विश्व के अनेक हिस्से आज तनावग्रस्त हैं। यूक्रेन—रूस, इस्राएल—हमास, इस्राएल—लेबनान के बाद अब इस्राएल—ईरान के बीच युद्ध के पैंतरे तीखे होते जा रहे हैं। इस्राएल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को एक बार फिर अस्थिरता की ओर धकेल दिया है। इस्राएल के रक्षा मंत्री ने ईरान के सर्वोच्च शिया नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को चेतावनी दी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर खामेनेई झूठी हनक छोड़कर बंकर से बाहर नहीं आते तो कहीं उनका इराक के पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन जैसा हाल न हो जाए। इस्राएल के एक जिम्मेदार मंत्री की यह चेतावनी एक स्पष्ट संकेत है कि यह टकराव अब केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा है, बात कहीं आगे बढ़ चुकी है। इसके साथ ही, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा खामेनेई को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने को कहना इस संघर्ष की और गंभीर तस्वीर पेश करता है।
इस्राएल ने दावा किया है कि उसे पता है कि खामेनेई किस खंदक में छुपे बैठे हैं, लेकिन वह ‘नागरिकों की मौत नहीं चाहता’। इस्राएल का यह बयान दोहरे संदेश के रूप में देखा जा रहा है—एक ओर तो यह दिखाता है कि इस्राएल सैन्य ताकत में कम न समझा जाए, वहीं दूसरी ओर यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह दिखाने की कोशिश भी हो सकती है कि इस्राएल मानवीय मूल्यों का पालन कर रहा है। इस्राएल पहले ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले कर चुका है, जिसमें कई वैज्ञानिक और परमाणु एजेंसी के अधिकारी मारे जा चुके हैं।
उधर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में लिखा है कि ‘अमेरिका ने ईरानी हवाई क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया है और अब खामेनेई को बिना शर्त आत्मसमर्पण करना होगा, अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे।’ ट्रंप ने यह भी कहा कि अमेरिका जानता है कि खामेनेई कहां छिपे हैं, लेकिन फिलहाल उन्हें मारने का इरादा नहीं है। यह बयान न केवल सैन्य दबाव का संकेत है, बल्कि ये यह भी दर्शाता है कि अमेरिका इस संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है।

ईरान के सर्वोच्च मजहबी नेता खामेनेई ने इस्राएल पर भरपूर पलटवार करने की बात कही है। उनका यह रुख दर्शाता है कि ईरान झुकने को तैयार नहीं है। हालांकि, अब तक की घटनाओं में ईरान की राजधानी तेहरान बुरी तरह से ध्वस्त दिख रही है। एक सच यह भी है कि ईरान पर अब चौतरफा दबाव है, जिसमें एक ओर इस्राएल के हमले, दूसरी ओर अमेरिका की धमकी, और तीसरी ओर उसका अपना परमाणु कार्यक्रम है।
ट्रंप और इस्राएल की चेतावनियों में बार-बार इराक के तानाशाह नेता सद्दाम हुसैन और लीबिया के पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी का ज़िक्र किया जा रहा है। उन्होंने संकेत दिया है कि अगर खामेनेई ने आत्मसमर्पण नहीं किया, तो उनका अंजाम भी वैसा ही हो सकता है। इतिहास बताता है कि अमेरिका जिन नेताओं को “खतरा” मानता है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करता है—चाहे वह 2003 में सद्दाम की गिरफ्तारी हो या 2011 में गद्दाफी की हत्या।
इस्राएल और अमेरिका का ईरान के साथ यह तनाव अचानक परवान नहीं चढ़ा है। यह वक्त के साथ बढ़ता गया है। उदाहरण के लिए, गत मार्च महीने में इस्राएल के प्रधानमंत्री ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ‘वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा’ बताया था। इसके बाद सीमित साइबर हमलों की शुरुआत हुई जिसमें ईरानी रडार और डिफेंस नेटवर्क प्रभावित हुए। फिर अप्रैल 2025 में इस्राएल ने सीरिया में ईरानी सैन्य अड्डों पर हवाई हमले किए। प्रतिक्रिया में ईरान ने कुछ छोटे ड्रोन हमले इस्राएली क्षेत्र पर किए, लेकिन उससे खास नुकसान नहीं हुआ था।

इसके बाद गत मई माह में यानी पिछले महीने अमेरिका ने “ऑपरेशन स्टॉर्म क्लाउड” के तहत खाड़ी क्षेत्र में अपने युद्धपोत और फाइटर जेट तैनात कर दिए। ट्रंप ने तब बयान दिया था कि ‘ईरान को सबक सिखाना ज़रूरी है।’ इसके बाद से इस्राएल ने ईरान पर ताबड़तोड़ मिसाइलें बरसाकर उसके परमाणु केन्द्र पर प्रहार किया। इस हमले में ईरान के कई रक्षा अधिकारी भी मारे गए। गत 12 जून को आखिरकार इस्राएल के रक्षा मंत्री का बयान आया कि “हमें पता है खामेनेई किस बंकर में हैं, लेकिन हम आम नागरिकों की मौत नहीं चाहते।” अमेरिका ने भी खामेनेई को आत्मसमर्पण की चेतावनी दी।
अब तक संयुक्त राष्ट्र या अन्य वैश्विक शक्तियों की ओर से इस तनाव पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन अगर यह संघर्ष और गहराता है, तो इसका असर केवल मध्य-पूर्व तक सीमित नहीं रहेगा। वैश्विक तेल आपूर्ति, व्यापार मार्ग और क्षेत्रीय स्थिरता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। ईरान पर इस्राएल और अमेरिका का दोतरफा प्रहार केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह वैश्विक कूटनीति, रणनीतिक दबाव और ऐतिहासिक अनुभवों का मेल कहा जा सकता है। रक्षा विशेषज्ञों और मध्य एशियाई समीकरणों के विशेषज्ञों का मानना है कि खामेनेई के सामने अब दो ही विकल्प हैं—या तो वह अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकें या फिर एक और विनाशकारी युद्ध की ओर बढ़ें, जो कब खत्म होगा, कहा नहीं जा सकता। देखना यह है कि यह टकराव बातचीत की मेज़ पर सुलझेगा या युद्ध के मैदान में।
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