नई दिल्ली । 19 जून को ईरान और इज़राइल के बीच छिड़ा युद्ध सातवें दिन में प्रवेश कर चुका है। दोनों देशों के बीच टकराव की लपटें अब और भड़कती नज़र आ रही हैं। ताज़ा घटनाक्रम में, बीती रात ईरानी सेना ने दक्षिणी इज़राइल पर तीव्र मिसाइल हमले किए, जिनमें बीरशेबा के प्रमुख सोरोका अस्पताल को गंभीर नुकसान पहुँचा। इज़रायली आपातकालीन सेवाओं के मुताबिक, हमले में कम-से-कम 65 लोग घायल हुए हैं।
इधर, सबसे चौंकाने वाली खबर यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की योजना को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी है। हालांकि, हमले का समय और स्वरूप अब भी अज्ञात है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) की निगरानी में ईरान की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखी जा रही है।
अमेरिकी घेरेबंदी और संभावित जवाबी हमला
वहीं वाशिंगटन को आशंका है कि यदि अमेरिकी फौज इज़राइल की ओर से युद्ध में उतरती है, तो ईरान मुँहतोड़ जवाब दे सकता है—खासतौर पर उन अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर जो ईरानी मिसाइलों की पहुंच में हैं। ऐसे में अमेरिका ने मध्य-पूर्व के रणनीतिक देशों—यूएई, सऊदी अरब और जॉर्डन में मौजूद अपने लगभग 40,000 सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखा है।
ईरान किन-किन जगहों को बना सकता है निशाना..?
इधर अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों का मानना है कि जंग की स्थिति में ईरान सबसे पहले सीरिया, इराक और खाड़ी देशों में फैले अमेरिकी बेस को निशाना बना सकता है। इसी संभावना को देखते हुए अमेरिका ने इन इलाकों में सुरक्षा को न सिर्फ मजबूत किया है, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी सैनिक तैनाती बढ़ा दी है।
अमेरिका की सैन्य रणनीति और तैनाती
मध्य-पूर्व में अमेरिका ने दो विमानवाहक पोत और दर्जनों रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट्स तैनात किए हैं ताकि वहां तैनात लड़ाकू विमानों को लगातार ईंधन आपूर्ति मिलती रहे। इसके अलावा अमेरिकी सैटेलाइट और निगरानी ड्रोन लगातार ईरान की हर हरकत पर नज़र बनाए हुए हैं।
अब यह टकराव केवल इज़राइल और ईरान के बीच की सीमित लड़ाई नहीं रही। यह जंग एक बड़े भूराजनीतिक संघर्ष का रूप ले चुकी है—जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगी मुस्लिम देश एक तरफ हैं, और दूसरी तरफ है ईरान। इस टकराव की तपिश अब पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र को झुलसा सकती है।
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