हर साल 22 जून को मनाया जाने वाला ‘विश्व वर्षावन दिवस’ अब केवल एक औपचारिक दिवस मात्र ही नहीं रह गया है, बल्कि यह उस असहाय प्रकृति की पुकार है, जिसे विकास की आंधी में लगातार रौंदा जा रहा है। यह केवल एक प्रतीकात्मक पर्यावरणीय आयोजन नहीं बल्कि एक गहराते वैश्विक संकट की चेतावनी है। विश्व वर्षावन दिवस की शुरुआत 2017 में अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संस्था ‘रेनफॉरेस्ट पार्टनरशिप’ द्वारा की गई थी। यह अभियान एक पर्यावरणीय चेतना को जनांदोलन में परिवर्तित करने की आकांक्षा के साथ शुरू हुआ। वर्ष 2024 में पहली बार आयोजित वर्ल्ड रेनफॉरेस्ट डे समिट में 77 देशों की 105 संस्थाओं ने हिस्सा लिया था, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि वर्षावन अब केवल स्थानीय चिंता नहीं बल्कि वैश्विक एजेंडा हैं। दरअसल वर्षावन, जिन्हें पृथ्वी का ‘फेफड़ा’ कहा जाता है, अब खुद अपने जीवन के लिए गुहार लगा रहे हैं। वे न केवल ऑक्सीजन के सबसे बड़े उत्पादक हैं, बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड का भंडारण कर पृथ्वी के जलवायु संतुलन को बनाए रखते हैं।
धरती का केवल 6 प्रतिशत वर्षावन आच्छादित
यूएनएफएओ की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी की सतह का मात्र 6 प्रतिशत क्षेत्र ही वर्षावनों से आच्छादित है, लेकिन यहां दुनिया की ज्ञात जैव विविधता का 50 प्रतिशत से अधिक निवास करता है। यहां पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, कीट-पतंगों, सूक्ष्मजीवों और मानव समुदायों के बीच सह-अस्तित्व की अद्भुत प्रयोगशाला है। इसके बावजूद वर्षावनों का विनाश अत्यंत तेज गति से हो रहा है। वर्षावनों की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ये विश्व के लगभग 33 मिलियन लोगों की आजीविका का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आधार हैं। साथ ही वर्षावन आधारित पारिस्थितिक सेवाएं वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 1.5 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देती हैं। फिर भी आज ये अद्वितीय प्राकृतिक धरोहरें तेजी से विनष्ट हो रही हैं।
संकट में धरती का सबसे बड़ा वर्षावन
दक्षिण अमेरिका में स्थित ‘अमेजन’ वर्षावन, पृथ्वी का सबसे विशाल वर्षावन (ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट) है, जो ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलिविया, गुयाना और सूरीनाम जैसे आठ देशों में फैला है। यह अकेले विश्व की 10 प्रतिशत जैव विविधता का घर है और प्रतिवर्ष 2 अरब टन कार्बन को अवशोषित करता है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर है लेकिन पिछले 50 वर्षों में अमेजन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो चुका है। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि यदि यह नुकसान 25 प्रतिशत तक पहुंचता है तो अमेजन ‘टिपिंग प्वाइंट’ को पार कर जाएगा और वह एक सूखे, गर्म और बंजर सवाना में बदल सकता है।
सबसे तेज वन विनाश
2024 की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड रिपोर्ट के अनुसार, अमेजन में प्रतिदिन औसतन 144,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल यानी हर मिनट करीब 10 फुटबॉल मैदान जितना जंगल साफ किया जा रहा है। यह दर अब तक की सबसे तेज और विनाशकारी है। इसका प्रमुख कारण अवैध वनों की कटाई, चरागाह विस्तार, खनन, सड़क और बांध परियोजनाएं तथा आगजनी की घटनाएं हैं। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच की जून 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के पहले चार महीनों में ही अमेजन का 4.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र साफ किया जा चुका था। ब्राजील, जहां अमेजन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है, वहां 2001 से 2023 के बीच 68.9 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष आवरण समाप्त हो गया, जो वैश्विक वनों की कुल क्षति का लगभग 43 प्रतिशत है।
अफ्रीका और एशिया के वर्षावनों पर संकट
अमेजन के अलावा, कांगो बेसिन अफ्रीका का सबसे बड़ा वर्षावन है। एफएओ के आंकड़ों के अनुसार, 2000 से 2020 के बीच कांगो बेसिन के 17 प्रतिशत वनों का क्षरण हो चुका है। वहीं इंडोनेशिया और मलेशिया के वर्षावनों में पिछले दो दशकों में 30-40 प्रतिशत वृक्ष आवरण समाप्त हुआ है। इन क्षेत्रों में पाम ऑयल खेती का विस्तार वनों की कटाई का प्रमुख कारण है। एफएओ और यूएनईपी की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका में 2015-2020 के बीच प्रतिवर्ष 3.9 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हुए। वहीं इंडोनेशिया में 1990 से अब तक 27 प्रतिशत मूल वन क्षेत्र समाप्त हो चुका है।
म्यांमार, भारत और थाईलैंड जैसे देशों के वर्षावनों में भी भयावह क्षरण देखा जा रहा है। भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह, पश्चिमी घाट और सुंदरबन जैसे इलाके वर्षावन संरचना के लिए प्रसिद्ध हैं, किंतु फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया 2021 रिपोर्ट के अनुसार, देश के प्राकृतिक वन क्षेत्रों में गिरावट का रुझान चिंताजनक है। देश का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किमी है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 21.71 प्रतिशत है, लेकिन इसमें प्राकृतिक वर्षावनों की हिस्सेदारी लगातार घट जा रही है। वर्ष 2023 में देश के 11 राज्यों में कुल मिलाकर 54,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र का नुकसान हुआ।
जलवायु, खाद्य और स्वास्थ्य का संकट
वर्षावनों का विनाश केवल हरियाली की क्षति नहीं बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक त्रिस्तरीय (जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा का संकट और मानव स्वास्थ्य का संकट) संकट है। वर्षावन प्रतिवर्ष लगभग 2 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और कटाई के दौरान यह गैस वातावरण में लौट आती है और ग्लोबल वॉर्मिंग को तीव्र कर देती है। आईपीसीसी की 2023 की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने के लक्ष्य की सफलता वर्षावन संरक्षण पर निर्भर है। वर्षावन लगभग 75 प्रतिशत फसलों के लिए आवश्यक परागण तंत्र प्रदान करते हैं। इनका विनाश वैश्विक खाद्य प्रणाली की स्थिरता को प्रभावित करता है। एफएओ का अनुमान है कि यदि यही रुझान जारी रहा तो 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में 15 प्रतिशत तक गिरावट संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोविड-19, इबोला, एचआईवी, निपाह, आदि 75 प्रतिशत उभरती संक्रामक बीमारियां वन्यजीवों से मनुष्यों में आई हैं। जब वर्षावन कटते हैं तो मनुष्य और वन्यजीवों के बीच संपर्क बढ़ता है, जिससे जूनोटिक बीमारियों का प्रसार होता है।
कॉप-30 और वैश्विक समाधान की नई आशा
इस वर्ष ब्राजील के बेलेम शहर में आयोजित होने वाला कॉप30 सम्मेलन वर्षावन संरक्षण की दिशा में निर्णायक पहल साबित हो सकता है। ब्राजील सरकार ने इसके आयोजन हेतु 800 मिलियन डॉलर का फंड आवंटित किया है। उम्मीद की जा रही है कि इस सम्मेलन में ‘अमेजन केंद्रित हरित एजेंडे को प्राथमिकता दी जाएगी। कॉप30 सम्मेलन में ‘ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फोरएवर फेसिलिटी’ (टीएफएफएफ)’ नामक वित्तीय मॉडल प्रस्तुत किया जाएगा, जिसमें निजी, सार्वजनिक और बहुपक्षीय निवेशकों का साझा योगदान होगा। यह मॉडल वर्षावन संरक्षित रखने वाले देशों को आर्थिक लाभ प्रदान करेगा। प्रत्येक हेक्टेयर संरक्षित वन के लिए प्रति वर्ष 4 डॉलर का भुगतान प्रस्तावित है। साथ ही, वन विनाश पर दंडात्मक प्रावधानों की भी घोषणा की गई है।
संरक्षण के असली पहरेदार स्थानीय समुदाय
वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं ने यह स्वीकार किया है कि स्थानीय और आदिवासी समुदाय वर्षावनों के संरक्षक हैं। जिन वन क्षेत्रों में स्थानीय या आदिवासी समुदायों का पारंपरिक स्वामित्व है, वहां वनों की कटाई दर बेहद कम है। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीच्यूट की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि जहां स्थानीय समुदायों के पास भूमि स्वामित्व है, वहां वनों की कटाई 37 प्रतिशत तक कम है। इसीलिए वर्षावन संरक्षण की रणनीतियों में अब स्थानीय नेतृत्व, पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक निगरानी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। ‘रेनफॉरेस्ट ट्रस्ट’ और ‘अमेजन वॉच’ जैसे संगठन लाखों एकड़ भूमि को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर वहां स्थानीय समुदायों को संरक्षण का नेतृत्व सौंप रहे हैं। ‘रेनफॉरेस्ट ट्रस्ट’ 60 लाख एकड़ से अधिक भूमि को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर चुका है, जिनकी निगरानी स्थानीय समुदायों द्वारा की जाती है।
साथ ही इकोटूरिज्म, पुनःवनरोपण, सतत कृषि, जैविक वन उत्पादों का न्यायसंगत व्यापार जैसी विधियां भी तेजी से अपनाई जा रही हैं। वर्षावनों की रक्षा के लिए अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग भी किया जा रहा है। अब उपग्रह आधारित निगरानी, ड्रोन सर्वेक्षण, एआई आधारित अलर्ट सिस्टम, और जीआईएस मैपिंग जैसे उपकरण उपयोग में लाए जा रहे हैं। गूगल अर्थ इंजन, ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच, डायनेमिक वर्ल्ड आदि से नीति निर्माण में वास्तविक समय की जानकारी मिलती है।
वर्षावनों को बचाना मतलब मानवता को बचाना
बहरहाल, वर्षावनों का संरक्षण केवल सरकारों की जिम्मेदारी नहीं बल्कि हर नागरिक, हर उद्योग, हर संस्थान और हर उपभोक्ता की सामूहिक जवाबदेही है। पेरिस समझौते के लक्ष्य, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी-13, 15) और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा, सब वर्षावन संरक्षण से ही जुड़े हैं। वर्षावन केवल जंगल नहीं हैं, ये पृथ्वी की आत्मा हैं। जब हम वर्षावन को बचाते हैं, तब हम केवल पेड़ों को नहीं बल्कि जलवायु, जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा, सभ्यता और मानवता की पूरी संरचना को बचाते हैं। आज हमें उस सोच को अपनाने की आवश्यकता है, जो पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को समझे और उसे प्राथमिकता दे।
विश्व वर्षावन दिवस हमें यही संदेश देता है कि वर्षावनों के बिना पृथ्वी का कोई भविष्य नहीं है। यह लड़ाई केवल वृक्षों के लिए नहीं, आने वाली पीढ़ियों के लिए है। इसलिए यह लड़ाई विलासिता की नहीं, मानव अस्तित्व की लड़ाई है, जिसमें देर करना अब आत्मघाती होगा।
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के अपने विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)
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