भारत की नाट्य परंपरा विश्व की प्राचीनतम और समृद्ध परंपराओं में से एक है, जिसकी आधारशिला भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में रखी गई है। इसमें वर्णित रस-भाव सिद्धांत भारतीय नाट्य परंपरा की आत्मा हैं, जो केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि ‘लोकशिक्षा’ और ‘चित्र विनोद’ का साधन भी रहे हैं। हास्य रस को नौ रसों में भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। यह परंपरा सामाजिक चेतना, मानवीय व्यवहार, संस्कार एवं संस्कृति की संवाहक रही है। चाहे वह संस्कृत नाटकों का सौंदर्यपूर्ण हास्य हो, संतों एवं कवियों के दोहे हों, थेरीकू, तमाशा, जागरण, वांगभांड, नौटंकी आदि लोक परंपराओं की व्यंग्यात्मक कहानियाँ हों, या समकालीन साहित्य की व्यंग्यात्मक शैली—सभी में हास्य ने जनमानस को आत्मचिंतन, संवाद और सुधार की दिशा में प्रेरित किया है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्टैंड अप कॉमेडी इस परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति के रूप में उभरी है। डिजिटल माध्यमों पर प्रसारित हास्य-आधारित सामग्री युवाओं को तेजी से आकर्षित कर रही है। किंतु हाल के वर्षों में इस माध्यम की प्रस्तुति और विषयवस्तु के स्तर में गिरावट देखी गई है। यह माध्यम जहाँ एक ओर सशक्त सामाजिक सुधार का उपकरण बन सकता है, वहीं दूसरी ओर ‘शॉर्टकट प्रसिद्धि’ की होड़ में यह मंच अशोभनीय भाषा, धर्म, जाति, लिंग के प्रति असंवेदनशीलता और राष्ट्रीय मूल्यों की अवमानना का साधन भी बनता जा रहा है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कई कलाकार जानबूझकर या अनजाने में धार्मिक प्रतीकों का उपहास, राष्ट्रनायकों की व्यंग्यात्मक आलोचना या सामाजिक मान्यताओं का मज़ाक उड़ाकर लोकप्रियता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ऐसे अनेक कॉमिक सेगमेंट देखे गए हैं जहाँ केवल गालियाँ, यौन संकेत या सांप्रदायिक टिप्पणियों के सहारे हँसी बटोरने की कोशिश की जाती है। यह प्रवृत्ति युवा दर्शकों में संवेदनशीलता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक सम्मान की भावना को भी क्षीण करती है।
संस्कार भारती की भूमिका और चिंतन
संस्कार भारती की बंधकारिणी वर्तमान समय में स्टैंड अप कॉमेडी जैसी विविध हास्य कला प्रस्तुतियों के गिरते स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। बंधकारिणी यह मानती है कि भारतीय हास्य परंपरा की मूल आत्मा को आधुनिक संदर्भ में पुनः प्रतिष्ठित करना समय की मांग है। हास्य को एक संवेदनशील, उत्तरदायी और गरिमामय कला रूप में देखते हुए, उसके कलात्मक और नैतिक उत्थान हेतु प्रयास आवश्यक हैं। स्टैंड अप कॉमेडी जैसे आधुनिक माध्यमों को अशोभनीय, असंवेदनशील और विवादास्पद विषयों से हटाकर भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर मर्यादित, उद्देश्यपूर्ण और संवादपरक बनाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
बंधकारिणी इस विधा से जुड़े कलाकारों और दर्शकों के बीच सार्थक संवाद को प्रोत्साहित करते हुए हास्य कला के संतुलित विकास को आवश्यक मानती है। बंधकारिणी इस दिशा में सार्थक पहल और जागरूकता हेतु पूर्णतः प्रतिबद्ध है।
सामूहिक उत्तरदायित्व की अपील
बंधकारिणी यह आह्वान करती है कि हास्य कलाविधाओं की गरिमा, मर्यादा और उद्देश्य की रक्षा हेतु कलाकारों, दर्शकों, शासन और नीति-निर्माताओं की संयुक्त एवं उत्तरदायी भूमिका अनिवार्य है। कलाकारों एवं रचनाकारों से अनुरोध है कि वे अपनी अभिव्यक्ति में नैतिक विवेक, सांस्कृतिक चेतना तथा सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करें। दर्शकों से अपील है कि वे गुणवत्तापूर्ण, विवेकसम्मत एवं गरिमामय हास्य को प्रोत्साहन दें तथा फूहड़ता और असंवेदनशीलता पर आधारित प्रस्तुतियों का स्पष्ट विरोध करें।
साथ ही सरकार, नीति-निर्माताओं और सांस्कृतिक संस्थाओं से अपेक्षा है कि हास्य विधा को दिशा देने हेतु प्रशिक्षण, मंच और संसाधन उपलब्ध कराएं तथा उपयुक्त विधिक प्रावधानों, दिशा-निर्देशों एवं दंडात्मक व्यवस्थाओं के माध्यम से इसमें अनुशासन एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करें।
संस्कार भारती से जुड़े कलाकारों तथा कार्यकर्ताओं से यह अपील है कि वे देशभर में सक्रिय, संवेदनशील एवं प्रेरणाप्रद भूमिका का निर्वहन करें, जिससे हास्य विधा भारतीय मूल्य, गरिमा और सांस्कृतिक उद्देश्य के अनुरूप विकसित हो सके।
टिप्पणियाँ