आचार्य प्रेमानंद महाराज ने कहा कि जीवन में निराश होने की जरूरत नहीं है, यहां हर किसी के लिए जगह बची हुई है। यह वाक्य न केवल हमें दिलासा देता है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक सच्चाई को भी उजागर करता है। जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, कितनी ही बार असफलता का सामना क्यों न करना पड़े, आशा और आस्था का दीपक बुझने नहीं देना चाहिए।
हर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है, जब उसे लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा। सारे प्रयास व्यर्थ लगते हैं, सपने टूटते हुए नजर आते हैं, और मन थक कर बैठ जाना चाहता है। लेकिन आचार्य जी कहते हैं जब सभी रास्ते बंद हो जाएं, जब मन थक जाए, और जीवन हारने लगे, तब ईश्वर की शरण में चले जाओ। वहीं से शुरू होता है सच्चा बल, वहीं से मिलती है नई ऊर्जा। ईश्वर की शक्ति अमोघ है अर्थात वह कभी व्यर्थ नहीं जाती। जब मनुष्य पूरे समर्पण और विश्वास के साथ प्रभु की शरण में आता है, तो वह एक ऐसी शक्ति से जुड़ता है जो संसार की हर बाधा को पार कर सकती है। यह शक्ति हमें भीतर से बदलती है, हमें अपने ही आत्मबल से परिचित कराती है और वहीं से शुरू होती है हमारी असली जीत।
इसलिए अगर जीवन में अंधकार छा जाए, तो डरिए नहीं। जान लीजिए कि अभी भी एक रास्ता बाकी है, एक स्थान बाकी है — और वह स्थान है ईश्वर की शरण। वहाँ न कोई अस्वीकृति होती है, न कोई हार। वहाँ केवल प्रेम है, विश्वास है, और अंततः विजय है। आइए, हम सब यह स्वीकार करें कि हार जीवन का अंत नहीं है, बल्कि एक सीख है, एक संकेत है कि अब समय आ गया है ईश्वर से जुड़ने का। जब तक जीवन है, तब तक आशा है। और जब तक प्रभु हैं, तब तक कोई भी हार अंतिम नहीं होती।
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