क्या निकाह बिना काजी के हो सकता है या फिर बिना निकाहनामे के? यदि होता भी है तो क्या वह वैध है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि भारत के हैदराबाद में तेजी से ऐसे मामले सामने निकलकर आए हैं। गरीब मुस्लिमों की लड़कियों के साथ “ऑफ द रिकार्ड” निकाह हो रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार पुराने हैदराबाद में गरीब मुस्लिम परिवारों की लड़कियों के साथ ऐसा ही हो रहा है। ऐसे निकाह का चलन बढ़ गया है, जिसमें लड़कियों के साथ निकाह तो होता है, मगर न ही काजी होता है और न ही निकाहनामा होता है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से इस पूरे जाल को सामने लाया गया है।
राबिया (नाम परिवर्तित) एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी है। वह पांच बच्चों मे सबसे बड़ी है। उसकी निकाह की उम्र निकल चुकी थी और उसके रिश्तेदार भी उसके साधारण रूपरंग को लेकर उस पर फब्तियां कसते थे। फिर उसके पास इमरान (नाम परिवर्तित) का रिश्ता आया। इमरान ने कहा कि वह ऑफ द रिकार्ड निकाह करेगा, अर्थात इसमें निकाहनामा आदि नहीं होगा। इमरान ने शादी के लिए 50,000 मेहर की रकम का भी वादा किया।
राबिया के घरवालों को इसमें कोई भी आपत्ति नहीं हुई। दो गवाह आए और निकाह हो गया। न ही कोई काजी आया और न ही कोई निकाहनामा बना। मगर तीन महीने बाद ही राबिया अपने अम्मी अब्बू के घर वापस आ गई। मारपीट से उसका पूरा शरीर सूजा हुआ था लेकिन वह इमरान को किसी भी तरह से कोर्ट मे नहीं घसीट सकती है।
राबिया के घरवालों के पास कोई सबूत नहीं है कि उसकी शादी इमरान के साथ हुई थी। राबिया का कहना है कि एक निकाहनामे के बिना, उसके पास शादी का कोई सबूत ही नहीं है, तो वह कैसे उसके खिलाफ कोई कदम उठा सकती है?
ऐसे निकाह में सबसे बड़ा नुकसान लड़कियों का ही होता है। उनके पास किसी भी तरह के कोई दस्तावेज़ नहीं होते हैं। वे न्यायालय में अपने निकाह को कैसे साबित करेंगी? ऐसे निकाह को खुतबा निकाह कहा जाता है। पीड़ितों के साथ काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन दिनों ऐसे निकाह बहुत आम हो गए हैं। इनमें अधिकतर यही होता है कि लड़कियों की शादी की जाती है और फिर उन्हें कुछ ही महीनों बाद किसी और लड़की के लिए छोड़ दिया जाता है। इन पीड़िताओं के पास ऐसा कोई सबूत नहीं होता कि जिससे वे यह साबित कर सकें कि उनका निकाह हुआ है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह कहना है कि ऐसी नकली शादियाँ 2017 के बाद शुरू हुईं, जब तीन तलाक प्रतिबंधित हुआ। इस कानून के कारण कई लोग कानूनी शिकंजे में फँसने से डरते हैं और फिर औपचारिक तलाक के बिना अपनी बीवियों को छोड़ देते हैं।
शाहीन वुमन’स रीसोर्स एंड वेल्फेयर एसोसिएशन की संस्थापक जमीला निशात का कहना है कि ये पहले होने वाली कॉन्ट्रैक्ट मैरिज अर्थात मुताह निकाह के जैसा ही है, मगर मुताह निकाह में कम से काम निकाहनामा और काजी होता था, और जिसके कारण लड़की कम से कम अपनी मेहर तो मांग सकती थी। मगर इस निकाह में तो ऐसा कुछ भी नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार महिलाओं को अक्सर एक स्टैम्प पेपर दे दिया जाता है मगर इसमें वही नाम होते हैं कि दो लोग निकाह कर रहे हैं और गवाह होते हैं। एक और पीड़ित सामिया (नाम परिवर्तित) ने बताया कि उसके शौहर ने ऐसे ही न जाने कितने निकाह कर रखे हैं। वह आठ महीने उसके साथ रहा और फिर एक दिन उसने उसे सैदाबाद में उसकी अम्मी के घर छोड़ दिया और फिर कहा कि अब वह कभी भी उसके घर न आए।
उसने यह भी कहा कि उसके शौहर ने कहा कि उसकी एक गर्लफ्रेंड है, जिसके साथ वह शादी करेगा। टाइम्स ऑफ इंडिया ने ऐसे ही ब्यूरो से क्लाइंट बनकर बात की तो उनसे भी कहा था कि हाँ, काम हो जाएगा। तीन महीने तक के लिए ऐसी शादी होगी। कोई निकाहनामा या काजी नहीं होगा, हम हर चीज का ख्याल रख लेंगे (जैसे पुलिस जांच आदि)।
इसमें कहा गया है कि ब्यूरो वाले लड़के की जेब के आधार पर लड़की उपलब्ध कराते हैं। उस महिला ने कहा था कि “हम आमतौर पर उन महिलाओं की व्यवस्था करते हैं जो पहले से शादीशुदा हैं। लेकिन अगर आप 5 लाख रुपये देने को तैयार हैं, तो हम आपको कुंवारी लड़की भी दिलवा सकते हैं। हम लड़की से एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाएंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निकाह खत्म होने के बाद वह कोई समस्या पैदा न करे।“अक्सर ऐसी लड़कियों की तलाश की जाती है, जो गरीब हों और जो आसानी से शिकार बन जाएं। हालांकि ऐसे निकाह की मुफ्ती ओमर अबीदीन ने आलोचना की है और इसमें खुतबा जोड़े जाने पर भी ऐतराज जताया है।
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