क्या ईरान, क्या पाकिस्तान और क्या ईराक अधिकतर इस्लामिक देशों में इस्लाम और शरिया के नाम पर महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगाने की कोशिशें वहां के कट्टरपंथी मौलाना करते रहे हैं। ऐसा ही हाल भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान में भी यही हाल है। यहां पिछले एक दशक में महिलाओं की भागीदारी शून्य हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने इस निम्न स्तर पर दुख जताया है।
जीनोसाइड वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की भागीदारी शून्य हो गई है। देश में कहीं भी राष्ट्रीय या स्थानीय निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं को बाहर कर दिया गया है।
बिगड़ रही महिलाओं की स्थिति
अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति चिंताजनक रूप से बिगड़ रही है, जहां उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में लगभग पूर्ण रूप से बहिष्कृत किया जा रहा है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद, महिलाओं के अधिकारों पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता और अवसर छिन गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की लैंगिक समानता एजेंसी ने अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर हाल ही एक सूचकांक जारी किया है, जो 2021 में तालिबान द्वारा वास्तविक नियंत्रण फिर से शुरू करने के बाद से अफ़गानिस्तान में लैंगिक असमानता पर सबसे व्यापक अध्ययन है। इसमें दावा किया गया है कि दिसंबर 2024 के प्रतिबंध के बाद माध्यमिक शिक्षा में शून्य लड़कियों के होने का अनुमान है।
महिलाओं के सम्मान और अस्तित्व पर अभूतपूर्व हमला
UN Women की मानवीय कार्रवाई प्रमुख सोफिया कॉलटॉर्प ने हाल ही में जेनेवा में एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि 2021 से हमने अफ़गान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों, सम्मान और अस्तित्व पर एक जानबूझकर और अभूतपूर्व हमला देखा है। वह कहती हैं कि इतनी सारी बंदिशों औऱ प्रतिबंधों के बाद भी अफगान महिलाएं अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए संकल्पित हैं।
दुनिया में दूसरा सबसे अधिक लैंगिक असमानता
UN Women की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के अंतर्गत लैंगिक असमानता का स्तर बढ़ता जा रहा है। हालांकि, ये तालिबान के पहले से ही था, लेकिन तालिबान ने इसे बदतर बना दिया है। सूचकांक के अनुसार, अफगानिस्तान में वर्तमान में दुनिया में दूसरा सबसे खराब लैंगिक अंतर है, जहां स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन और निर्णय लेने में महिलाओं और पुरुषों की उपलब्धियों के बीच 76 प्रतिशत असमानता है।
व्यवस्थागत बहिष्कार
तालिबान की सरकार शरिया और इस्लाम के नाम पर महिलाओं को व्यस्थित तरीके से बहिष्कार कर रही है। संयुक्त राष्ट्र महिला कार्यकारी निदेशक सिमा बहौस कहती हैं कि देश का सबसे बड़ा संसाधन इसकी महिलाएं और लड़कियां हैं, लेकिन उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। केवल 24 प्रतिशत महिलाएँ ही श्रम शक्ति का हिस्सा हैं, जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 89 है।
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