उत्तर प्रदेश

तपस्या, साधना और अध्यात्म की यह धऱती आत्मगौरव व राष्ट्रप्रेम की आधार भूमि भी हैः राष्ट्रपति

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गोरखपुर में 268 करोड़ की लागत से बने महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का किया लोकार्पण । जानिए highlights...

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सुनील राय

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने महायोगी गुरु गोरखनाथ की पवित्र धरती को नमन करते हुए अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि गुरु गोरखनाथ के बारे में कहा गया है कि आदि गुरु शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली महापुरुष भारत में दोबारा नहीं हुआ। गोरखपुर योग भूमि है। गुरु गोरखनाथ ने इस क्षेत्र को अक्षय आध्यात्मिक ऊर्जा से समृद्ध किया। यह परमहंस योगानंद की जन्मभूमि भी है। आप सभी ऐसे महान स्थानीय परंपरा से जुड़े हैं, जिनका राष्ट्रीय महत्व और मानवता पर प्रभाव है। श्री आदिनाथ, मत्स्येंद्रनाथ और गुरु गोरक्षनाथ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गोरखपुर से प्रसारित हुआ नाथ पंथ भारत के कोने-कोने और अन्य देशों में भी मानवता के कल्याण में सक्रिय है। तपस्या, साधना और अध्यात्म की यह धऱती आत्मगौरव व राष्ट्रप्रेम की आधार भूमि भी है। 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह से लेकर 1857 के स्वाधीनता संग्राम तक गोरखपुर नाथ पंथ के योगी, जनकल्याण और स्वाधीनता संग्राम का सूत्रधार रहा है। इस धरती से बाबू बंधु सिंह व रामप्रसाद बिस्मिल जैसे बलिदानियों की गाथाएं जुड़ी हैं।

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महामहिम राष्ट्रपति ने मंगलवार को गोरखपुर में महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का लोकार्पण किया। 52 एकड़ में प्रदेश का यह पहला आयुष विश्वविद्यालय 268 करोड़ से स्थापित किया गया है। राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग 100 वर्ष से गीता प्रेस गोरखपुर ने भारत के जनमानस को धर्म व संस्कृति से जोड़े रखने का महान कार्य किया है। गीता प्रेस का प्रकाशन संस्कृत व हिंदी के अलावा अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। ओड़िया भागवत के नाम से विख्यात अतिबड़ी जगन्नाथ दास द्वारा रचित भागवत महापुराण को ओडिशा के लोग बहुत सम्मान से पढ़ते हैं। ओड़िया भागवत का प्रकाशन व प्रसार भी गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा किया गया है। कल शाम को गोरखनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन का अवसर मिला। वहां गीताप्रेस द्वारा उड़िया भाषा में प्रकाशित शिवपुराण और भागवत की प्रतियां भेंट की गईं। यह पुस्तकें गोरखपुर के अमूल्य सौगात और स्मृति के रूप में सदैव रहेंगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि गोरखपुर में कुछ वर्षों से इंफ्रास्ट्रक्चर का बहुत तेज गति से विकास हो रहा है। गोरखपुर इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी (गीडा) की गतिविधियों का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है। यहां के टेरोकाटा के कलात्मक उत्पाद देश-विदेश में निरंतर लोकप्रिय हो रहे हैं। यहां के निवासियों में ऐसी अनेक उपलब्धियों से नई ऊर्जा व आकांक्षा का संचार हो रहा है।

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राष्ट्रपति ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जैसे विलक्षण विभूति के पवित्र नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आकर उनके प्रति श्रद्धा का और अधिक संचार हो रहा है। यह विश्वविद्यालय समृद्ध, प्राचीन परंपराओं का नवनिर्मित व प्रभावशाली आधुनिक केंद्र है। यह उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मेडिकल एजुकेशन व चिकित्सा सेवा के विकास में मील का पत्थऱ साबित होगा। यहां उच्च स्तरीय सुविधाओं का निर्माण किया गया है, जिनका लाभ जनसामान्य को सुलभ होगा। इस विश्वविद्यालय से संबद्ध लगभग 100 आयुष कॉलेज उत्कृष्टता से लाभान्वित हो रहे हैं। आयुष पद्धतियों में स्नातक से लेकर उच्चतम उपाधियों के स्तर पर भी शिक्षण एवं शोध कार्य किया जाएगा। यहां आयुष पद्धति से जुड़े रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की शिक्षा दी जाएगी। पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विश्वस्तरीय व स्वीकार्य बनाने के लिए शोध कार्य पर विशेष बल दिया जाएगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि  अथक मतलब थकना मना है। दिन रात परिश्रम करना पड़ेगा। निद्राजीत बनना है। डॉक्टर कहते हैं कि छह से आठ घंटे सोना पड़ेगा, वरना शरीर साथ नहीं देगा, लेकिन सीएम आदित्यनाथ जैसे योगी कहते हैं कि निद्रा पर जय करने और खुद को शारीरिक व मानसिक सशक्त बनाने के लिए योग करना होगा। योग करने से आठ घंटे की नींद तीन घंटे में पूरी होगी। योगी जी का अथक परिश्रम और जनता के प्रति समर्पण भाव है। इस एरिया में इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं जनता को समर्पित है।

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राष्ट्रपति ने कहा कि भारत योगियों-ऋषियों की भूमि है।  यह शरीर पंच तत्व से तैयार हुआ है। राष्ट्रपति ने स्वस्थ रहने के लिए हितभुक, ऋतभुक व मितभुक की चर्चा की, फिर कहा कि आज हमारे पास संसाधन व सुविधाएं हैं। सुविधाओं को शरीर के लिए प्रयोग करें, जिससे हम स्वस्थ रहेंगे। खेती, जंगलों, हार्डवर्क करने वालों के उत्तम स्वास्थ्य का जिक्र करते हुए कहा कि ऑफिस में कार्य करने और कम फिजिकल करने वालों के लिए योग अत्यंत आवश्यक है।  हम भारत के पूर्वजों और ऋषि-मुनियों के ऋणी हैं, हमें उनका मान रखना है। आज विश्व में भारत का डंका बज रहा है। राष्ट्रवासियों ने स्वास्थ्य को संपदा बताते हुए इसे ठीक रखने पर जोर दिया।  भारत 2047 तक विकसित हो, इसके लिए हमें भी आज से ही प्रयास करना होगा। शैक्षणिक, चिकित्सा समेत यह संस्था भी इसका माध्यम बनेगी।

श्रीमती मुर्मू ने कहा कि आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा आदि भारत के पुरातन प्रणालियों में स्वस्थ रहने की वैज्ञानिक पद्धति बताई गई है। 100 वर्ष से अधिक आयु तक सभी इंद्रियों को समर्थ बनाए रखने के लिए प्राचीन विधियां प्रमाणित करती हैं कि इन पर आधारित पारंपरिक जीवनशैली बहुत अच्छी थी। हमें उसका अनुसरण करना पड़ेगा। आयुर्वेद पर आधारित प्राचीन जीवनशैली में दिनचर्या, ऋतचर्या, रात्रिचर्या पर बहुत ध्यान दिया जाना चाहिए। संतुलित आहार, विहार व विचार को महत्व देना चाहिए। आयुर्वेद धरती से जुड़ी है। खेतों व जंगलों में औषधियों, वनस्पतियों व जड़ी-बूटियों का खजाना आज भी मौजूद है। अरिष्ट व आसव औषधियों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती।

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राष्ट्रपति ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की सर्वसमावेशी व उपयोगी दृष्टि के आधार पर हमने विदेश में उत्पन्न हुई चिकित्सा पद्धतियों को भी आयुष पद्धतियों में शामिल किया है। आज यूनान तथा मध्य एशिया के देशों में यूनानी चिकित्सा पद्धति का उतना उपयोग नहीं होता, जितना उपयोग भारत में होता है। जर्मनी में विकसित हुई होम्योपैथिक चिकित्सा को हमारे देश ने पूरी तरह अपना लिया है। 2014 में केंद्र व 2017 से यूपी सरकार ने आयुष विभागों की स्थापना करके देश-विदेश की इन सभी उपयोगी पद्धतियों को नई ऊर्जा के साथ प्रोत्साहित किया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि इस विवि का लोकार्पण समारोह आयुष पद्धतियों के पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण उत्सव है। आयुष में समाहित आयुर्वेद, योग व सिद्ध पद्धतियां विश्व समुदाय को भारत की अनमोल सौगात है। राष्ट्रपति ने भगवान धन्वंतरि, चरक, सुश्रुत के योगदान की भी चर्चा की। विद्वानों की मान्यता है कि नाथ परंपरा के योगियों ने चिकित्सा के लिए खनिजों व धातुओं पर आधारित भस्म के प्रभावी व सुरक्षित प्रयोग किए थे। हठयोग की प्रतिष्ठा करके महायोगी गोरखनाथ ने राष्ट्र का समग्र पुनर्जागरण किया है। उसका प्रभाव अद्वितीय है। योग के क्षेत्र में गुरु गोरक्षनाथ की महानता को समझाने के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा था- गोरख जगायो जोग यानी गुरु गोरखनाथ ने योग की परंपरा को फिर से जगाया था। उन्होंने जनसाधारण में भी हठयोग का व्यापक प्रचार-प्रसार किया था।

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