पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने अभी एक इंटरव्यू में अपनी चिरपरिचित सनक में आकर कह दिया कि ‘यदि भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता होती है, तो पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर के प्रत्यर्पण का विरोध नहीं करेगा’। बिलावल के इस बयान पर जिहादियों को गोद में बिठाए रखने वाले जिन्ना के देश में बवाल मचना ही था, सो मचा। जिहादी हाफिज सईद का बेटा तलहा सईद ताल ठोंककर मैदान में आ गया। उसने बिलावल को खूब दुत्कारा और कहा कि ‘वह भरोसे के लायक नहीं’ है। इतना ही नहीं, तलहा ने यह भी कहा कि बिलावल बस नाम का मुसलमान है। विशेषज्ञों के अनुसार, तलहा कुढ़ इसलिए रहा होगा कि आखिर जिन्ना के देश का कोई, नेता छोड़ो, आम आदमी भी किसी जिहादी का विरोधी कैसे हो सकता है! वह इस्लामी देश पानी भी पीता है तो इस्लामी आतंक को गोद में बिठाकर पीता है।
हालांकि कुछ विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि जिहादी सरगना के बेटे तलहा सईद का ऐसा कहना इस बात को दर्शाता है कि पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व और कट्टरपंथी संगठनों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई है। लेकिन इस बात के हामी कम ही हैं। बिलावल भुट्टो जैसे अनुभवहीन नेता दुनिया में पाकिस्तान की छवि सुधारने की कवायद कर रहे हैं और संभवत: अमेरिका से झिड़की खाकर भारत के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिश में अनाप—शनाप बयाद दे रहे हैं। लेकिन तलहा जैसे चरमपंथी ऐसे बयानों को “राष्ट्रीय हितों के खिलाफ” मानते हैं, क्योंकि उस देश की राज्य नीति ही इस्लामी आतंकवाद को पुचकारने और बढ़ावा देने की है।
तलहा का बिलावल को “सच्चा मुसलमान नहीं” कहना उस जिहादी पुत्र के दिमाग में भरे मजहबी उन्माद को भी दर्शाता है जो जिन्ना के देश के मदरसे सिखा रहे हैं। जैसा पहले बताया, उसका यह बयान दिखाता है कि पाकिस्तान की राजनीति को मजहब ही रास्ता दिखाता है। इसी राज्य नीति के तहत वहां जिहादी समूह पल रहे हैं। तलहा आगे यह भी कहता है कि “बिलावल को पाकिस्तानियों के प्रत्यर्पण पर बात नहीं करनी चाहिए”। वैसे भी, कोई आतंकी गुट कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा नहीं करता।

तलहा के इस बयान से बिलावल की राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, खासकर कट्टर मजहबी सोच रखने वाले वर्ग में जिन्हें अपने देश की तरक्की का रास्ता मजहबी उन्माद ही दिखाई देता है। बेशक यह विवाद पाकिस्तान में राजनीति और आतंकवाद के गठजोड़ को भी एक प्रकार से उजागर करके रख देता है। जिन्ना के देश की सरकार एक ओर तो अंतरराष्ट्रीय दबाव में आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करने का दावा करती है, तो दूसरी ओर जिहादी गुट नेताओं और सेना पर हावी भी रहते हैं। इसलिए वहां बिलावल को इस प्रकार के अति आत्मविश्वासी बयान देने से बचने की सलाहें दी जा रही हैं।
जिहादी हाफिज सईद के बेटे के बोलों ने जहां बिलावल के मुसलमान होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया है वहीं यह भी जता दिया है कि इस्लामी जिहादी गुटों के विरुद्ध कोई मुंह खोलने की हिमाकत न करे। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान में आंतरिक सहमति की कमी है।
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