आपातकाल: जब लोकतंत्र पर पड़ा तानाशाही का काला पर्दा
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

आपातकाल: जब लोकतंत्र पर पड़ा तानाशाही का काला पर्दा

25 जून 1975 को भारत में आपातकाल ने लोकतंत्र को दबाने की कोशिश की। इंदिरा गांधी की सत्ता, मीडिया सेंसरशिप, और जबरन नसबंदी ने देश को हिलाया।

by राकेश सैन
Jun 16, 2025, 02:38 pm IST
in भारत
Emergency 1975
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

25 जून का दिन केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लोकतंत्र के इतिहास में वह काला दिन है जब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार ने ही अपनी मर्यादाएं भुला कर संविधान की हत्या करने का दुष्कर्म किया। देश में पांच दशक पहले जब सत्ता में कांग्रेस थी और देश का नेतृत्व श्रीमती इंदिरा गांधी कर रही थीं, उस समय परिदृश्य ऐसा बदला कि पूरा देश आपातकाल में चला गया। संविधान पर सत्ता और लोकतंत्र पर ‘लॉकतंत्र’ भारी पड़ गया। उस समय की परिस्थितियां को कोई भी भूल नहीं पाता, इसीलिए 25 जून, 1975 का वो दिन अश्वथामा के जख्मों की भाँति देशवासियों के दिलों में आज रिस रहा है।

आपातकाल की पृष्ठभूमि

एमरजेंसी की पृष्ठभूमि में जाएं तो सामने आता है कि 5वीं लोकसभा के लिए मार्च 1971 आम चुनाव हुए। ‘गरीबी हटाओ देश बचाओ’ जैसे नारे के बल पर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 352 सीटें मिलीं। इंदिरा ने रायबरेली सीट से चुनाव लड़ा और उनके सामने राममनोहर लोहिया की पार्टी के नेता राजनारायण थे। चुनाव में हार के बाद राजनारायण ने 24 अप्रैल, 1971 को इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती दी। आरोप लगाया कि इन चुनावों में इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। इस मामले में 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय आया। न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया।

लोकतंत्र पर ‘लॉकतंत्र’ की मार

इसके अलावा अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। बाद में 24 जून को सर्वोच्च न्यायालय ने भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर मुहर लगाई। अदालतों के फैसले के बाद जयप्रकाश नारायण जैसे कई बड़े नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अगले दिन ही 25 जून को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर डाली। लोगों के सभी मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। विपक्षी नेताओं को पकड़-पकड़कर जेलों में डाला गया। मीडिया के ऊपर भी सेंसरशिप लगा दी गई। विरोध करने वालों को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेलों में ठूंसा जाने लगा।

देश के भीतर जो हालात थे, उनके बारे में बताने, दिखाने और सूचनाओं का एकमात्र माध्यम मीडिया ही था, लेकिन 28 जून को सरकार ने मीडिया पर सेंसरशिप लागू की। कई बड़े अखबारों के दफ्तर की बिजली काट दी गई। खबरों को सेंसर किया जाने लगा। बिना अनुमति के अखबार नहीं छपते थे। आपत्तिजनक खबर छापने की मनाही थी। यही नहीं, कार्टूनों, तस्वीरों और विज्ञापनों को भी पहले सेंसरशिप के लिए भेजना पड़ता था। एक तरीके से कहें तो मीडिया के हाथ पूरी तरह बांध दिए गए थे। इसका असर केवल समाचारपत्रों-पत्रिकाओं पर ही नहीं बल्कि फिल्मों पर भी पड़ा। बॉलीवुड ने इस लोकतंत्र विरोधी हरकत के खिलाफ आवाज उठाई तो उसे भी दबाने का प्रयास किया गया।

एमरजेंसी के खिलाफ आई.एस. जौहर की फिल्म नसबंदी (1978) का गाना आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में घूम रहा है-

‘क्या मिल गया सरकार इमरजेंसी लगा के।

नसबंदी करा के हमारी बंसी बजा के।

कुछ नोट दिखा के मेरी सगाई छीन ली।

टीन घी का दिखा मेरी लुगाई छीन ली।

ऐसा बजाया बैंड ट्रांजिस्टर दिखा के।

नसबंदी करा के हमारी बंसी बजा के।’

संजय गांधी ने शुरू कराई जबरन नसबंदी

ज्ञात हो कि एमरजेंसी के दौरान असंख्य लोगों की जबरन नसबंदी कर दी गई थी। नसबंदी के लिए लोगों को कुछ रुपये, घी का टीन व ट्रांजिस्टर (रेडियो) दिये जाते थे, जिसका जिक्र उक्त गाने में भी मिलता है। इस गाने से खीझ कर सरकार ने फिल्म पर रोक लगा दी। फिल्म ‘नसबंदी’ संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम को जनता के सामने लाई थी। फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह से नसंबदी के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पकड़ा गया। फिल्म का एक गाना था:

‘कितने ही निर्दोष यहाँ मीसा के अंदर बंद हुए।

अपनी सत्ता रखने को जो छीने जनता के अधिकार।

गांधी तेरे देश में ये कैसा अत्याचार।’

ये गाना किशोर कुमार ने गाया था। दरअसल इमरजेंसी के दौरान किशोर कुमार उस वक्त बहुत नाराज हो गए, जब उन्हें कांग्रेस की रैली में गाने के लिए कहा गया। प्रीतिश नंदी के साथ छपे एक साक्षात्कार में किशोर ने कहा था, ‘मैं किसी के आदेश पर नहीं गाता।’ एमरजेंसी से नाराज किशोर कुमार ने पहले मुंबई में युवा कांग्रेस की रैली में शो करने वाले निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने संजय गांधी के 20-सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन बनाने और उनमें भाग लेने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। इस बात से तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ला काफी गुस्सा हुए और उन्होंने अनौपचारिक तरीके से किशोर कुमार के गानों को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर लगभग छह महीने के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था। कहते हैं कि बाद में मोहम्मद रफी ने अपने प्रयासों से किशोर कुमार पर लगे बैन को हटवाया।

कांग्रेस नेता संजय गांधी पर आरोप था कि एमरजेंसी के दौरान 1975 में बनी फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ के प्रिंट कथित तौर पर उनके कहने पर जलाए गए। ये फिल्म जनता पार्टी के सांसद अमृत नाहटा ने बनाई, जिसके नेगेटिव जब्त कर लिए गए और बाद में कथित तौर पर जला दिए गए। फिल्म में शबाना आजमी गूँगी जनता की प्रतीक थीं, उत्पल दत्त गॉडमैन के रोल में थे और मनोहर सिंह एक राजनेता के रोल में, जो एक जादुई दवा पीने के बाद अजीबो-गरीब फैसले लेने लगते हैं।

इमरजेंसी के इर्द-गिर्द बनी निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म ‘इंदु सरकार’ को लेकर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने अराजकता की और इस फिल्म पर भी कैंची चल गई। फिल्म शोले के आखिरी सीन में रमेश सिप्पी ने दिखाया कि ठाकुर कील लगे जूतों से गब्बर को रौंद देता है। लेकिन वो इमरजेंसी का दौर था और सेंसर बोर्ड नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ दिखाया जाए जिससे लगे कि कोई भी कानून अपने हाथ में ले सकता है। बोर्ड चाहता था कि गब्बर को पुलिस के हवाले कर दिया जाए, लेकिन रमेश सिप्पी अड़ गए। शोले फिल्म में सेंसर ने नौकर रामलाल का वो सीन काट दिया जिसमें वो जोर-जोर से ठाकुर के उन जूतों में कील ठोकता है जिससे ठाकुर गब्बर को मारने वाला था- क्योंकि रामलाल आँखों में विद्रोह की झलक थी।

हर दिल नायक देव आनंद ने इमरजेंसी के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और खुलेआम इंदिरा गांधी के फैसले की निंदा की थी। अन्य विरोधियों की तरह उनकी भी आवाज दबाने की पुरजोर कोशिश की गई। उनकी फिल्म ‘देस परदेस’ में कांग्रेस ने बहुत बाधा डालने की कोशिश की। हालांकि, देव आनंद कहा वे किसी से डरने वाले नहीं। वह पब्लिक प्लेटफॉर्म पर इसका विरोध करते रहे और प्राण, साधना व ऋषिकेश मुखर्जी जैसे सितारों ने उनका साथ दिया।

देव आनंद ने इंदिरा-संजय को कहा था तानाशाह

वह पब्लिक प्लेटफॉर्म पर इसका विरोध करते रहे और प्राण, साधना व ऋषिकेश मुखर्जी जैसे सितारों ने उनका साथ दिया। मुंबई के जुहू बीच पर एक भाषण के दौरान देव आनंद ने इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को तानाशाह बताकर हमला बोला। यही नहीं, उन्होंने सरकार से मुकाबला करने के लिए उस समय नेशनल पार्टी नामक एक राजनीतिक दल भी बनाया था। देव आनंद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘मैं समझ गया था कि मैं उन लोगों के निशाने पर हूँ जो संजय गांधी के करीब हैं।’

इस शृंखला में शत्रुघ्न सिन्हा भी उन साहसी अभिनेताओं में से थे, जो इमरजेंसी के खिलाफ खड़े रहे। संजय गांधी और वीसी शुक्ला ने पूरी कोशिश की कि वे फिल्मी सितारों को इमरजेंसी के पक्ष में प्रचार-प्रसार करवाएं। शत्रुघ्न सिन्हा से भी इसमें भाग लेने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इसी कारण से न केवल उनकी फिल्मों को दूरदर्शन से बाहर कर दिया गया, बल्कि धमकी भी मिली थी कि अगर वह बिहार में पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे तो उन्हें बड़ौदा डायनामाइट केस में फंसा दिया जाएगा।

मनोज कुमार आपातकाल के खिलाफ गए थे अदालत

फिल्म उद्योग के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक रहे मनोज कुमार भी एमरजेंसी के खिलाफ खड़े रहे। संडे गार्जियन से बातचीत में मनोज ने बताया था कि उन्हें पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम द्वारा लिखित एक आपातकाल-समर्थक दस्तावेज का निर्देशन करने के लिए कहा गया था। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उन्हें इसका प्रस्ताव दिया था। हालांकि, उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया। साथ ही अमृता को ये भी कहा कि क्या वह एक लेखक के रूप में बिक चुकी हैं। इतना कहते ही अमृता को शर्म महसूस होने लगी और उन्होंने एक्टर को लिखी हुई कहानी जलाने तक के लिए कह दिया था। मनोज कुमार ने सरकार से पंगा लिया तो इसकी प्रतिक्रिया तो सामने आनी ही थी। धीरे-धीरे मनोज की फिल्मों को दूरदर्शन से बाहर कर दिया गया। हालांकि, मनोज कुमार ने इसे बर्दाश्त नहीं किया और अदालत का दरवाजा खटखटाया और केस जीत गए। मनोज ऐसे पहले फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ मुकदमा लड़ा और जीता भी था।

बॉलीवुड के दिलेर सितारों में एक नाम राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता स्नेहलता रेड्डी का भी है, जिन्होंने इमरजेंसी का विरोध तो किया। साथ ही कई आंदोलनों में भी शामिल रहीं। इसी कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और उनके खिलाफ मनगढ़ंत आरोपों पर कठोर मीसा (आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया था। स्नेहलता को बिना किसी मुकदमे के 8 महीने तक बेंगलुरु केंद्रीय जेल में बंद रखा गया। जेल में उन्हें ऐसी बीमारी हो गई जिसने उनकी जान ले ली। जेल से रिहा होने के ठीक 5 दिन बाद ही उनका निधन हो गया।

इतिहास साक्षी है कि इंदिरा गांधी की इस तानाशाही ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, राजनेताओं के नेतृत्व में लोगों ने जेलों को भर दिया, सरकारी अत्याचार सहे परन्तु अंतत: लोकतंत्र को बहाल करवाया गया। देश के स्वतंत्रता संग्राम जितना महत्त्वपूर्ण यह लोकतंत्र बचाओ आंदोलन था, जिसमें देश के हर वर्ग ने अपनी-अपनी भूमिका निभाई और उस समय सत्ताधारी कांग्रेस को यह सबक सिखा दिया कि ‘ओनली इंदिरा इज नॉट इण्डिया’, इण्डिया का अर्थ है ‘हम भारत के लोग।’

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के स्वयंक के विचार हैं। आवश्यक नहीं कि पॉञ्चजन्य उनसे सहमत हो)

Topics: बॉलीवुड और आपातकालEmergencyMISA lawलोकतंत्रKishore KumarDemocracyBollywood and emergencyEmergency 1975जयप्रकाश नारायणJayaprakash NarayanAllahabad High Courtआपातकाल 1975इलाहाबाद उच्च न्यायालयनसबंदीइंदिरा गांधीमीडिया सेंसरशिपआपातकालकिशोर कुमारIndira Gandhi
Share6TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Disrobbing women an attempt of rape

इलाहाबाद हाई कोर्ट: ‘महिला के कपड़े जबरन उतारना बलात्कार का प्रयास, 10 साल की सजा बरकरार’

दवाई और रिहाई की जगह मिली मौत

संविधान, संशोधन और सवाल: शब्दों से पहले बात हो प्रक्रिया और वैधानिकता की

आपातकाल के  दाैरान इंदिरा गांधी के साथ संजय गांधी। संजय ही आपातकाल को नियंत्रित किया करते थे।

आपातकाल@50-हिटलर-गांधी : थाने बन गए थे यातना शिविर

तानाशाही कांग्रेस के डीएनए में है, कांग्रेस को आपातकाल के लिए माफी मांगनी चाहिए- शिवराज सिंह चौहान

संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस

आपातकाल के विरुद्ध जब संघ ने दिखाया आईना

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

लालू प्रसाद यादव

चारा घोटाला: लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सजा बढ़ाने की सीबीआई याचिका स्वीकार

कन्वर्जन कराकर इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहा था ‘मौलाना छांगुर’

­जमालुद्दीन ऊर्फ मौलाना छांगुर जैसी ‘जिहादी’ मानसिकता राष्ट्र के लिए खतरनाक

“एक आंदोलन जो छात्र नहीं, राष्ट्र निर्माण करता है”

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हाईकोर्ट ने दिया ‘स्पेशल स्क्रीनिंग’ का आदेश

उत्तराखंड में बुजुर्गों को मिलेगा न्याय और सम्मान, सीएम धामी ने सभी DM को कहा- ‘तुरंत करें समस्याओं का समाधान’

दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना और इसका भारत पर प्रभाव

उत्तराखंड : सील पड़े स्लाटर हाउस को खोलने के लिए प्रशासन पर दबाव

पंजाब में ISI-रिंदा की आतंकी साजिश नाकाम, बॉर्डर से दो AK-47 राइफलें व ग्रेनेड बरामद

बस्तर में पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने घर वापसी की है।

जानिए क्यों है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गुरु ‘भगवा ध्वज’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies