‘तानसेन का ताना-बाना’ पुस्तक का लोकार्पण
गत 9 जून को नई दिल्ली के झंडेवालान स्थित केशव कुंज में ‘तानसेन का ताना-बाना‘ पुस्तक का लोकार्पण हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, ‘अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है तो हमें अपने इतिहास, साहित्य और संस्कृति का स्मरण कर उसे समृद्ध करना होगा। हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत महत्वपूर्ण है, जो भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है। हमें अपनी कमियां दूर करते हुए अपने इतिहास को लिखते रहना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को सही दिशा मिले। ऐसी पुस्तकें नई पीढ़ी को उपहार में दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि तानसेन का संगीत के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है। जब शासन में ऐसे लोग बैठे थे, जो संगीत को ज्यादा महत्व या प्रोत्साहन नहीं देते थे, तब तानसेन ने संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने और उसे कायम रखने में बहुत संघर्ष किया। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि तानसेन पर 500 वर्ष बाद भी लेखन जारी है, यह इस बात का प्रमाण है कि उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि यह किताब तानसेन के जीवन को समझने और शोध में मदद करेगी।
पुस्तक के लेखक राकेश शुक्ला ने कहा कि तानसेन की यात्रा सिर्फ अकबर के दरबार तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह सतना के छोटे से गांव बांधा से चली थी, और इसके साथ बहुत कुछ है जो इतिहास से छिपा रह गया है। सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली ने बताया कि सुरुचि प्रकाशन ने पिछले 50 वर्ष में उन पुस्तकों को छापा, जिन्हें कोई नहीं छापता था। अब तक 250 से अधिक पुस्तकें गूगल पर निःशुल्क उपलब्ध हैं, जिन्हें लाखों लोग प्रतिमाह डाउनलोड करते हैं। भविष्य में इन्हें ई-बुक के रूप में और अधिक लोगों तक पहुंचाया जाएगा।
‘मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय’ का नया नाम
‘महर्षि सुश्रुत आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय’
गत दिनों जबलपुर स्थित ‘मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय’का नया नाम रखा गया। अब यह विश्वविद्यालय ‘महर्षि सुश्रुत आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय’ के नाम से जाना जाएगा। नए नाम की घोषणा राज्य के राज्यपाल एवं कुलाधिपति मंगू भाई पटेल ने की। उल्लेखनीय है कि 9 जनवरी, 2024 को विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद् बैठक में सर्वसम्मति से नाम बदलने का निर्णय लिया गया था और एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसे सरकार के पास भेजा गया था।
इसे देखते हुए सरकार ने नए नाम की घोषणा की। विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. अशोक खंडेलवाल ने कहा कि इस नामकरण का उद्देश्य है प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान में महर्षि सुश्रुत के योगदान का स्मरण करना और विवि में कार्यरत शिक्षकों और अध्ययनरत छात्रों को प्राचीन ज्ञान और तकनीक के अध्ययन और अनुसंधान के लिए प्रेरित करना।
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