पड़ा है। तालिबान ने महिलाओं के साथ जानवर से भी बदतर सलूक करने को ‘इस्लामी कायदा’ ठहराया है और इस पर किसी तरह का संकोच उनके मन में नहीं है। तालिबान राज में अफगान महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों और उन पर लगाए गए प्रतिबंधों की बात करें तो सबसे पहले है लड़कियों की उच्च शिक्षा पर रोक। लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने से रोक दिया गया है। विश्वविद्यालयों में भी महिलाओं की भर्ती रोकी गई है।
इसके साथ ही सरकारी दफ्तरों और गैर-सरकारी संगठनों में महिलाओं के कार्य करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। महिलाओं को बिना पुरुष संरक्षक (महरम) के घर से निकलने की अनुमति नहीं है। उनके लिए सार्वजनिक स्थानों पर खुद को पूरी तरह से बुर्के में ढककर रखना अनिवार्य किया गया है, चेहरा भी ढका होना जरूरी है। आज अफगान महिलाएं खेल, कला, संगीत या सार्वजनिक समारोहों में भाग नहीं ले सकतीं। ये सब चीजें ‘इस्लाम में हराम’ बताकर तालिबान ने कड़ा प्रतिबंध लगाया हुआ है।
अब बात ICC की। इस संस्था का गठन 2002 में हुआ था और इसका उद्देश्य है, युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार के मामलों की सुनवाई करना। हालांकि अफगानिस्तान रोम में तय हुए इसके मसौदे पर हस्ताक्षर करने वाला देश है, लेकिन तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी तक आधिकारिक मान्यता नहीं मिली है। इसके बावजूद, ICC ने यह मानते हुए इसके विरुद्ध उक्त कार्रवाई की है कि अफगान महिलाओं के इस दमन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
ICC जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा उठाए गए इस कदम पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने में आ रही हैं। जैस, मानवाधिकार के समर्थकों द्वारा इस कदम का स्वागत किया गया है। संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल और तमाम महिला अधिकार संगठनों ने इसे ‘न्याय की दिशा में एक पहल’ कहा है।
लेकिन दूसरी ओर कई देश, विशेषकर जो अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के पक्षधर हैं, वे इस कदम पर ‘सावधानीपूर्वक संतुलन’ बनाकर चलना आवश्यक मानते हैं। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि इन वारंट के चलते तालिबान के बड़े नेताओं को न्याय के कटघरे तक लाया जा सकेगा या नहीं।
बहरहाल, ICC का यह कदम केवल क़ानूनी नहीं बल्कि नैतिक संदेश भी दे रहा है और वह यह कि सत्ता चाहे किसी के भी हाथों में हो, जब वह नागरिकों, विशेषतः महिलाओं पर अन्याय करेगी, तो वह वैश्विक जवाबदेही से बच नहीं सकती। विशेषज्ञ मानते हैं कि ICC की इस कार्रवाई से भले ही तालिबान की नीति में तत्काल बदलाव न आए, लेकिन यह कार्रवाई दुनिया भर में अफगान महिलाओं की मार्मिक पुकार तो पहुंचाती ही है। शायद, यह भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने में भूमिका निभाए।
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