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ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र जरूरी नहीं : रणनीतिक तर्क

विपक्ष की ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र की मांग पर गहन तर्क। सरकार ने मानसून सत्र में चर्चा की बात कही, जानें सैन्य और रणनीतिक कारण...

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Jun 18, 2025, 10:00 pm IST
in विश्लेषण
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कुछ विपक्षी दलों द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग पर गहन बहस हुई है। मोदी सरकार ने 21 जुलाई से 13 अगस्त तक संसद का मानसून सत्र बुलाने की घोषणा की है। सरकार का रुख यह है कि ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित सभी मुद्दों को आसन्न सत्र में उठाया जाना चाहिए, जो सिर्फ एक महीने दूर है। 7-10 मई तक ऑपरेशन सिंदूर के पहले चरण ने भारत को पाकिस्तान पर एक शानदार सैन्य जीत दिलाई। भारत ने केवल अस्थायी रूप से पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन को रोक दिया है और इस तरह ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है।

विपक्षी दलों द्वारा कुछ अजीब तर्क दिए जा रहे हैं कि चीन के साथ 1962 के युद्ध के दौरान भी संसद का विशेष सत्र आयोजित किया गया था। उन्हें सूचित किया जाना चाहिए कि आज का युद्ध और संघर्ष प्रबंधन 1960 के दशक से बहुत अलग है। संयोग से, स्वतंत्रता के बाद 1962 का यह एकमात्र युद्ध है जिसमे भारत को सैन्य सफलता नहीं मिली। इसके अलावा, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी संसद का कोई विशेष सत्र नहीं बुलाया गया था। न ही पाकिस्तान के साथ 1999 के कारगिल युद्ध के साथ कोई विशेष सत्र आयोजित किया गया था। इसलिए, युद्ध या युद्ध जैसी स्थितियों के दौरान संसद के विशेष सत्र को अनिवार्य रूप से बुलाने की परंपरा नहीं रही है। जाहिर है यह मांग राजनीति से प्रेरित है।

यहाँ यह बताना जरूरी है की संसद सत्र में रक्षा संबंधी विषयों पर वक्तव्य सेनाओं द्वारा तैयार किए जाते हैं। महत्वपूर्ण विषयों पर काफी समय लगाकर उत्तर तैयार किए जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर संबंधित जानकारी सेना अध्यक्ष के लेवल पर अनुमोदित की जाएगी । साथ ही संसद सत्र के दौरान सेनाओं के नेतृत्व को अपना काफी समय सांसदों के सवालों के जवाब को तैयार करने में देना पड़ता है। चूंकि ऑपरेशन सिंदूर की अलग विशेषताएं हैं, जाहिर है की विशेष सत्र के लिए खास तैयारी करनी पड़ेगी। मुझे लगता है यह बेशकीमती समय सैन्य नेतृत्व को युद्ध की तैयारी में लगाना चाहिए।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के विशेष सत्र आयोजित करने के सैन्य और रणनीतिक निहितार्थों को सही परिप्रेक्ष्य में रखा जाना चाहिए। 10 मई से पाकिस्तान के साथ एक प्रकार के संघर्ष विराम होने के बाद, भारतीय सशस्त्र सेनाएं और सीमा सुरक्षा अर्धसैनिक बल अभी भी हाई अलर्ट पर हैं। पिछले एक महीने में, भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान से खतरे का तेजी से विश्लेषण किया होगा। भारतीय खुफिया एजेंसियों को यह देखना होगा कि पाकिस्तान तत्काल और दीर्घकालिक रूप से अपनी रक्षा क्षमता को कैसे बढ़ा रहा है। भविष्य में, पाकिस्तान को भारत के साथ संघर्ष में सैन्य रूप से बेहतर तरीके से तैयार होने की उम्मीद है, बड़े पैमाने पर चीन  और तुर्की की सहायता से। इसलिए आने वाले समय में भी सैन्य नेतृत्व को खुली छूट मिली रहनी चाहिए।

पाकिस्तान के लिए अमेरिकी समर्थन और उसके सेना प्रमुख असीम मुनीर को उनकी सेना दिवस परेड में शामिल होने की खबर अमेरिका की रणनीतिक आवश्यकता है। लेकिन अमेरिका का ऐसा रुख यह भी संकेत देता है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकतरफा समर्थन के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकता है, खासकर पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद के खिलाफ। रूस एक बार फिर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में गहराई से उलझा हुआ है और इस प्रकार समय पर भारत को महत्वपूर्ण सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति करने की स्थिति में नहीं है। भारत का एक और रणनीतिक साझेदार इजरायल ईरान के साथ युद्ध में लिप्त है। भारतीय सैन्य नेतृत्व को रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के अधिकारियों के साथ मिलकर सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति करने, आपातकालीन अधिग्रहण करने और सैन्य हार्डवेयर की दीर्घकालिक डिलीवरी की योजना बनाने के लिए अतिरिक्त व्यस्त होना चाहिए। इस वक्त रक्षा मंत्रालय को भी संसद सत्र की तैयारी से कुछ और समय के लिए दूर रखना होगा।

इस समय सार्वजनिक और निजी उद्योग को प्राथमिकता के आधार पर सैन्य हार्डवेयर, हथियार, गोला-बारूद और विशेष उपकरणों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इस महत्वपूर्ण काम को केवल रक्षा मंत्रालय पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए। सार्वजनिक रक्षा उद्योग पूरे देश में स्थित है और स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व को इन उद्योगों के कामगारों को अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए। निजी रक्षा उद्योग ने पिछले पांच वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है और ड्रोन और यूएवी जैसे प्रमुख बल गुणकों (Force Multipliers) के निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल है। पाकिस्तान के साथ लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष की स्थिति में हथियारों और गोला-बारूद के पर्याप्त भंडार सुनिश्चित करने के लिए प्रयासों में पूर्ण तालमेल की आवश्यकता है।

अब सवाल आता है 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर पर भारत सरकार के रुख का। भारत ने विदेश सचिव की उपस्थिति में सेना और वायु सेना की दो सेवारत महिला अधिकारियों के माध्यम से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी दैनिक ब्रीफिंग की। सेना, नौसेना और वायुसेना के डीजीएमओ ने 11 और 12 मई को मीडिया के साथ विस्तृत बातचीत की। इसलिए, सैन्य अभियान के सभी आवश्यक पहलुओं को जनता तक पहुंचा दिया गया है। इससे अधिक जानकारी हमारे दुश्मनों के लिए हितकारी हो सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र को संबोधित किया। इस संबोधन की मुख्य बातें आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई नीति के बारे में बताती हैं। पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद और व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते हैं और उन्होंने पाकिस्तान से स्पष्ट रूप से संदेश दिया कि आईडब्ल्यूटी स्थगित रहेगा। दूसरी हाइलाइट यह थी कि भारत आतंकवादियों और उन्हें प्रायोजित करने वाले देश के बीच अंतर नहीं करेगा। तीसरी हाइलाइट यह थी कि भारत परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा और इस तरह के खतरों की आड़ में सक्रिय आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाएगा। ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद के खिलाफ भारत का ‘न्यू नॉर्मल’  है और ऑपरेशन को फिलहाल सिर्फ रोका गया है। पीएम मोदी ने यह भी कहा कि यह पाकिस्तान था जिसने संघर्ष विराम की वकालत की और ऑपरेशन को रोकने का निर्णय भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय था।

अब देश को जो भी जानकारी जाननी चाहिए थी, वह मिल गई है। जो कुछ नहीं बताया गया है, उसे ऑपरेशन सिंदूर के भारत की शर्तों पर सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद  संप्रेषित करने के लिए आरक्षित रखा गया है। इसलिए, विपक्ष को यह बताना जल्दबाजी होगी कि भारत ने कितने विमान गंवाए। ध्यान रहे, पाकिस्तान को बहुत भारी नुकसान हुआ है और फिर भी पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने किसी भी नुकसान की पुष्टि नहीं की है। इसके बजाय, वे भारत पर जीत का दावा कर रहे हैं। इसपर आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान अभी भी यह स्वीकार नहीं करता है कि वह भारत के साथ 1971 का युद्ध हार गया था जहां पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर स्वतंत्र बांग्लादेश बन गया था। इसलिए, व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हित में, ऑपरेशन सिंदूर का कोई अनावश्यक विवरण प्रकट नहीं किया जाना चाहिए, जो पाकिस्तान के झूठे आख्यान को मजबूत करता है।

उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, मुझे निम्नलिखित सुझाव देने हैं। सबसे पहले, सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए, 17-18 जुलाई के आसपास। इसमे विपक्षी दलों के नेताओं के साथ प्रासंगिक समझी जाने वाली सभी सूचनाओं को साझा करना चाहिए। यह कवायद पूरी तरह से गोपनीय होनी चाहिए, ताकि बैठक की कोई भी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में लीक न हो। इस आयोजन से पहले, सभी सांसदों को भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना द्वारा जानकारी दी जानी चाहिए कि आधुनिक युद्ध कैसे लड़ा जाता है और पाकिस्तान और चीन के खिलाफ भारत के नैरेटिव और धारणा प्रबंधन को मजबूत करने के लिए उनसे क्या उम्मीद की जाती है। केवल तभी हमारे सभी सम्मानित सांसद भारत के सामरिक दृष्टिकोण को व्यक्त करने के लिए एक साथ होंगे।

संसद के मानसून सत्र के दौरान, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को भारत में आतंकवाद को प्रायोजित करने में पाकिस्तान की भूमिका और अन्य जगहों पर आतंक के साथ इसके संबंधों को व्यक्त करते हुए देखा और सुना जाना चाहिए। सत्र को चीन और अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्तियों को भारत की नई आतंक विरोधी नीति पर एक स्पष्ट संदेश भी देना चाहिए। भाषणों का लहजा और भाव वैसा ही होना चाहिए जैसा कि हमारे सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों ने विश्व भर में हासिल किया है। सत्र के बाद भारतीय संसद को आतंकवाद के खिलाफ और आतंकवाद के प्रति अपनी नई नीति के समर्थन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करना चाहिए। संसद पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) पर 1994 के संसदीय प्रस्ताव को भी दोहरा सकती है। वास्तव में भारत को अब से अपने सभी आधिकारिक संचारों में पीओजेके शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए।

तेजी से बिखरती दुनिया में भारत की सबसे बड़ी ताकत सभी भारतीयों की एकता है। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का हर भारतीय ने जश्न मनाया है। चूंकि पहलगाम आतंकी हमले के बाद सभी राजनीतिक दलों ने मोदी सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया था, इसलिए ऑपरेशन की सफलता सभी राजनीतिक दलों की भी जीत है। संसद के अगले सत्र में दुनिया को यह भी बताना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के मामले में भारत राजनीतिक रूप से भी पूरी तरह एकजुट है। जय भारत!

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