गुरु पूर्णिमा विशेष : भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाने वाली अद्भुत गुरु-शिष्य परम्परा
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

गुरु पूर्णिमा विशेष : भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाने वाली अद्भुत गुरु-शिष्य परम्परा

गुरु पूर्णिमा भारत की सनातन गुरु-शिष्य परंपरा का गौरवगान है। जानिए वेदव्यास, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस और संतों की परंपरा में गुरु का दिव्य स्वरूप और संस्कृति पर उनका प्रभाव।

by पूनम नेगी
Jul 8, 2025, 07:10 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

विश्वमंच से भारत के सनातन ज्ञान-विज्ञान का गौरवगान करने वाले युगपुरुष स्वामी विवेकानंद कहते हैं, “हमें गर्व है कि हम अनंत गौरव की स्वामिनी भारतीय संस्कृति के वंशज हैं जिसके महान गुरुओं ने सदैव दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित किया। समय की प्रचण्ड धाराओं में जहां यूनान, रोम, सीरीया, बेबीलोन जैसी तमाम प्राचीन संस्कृतियां बिखरकर अपना अस्तित्व खो बैठीं, वहीं भारत की संस्कृति इन प्रवाहों के समक्ष चट्टान के समान अविचल बनी रही; क्यूंकि हमारी भारतभूमि को आत्मज्ञान सम्पन्न दिव्य गुरुओं का सशक्त मार्गदर्शन सतत मिलता रहा। वैदिक युग में जब हमारे महान राष्ट्र ने सर्वतोमुखी उन्नति के चरम को छुआ था तो इसका मूल आधार थे इस आध्यात्मिक धरा के तप:पूत आचार्य; जिनके आत्मज्ञान की प्रखर ऊर्जा ने न सिर्फ समूचे राष्ट्रजीवन को प्रकाशमान किया अपितु अपने सुपात्र शिष्यों के माध्यम से इस दिव्य आत्म विद्या के सतत प्रवाहमान बने रहने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की थी।‘’

व्यक्ति नहीं चैतन्य सत्ता है ‘गुरु’  

हमारी सनातन संस्कृति में “अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं” कह कर गुरु की अभ्यर्थना एक चिरंतन सत्ता के रूप में की गयी है। ज्ञानांजन-शलाका से अज्ञान तिमिर को दूर करने की क्षमता केवल सद्गगुरु में होती है। इस कारण भारतीय दर्शन में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। यही वजह है कि  इस पुण्य भूमि पर पर जब-जब भगवान ने अवतार लिये तो उन्होंने भी गुरु का ही आश्रय लिया। संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ‘’रामचरितमानस’’ में लिखते हैं- गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।। अर्थात बिना गुरु के कोई भी व्यक्ति भवसागर (संसार के दुखों और जन्म-मृत्यु के चक्र) को पार नहीं कर सकता, भले ही वह ब्रह्मा (सृष्टि के रचयिता) या शंकर (संहार के देवता) के समान ज्ञानी क्यों न हो।

भारतीय ज्ञान परंपरा में मास और ऋतुचक्र : हमारी संस्कृति, हमारी पहचान

भगवद्गीता की टीका ‘भावार्थ दीपिका’ में संत ज्ञानेश्वर ने लिखा है कि सद्गगुरु में सामान्य जीव को ईश्वरतुल्य बना देने की अद्भुत सामार्थ्य होती है। इसी कारण हम गुरु को ऐसी सर्वोच्च सत्ता मानते हैं; जो हर सम-विषम परिस्थति में हमारा मार्गदर्शन करने में पूर्ण सक्षम होती है। गुरु शब्द का महत्व इसके अक्षरों में ही निहित है। देववाणी संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ का अर्थ हटाने वाला। यानी जो अज्ञान के अंधकार से मुक्ति दिलाये वह ही गुरु है। काबिलेगौर हो कि भारत की सनातन संस्कृति में “गुरु” को ‘‘व्यक्ति’’ नहीं अपितु ‘‘विचार’’ की संज्ञा दी गयी है। वैदिक मान्यता के मुताबिक ‘‘गुरु’’ वह होता है जो स्वयं में पूर्ण हो। पूर्ण गुरु ही शिष्य को पूर्णत्व की प्राप्ति करवा सकता है तथा उसके अंदर के संस्कारों का परिमार्जन, गुणों का संवर्धन एवं दुर्भावनाओं का विनाश कर सकता है।

विश्व मानव का सशक्त मार्गदर्शन करने वाली महान परम्परा

हमारी भारतीय संस्कृति के सनातन जीवन मूल्यों का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष है यह गुरु-शिष्य परम्परा। वैदिक भारत के राष्ट्र जीवन में सद्ज्ञान व सुसंस्कारों का बीजारोपण करने वाली इसी गुरु-शिष्य परम्परा ने हमारे भारत को दुनिया का सर्वाधिक महान राष्ट्र बनाकर ‘‘विश्वगुरु’’ व ‘‘सोने की चिड़िया’’ की पदवी से विभूषित किया था। भारत को “जगद्गुरु” की उपमा इस कारण ही दी गयी थी कि उसने न केवल राष्ट्र जीवन अपितु विश्व मानव का सशक्त मार्गदर्शन किया था। भारत की गुरु-शिष्य परम्परा की महत्ता को उजागर करता पाश्चात्य दार्शनिक शोपेनहॉवर का यह कथन वाकई काबिलेगौर है कि विश्व में यदि कोई सर्वाधिक प्रभावशाली सांस्कृतिक क्रांति हुई है तो केवल उपनिषदों की भूमि-भारत से। गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष है।

सनातन संस्कृति की आदर्श संरक्षिका और न्यायप्रिय शासिका: महारानी अहिल्याबाई होल्कर की गौरवगाथा

जिज्ञासु शिष्यों ने ज्ञानी गुरु के समीप बैठकर उनके प्रतिपादनों को क्रमबद्ध कर उपनिषदों के रूप में भारत को जो दिव्य धरोहर दी उसका आज भी कोई सानी नहीं है। यदि मुझसे पूछा जाए कि आकाश मंडल के नीचे कौन सी वह भूमि है, जहां के मानव ने अपने हृदय में दैवीय गुणों का पूर्ण विकास किया है तो मेरी उंगली भारत की ओर ही उठेगी। भारत के चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में भारत आए यूनान के राजदूत मैगस्थनीज ने अपने यात्रा वृत्रांत में लिखा है कि ‘‘सोने की चिड़िया’’ कहे जाने वाले भारत के व्यापारियों तक के ईमान की सौगंध खाई जाती थी। वे यह देख कर आश्चर्यचकित थे कि भारत में रात्रि में सोते समय भी कोई अपने मकान में ताला नहीं लगाता था। मकान के भीतर केवल चांद की सत्यनिष्ठ किरणें ही प्रवेश कर सकती थीं, कोई संदिग्ध व्यक्ति नहीं।

सनातन संस्कृति के गुरु समर्पित अनूठे शिष्य   

कठोपनिषद् में पंचाग्नि विद्या के रूप में व्याख्यायित यम-नचिकेता संवाद   भारतीय ज्ञान सम्पदा की अमूल्य निधि है। जरा विचार कीजिए! पिता के अन्याय का विरोध करने पर एक पांच साल का बालक नचिकेता क्रोध में भरे अहंकारी पिता द्वारा घर से निकाल दिया जाता है। पर वह झुकता नहीं और अपने प्रश्नों की जिज्ञासा शांत करने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के दरवाजे पर जा खड़ा होता है। तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहता है। अंतत: यमराज उसकी जिज्ञासा, पात्रता और दृढ़ता को परख कर गुरु रूप में उसे जीवन के तत्व का मूल ज्ञान देते हैं। इसी तरह परम गुरु श्री श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानन्द की अलौकिक प्रतिभा से तो आज समूची दुनिया चमत्कृत है; पर रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्यों में एक लाटू महाराज भी थे। निरे अपढ़- गँवार पर हृदय में गुरु  भक्ति गहरी थी। एक बार उन्होंने परमहंस देव से कहा- ठाकुर! मेरा कैसे होगा? ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा तेरे लिए मैं हूं न। तब से लाटू महाराज का नियम बन गया- अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम स्मरण। ठाकुर की आज्ञा उनके लिए सर्वस्व थी। इसी से उनके जीवन में ऐसे आश्चर्यजनक आध्यात्मिक परिवर्तन हुए कि स्वामी विवेकानन्द ने उनका नाम ही अद्भुतानन्द रख दिया।

यह  भारत की अमर धरोहरें: अतीत की थाती, भविष्य की विरासत, संस्कृति के शिखर पर भारत

ऐसे ही 15 करोड़ की संख्या वाले विराट गायत्री परिवार के संस्थापक- संरक्षक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवन भी अपने हिमालयवासी गुरु को समर्पण की अनूठी गाथा है। 15 वर्ष की आयु में पूजन कक्ष में एक प्रकाश पुंज के रूप में अपनी मार्गदर्शक सत्ता से प्रथम साक्षात्कार और उसी प्रथम मुलाकात में पूर्ण समर्पण और उनके निर्देशानुसार समूचे जीवन के लिए संकल्पबद्ध हो जाना कोई मामूली बात नहीं है। गाय के गोबर से निकले छंटाकभर जौ के आटे की रोटी व एक गिलास छाछ के 24 घंटे में एक बार के सूक्ष्म आहार पर 24 लक्ष गायत्री महामंत्र के 24 महापुरश्चरणों की अनुष्ठानपरक साधना के बल पर दैवीय पुरुषार्थ अर्जित कर समूचे विश्व में सद्ज्ञान का आलोक बिखेरने वाले ये महागुरु आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। 15 करोड़ की सदस्य संख्या वाला गायत्री मिशन आज जिस तरह समाज में सुसंस्कारिता की अलख जगा रहा है, उसके पीछे उनके परम गुरु की दिव्य चेतना आज भी सक्रिय है।

भारत की गुरु-शिष्य परंपरा की दिव्य श्रृंखला  

यदि हम भारतीय इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि अनेक महापुरुषों के व्यक्तित्व- कृतित्व के निर्माण में योग्य और तत्वदर्शी गुरुओं की सुदीर्घ श्रृंखला रही है। गोविंदपाद के शिष्य शंकराचार्य, शंकरानंद के शिष्य विद्यारण्य, कालूराम के शिष्य कीनाराम, जनार्दन पंत के शिष्य एकनाथ, गहिनीनाथ के शिष्य निवृत्तिनाथ, निवृत्तिनाथ के शिष्य ज्ञानेश्वर, स्वामी निगमानंद के शिष्य योगी अनिर्वाण, भगीरथ स्वामी के शिष्य तैलंग स्वामी, ईश्वरपुरी के शिष्य महाप्रभु चैतन्य, पूर्णानंद के शिष्य विरजानंद, विरजानंद के शिष्य दयानंद, रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद व उनकी शिष्या निवेदिता, प्राणनाथ महाप्रभु के शिष्य छत्रसाल, समर्थ रामदास के शिष्य शिवाजी, चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त, रामानंद के शिष्य कबीर, कबीर के शिष्य रैदास, दादू के शिष्य रज्जब, विशुद्धानंद के शिष्य गोपीनाथ कविराज, पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र तथा बंधुदत्त के शिष्य कुमारजीव, सर्वेश्वरानंद जी के शिष्य पं.श्रीराम शर्मा आचार्य। इन महान गुरुओं ने भारतीय संस्कृति की ज्ञान पताका समूचे विश्व में फहरायी।

व्यक्ति नहीं, तत्व पूजा

बीती सदी में हमारी गौरवशाली गुरु-शिष्य परंपरा में आने वाली अनेक  विसंगतियों को लक्षित कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के समय भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया था। इसके पीछे उनकी मूल मंशा यह थी कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार नहीं। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु रूप में इसी भगवा ध्वज को नमन करता है। यह भगवा ध्वज हमारे तेजस्वी राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का चिरन्तन प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का यह प्रतीक हमारी ज्ञान गामिनी वसुधा के प्रथप्रदर्शकों के त्याग, समर्पण व बलिदान का पर्याय है। उगते हुये सूर्य के समान इसका  भगवा रंग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा, पराक्रमी परंपरा एवं विजय भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है।

कृष्ण द्वैपायन बने “वेदव्यास”

आषाढ़ माह की समाप्ति और श्रावण के शुभारंभ की संधिबेला को आषाढ़ी पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा व व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। सनातनधर्मी इसे महर्षि वेद व्यास की जयंती के रूप में मनाते हैं। यूं तो भारत की पावन धरती पर विश्व मानवता को प्रकाशित करने वाले अनेक विद्वान मनीषी जन्मे किन्तु महर्षि कृष्ण द्वैपायन वे प्रथम विद्वान थे जो सनातन हिन्दू धर्म के चारों वेदों की व्याख्या,   18 पुराणों एवं उपपुराणों तथा महाभारत एवं श्रीमद्भागवत की रचना कर “वेदव्यास” की महिमामंडित पदवी जी विभूषित हुए। कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था। इसीलिए उनके सम्मान में सनातन धर्मावलम्बी इस दिन को महर्षि व्यास पूजन दिवस के रूप में मनाते हैं और उनकी शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेते हैं।

Topics: गुरु-शिष्य परंपराswami vivekananda on guruगुरु पूर्णिमा 2025वेदव्यास जयंतीभारत की गुरु परंपरास्वामी विवेकानंद गुरुगुरु पूर्णिमा इतिहाससनातन संस्कृति गुरुvedvyas jayantiguru purnima essayguru shishya traditionindian guru tradition
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन करते आचार्य देवव्रत। साथ में हैं बाएं से हितेश शंकर, बृजबिहारी गुप्ता और मुकेश भाई  मलकान

जड़ से जुड़ने पर जोर

Panchjanya Gurukulam 2025 : स्वामी परमात्मानंद ने खोला गुरुकुल का रहस्य, बताया भारत को विश्व गुरु बनाने का मंत्र

Panchjanya Gurukulam 2025: गुरुकुल से डिजिटल युग तक, प्रतापानंद झा ने खोले अनोखे रहस्य! परंपरा और तकनीकी का अद्भुत संगम

गुजरात में पाञ्चजन्य का ‘Gurukulam’ सम्मेलन : भारतीय ज्ञान परंपरा पर देशव्यापी संवाद शुरू

गुरु पूर्णिमा का महत्त्व

बेमिसाल है गोरक्षपीठ की गुरु-शिष्य परंपरा

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वालों 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

लालू प्रसाद यादव

चारा घोटाला: लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सजा बढ़ाने की सीबीआई याचिका स्वीकार

कन्वर्जन कराकर इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहा था ‘मौलाना छांगुर’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies