विश्व आर्थिक मंच की “वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2025” का प्रकाशन होने के साथ ही विश्व स्तर पर भारत को 146 देशों में 131वें स्थान पर दिखाने का प्रयास हुआ है। यानी कि दुनिया के जिन महत्वपूर्ण 146 देशों का समग्र अध्ययन करने का दावा जो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा किया गया है, उसमें भारत सिर्फ दुनिया के 15 देशों से आगे है, अन्यथा तो भारत की स्थिति इतनी बदतर है कि वह बांग्लादेश से भी बहुत पीछे खड़ा है। देखा जाए तो स्विट्ज़रलैंड में स्थित इस ग़ैर लाभकारी संस्था विश्व आर्थिक फ़ॉरम का दावा बहुत आश्चर्य में डालता है कि कैसे पिछले साल भर से अपने आंतरिक संघर्ष से जूझ रहा बांग्लादेश भी अपनी प्रगति इतनी कर लेता है कि वह एक वर्ष में वैश्विक लैंगिक अंतर रैंकिंग में सबसे बड़ी छलांग (75 स्थान ऊपर) पहुंच जाता है। जिसमें कि इसका समग्र लैंगिक समानता स्कोर 77.5 प्रतिशत तक उल्लेखनीय रूप से बढ़ता है।
यहां अपनी रिपोर्ट प्रकाशन के साथ वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का यह भी दावा है कि उसने यह रिपोर्ट चार आयामों में लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति को मापने के लिए प्रस्तुत की है, जिसके आधार हैं, आर्थिक अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक नेतृत्व। किंतु क्या वास्तव में भारत की छवि इतनी खराब हुई है जो यह बताने का प्रयास कर रहा है? क्योंकि अभी एक ओर सामने आई रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की है। जिसके डैशबोर्ड पर भारत को अब सामाजिक सुरक्षा में वैश्विक स्तर पर दूसरा स्थान दिया गया है। उसके अनुसार, भारत में सामाजिक सुरक्षा दायरे में आने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। आईएलओ के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ हुंगबो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों और मजदूर वर्ग के लिए भारत की जन केंद्रित कल्याणकारी नीतियों की प्रशंसा की है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 94 करोड़ लोग अब सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आ गए हैं यानी देश की कुल 64.3 प्रतिशत आबादी कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ अवश्य ले रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत का सामाजिक सुरक्षा कवरेज 2015 में महज 19 प्रतिशत था जो 2025 में बढ़कर 64.3 प्रतिशत पर पहुंच गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो इसमें 45 प्रतिशत अंकों का ऐतिहासिक उछाल आया है।
इस अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अलावा हाल ही में विश्व बैंक की जारी की गई रिपोर्ट भी सामने आई, इसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने गरीबी के खिलाफ लड़ाई में बड़ी जीत हासिल की है। इस रिपोर्ट के आंकड़े कहते हैं कि बीते 11 साल में भारत में गरीबों की संख्या 27.1 फीसदी से घटकर महज 5.3 फीसदी रह गई है। वहीं, एक अन्य रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत लगातार तेज ग्रोथ करते हुए बीते दिनों जापान को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया है। अब यहां सोचनेवाली बात यह है कि या तो यह ग़ैर लाभकारी संस्था विश्व आर्थिक फ़ॉरम की अभी सामने आई “वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2025” रिपोर्ट सही है या फिर हाल के दिनों में सामने आईं भारत को लेकर वे तमाम रिपोर्ट सही हैं जो यह बता रही हैं कि दुनिया के ताकतवर देशों में हर स्तर पर भारत न सिर्फ अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, बल्कि तेजी से हर क्षेत्र में अपना लोहा दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों को भी मनवा रहा है, जिसका असर यह है कि राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर कई देशों को समझ ही नहीं आ रहा है कि कैसे वे भारत का मुकाबला कर पाएंगे!
आज यदि हम विश्व आर्थिक मंच के कहे पर विश्वास करते हैं, तब तो मात्र 64.1 प्रतिशत के समता स्कोर के साथ भारत दक्षिण एशिया में सबसे निचले रैंक वाले देशों में से एक गिना जाएगा। जैसा कि विश्व आर्थिक मंच की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी का कहना है, “ऐसे समय में जब वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ रही है और विकास की संभावना कम है, साथ ही प्रौद्योगिकी और जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी हो रहे हैं, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना आर्थिक नवीनीकरण के लिए एक प्रमुख शक्ति है।…साक्ष्य स्पष्ट हैं। जिन अर्थव्यवस्थाओं ने समानता की दिशा में निर्णायक प्रगति की है, वे स्वयं को अधिक मजबूत, अधिक नवीन और अधिक लचीली आर्थिक प्रगति के लिए तैयार कर रही हैं।”
वास्तव में यहां सादिया जाहिदी की बातों में भारी विरोधाभास नजर आता है। वे जिन अर्थव्यवस्थाओं ने समानता की दिशा में निर्णायक प्रगति करने की बात कह रही हैं, उनमें वह बांग्लादेश भी है, जिसमें पिछले एक साल से मानवाधिकारों की दिन-रात हत्या की जा रही है। रिलीजन के आधार पर भेदभाव का स्तर इतना ऊपर पहुंच गया है कि कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार को फटकार लगा चुकी हैं। जहां तक स्त्री समानता का प्रश्न है, तो उसमें भी स्थिति इतनी अधिक भयानक है कि समानता के स्तर की बात करना बल्कि सोचना भी दूर की बात है। BRAC इंस्टीट्यूट ऑफ़ गवर्नेंस एंड डेवलपमेंट और द एशिया फ़ाउंडेशन द्वारा पिछले वर्षों में जो अध्ययन किए गए वह बताते हैं कि लगभग 43% पुरुष और 22% महिला उत्तरदाताओं ने घर के बाहर काम करने वाली महिलाओं का विरोध किया। इसके अलावा, जब पूछा गया कि क्या पुरुषों को रोजगार में महिलाओं से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए, तो दो-तिहाई पुरुष और 56% महिला उत्तरदाताओं ने इस दृष्टिकोण के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया, जो यह बताता है कि बांग्लादेश में एक महिला की तुलना में पुरुष को कमाने वाले के रूप में महत्व दिया गया है।
दूसरी ओर कई अन्य अध्ययन भी हैं जो बताते हैं कि कैसे बांग्लादेश में महिलाओं के लिए शिक्षा, कौशल निर्माण और रोजगार के उनके अवसर गंभीर रूप से सीमित हैं। बांग्लादेश में, बड़ी संख्या में नौकरियां महिलाओं के लिए लगभग बंद हैं, जैसे ड्राइविंग, प्लंबिंग, उपकरण सर्विसिंग और निर्माण कार्य। यही कारण है कि प्राय: बांग्लादेश में महिलाओं के लिए शिक्षा रोजगार में तब्दील नहीं हो रही हैं। यहां जब भारत की तुलना बांग्लादेश से की जा रही है तो यह भी देखना चाहिए कि भारत क्षेत्रफल में बहुत बड़ा है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है, जबकि बांग्लादेश का क्षेत्रफल 1,48,460 वर्ग किलोमीटर है। इसका अर्थ हुआ कि भारत बांग्लादेश से लगभग 22 गुना बड़ा है। ऐसे में वहां जो महिला अत्याचार की रिपोर्ट सामने आ रही हैं, उन पर गंभीरता से गौर करना चाहिए।
ढाका स्थित मानवाधिकार सांस्कृतिक फाउंडेशन (एमएसएफ) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि फरवरी 2025 में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की 295 घटनाएं दर्ज की गईं, जो जनवरी की तुलना में 24 अधिक हैं। देश के प्रमुख दैनिक ‘द ढाका ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया कि इस्लामी कट्टरपंथी समूह, आतंकवादी और अन्य चरमपंथी तत्व इन घटनाओं में स्पष्ट भूमिका निभाते हैं, जिससे महिलाओं की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा होता है। विभिन्न व्यवसायों से जुड़ी कुल 21 महिलाओं ने स्थानीय मीडिया को बताया कि पिछले तीन महीनों में उन्हें घर के बाहर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। ढाका में रहने वाली 19 से 48 वर्ष की आयु की इन महिलाओं ने सड़क पर उत्पीड़न के कई मामलों की सूचना दी। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें डर है कि विरोध करने पर वे भीड़ का निशाना न बन जाएं।
ये इसी साल पिछले मई माह की बात है, जब इस्लामी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम के हजारों कार्यकर्ता ढाका के सुहरावर्दी उद्यान में एकत्र हुए और महिला मामलों के सुधार आयोग को समाप्त करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि महिला-पुरुष समानता की मांग इस्लामी मूल्यों और पारंपरिक सामाजिक ढांचे के खिलाफ है। कुछ कट्टरपंथी समूहों ने सड़कों पर उतरकर एक महिला के पुतले को साड़ी पहनाकर जलाया और महिलाओं को “घर में रहने और बच्चे पैदा करने” का संदेश दिया।
बांग्लादेश की महिला परिषद एक आंकड़ा मार्च 2025 का प्रस्तुत करती है। उसके अनुसार बांग्लादेश में महिलाओं के विरुद्ध क्रूरता के मामलों में वृद्धि हुर्ई है। सिर्फ मार्च महीने में देश में कुल 442 महिलाओं और लड़कियों को विभिन्न तरह की हिंसा का शिकार होना पड़ा है। बांग्लादेश महिला परिषद की सचिव राबेया बेगम शांति का कहना है, “125 लड़कियों और 38 महिलाओं को इस अवधि को दौरान दुष्कर्म का शिकार होना पड़ा है। इनमें से 18 लड़कियों सहित 36 पीड़िताओं को सामूहिक दुष्कर्म का शिकार होना पड़ा है। दो लड़कियों की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। वहीं इनमें से यौन उत्पीड़न के बाद दो महिलाओं ने आत्महत्या कर ली। इसके अलावा 55 लड़कियां और 15 महिलाएं दुष्कर्म के प्रयास से बच निकलीं।” वे कहती हैं, महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराध उनकी उन्मुक्त आवाजाही को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। महिलाओं को उनके कपड़े, रूपरंग और गतिशीलता को लेकर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को शारीरिक और मौखिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है। वहीं सोशल मीडिया का इस्तेमाल उनके विरूद्ध घृणा फैलाने और धमकी देने के लिए किया जा रहा है।
यहां तक कि महिला परिषद की सचिव राबेया का बांग्लादेश सरकार पर यह आरोप है कि “सरकारी प्राथमिक स्कूल शिक्षक भर्ती में 60 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। इस प्रावधान को हाल ही में खत्म कर दिया गया है।” लेकिन इसके बाद भी यहां विश्व आर्थिक मंच का यह दावा है कि “राष्ट्राध्यक्ष संकेतक में बांग्लादेश की समानता के साथ, अर्थव्यवस्था अब राजनीतिक समानता रैंकिंग में दक्षिणी एशिया में पहले और वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है। आर्थिक भागीदारी और अवसर उपसूचकांक सुधार का दूसरा प्रमुख चालक है, जो मुख्य रूप से श्रम-बल डेटा संशोधनों के कारण है, जो बांग्लादेश की आर्थिक समानता को उसके 2023 के स्तर पर वापस लाता है।” अब यहां सोचनेवाली बात है कि किसे सही माना जाए? जो स्वयं बांग्लादेश के आंतरिक अध्ययन कह रहे हैं, वहां महिलाओं के बीच कार्य करनेवाले सामाजिक संगठन कह रहे हैं या वह जो यह भारत को नीचा दिखाने के लिए विश्व आर्थिक मंच की यह रिपोर्ट आज बता रही है?
कहना होगा कि “वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक” जिन चार प्रमुख आयामों में लैंगिक समानता को मापता है; आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक उपलब्धि, स्वास्थ्य और अस्तित्व, तथा राजनीतिक सशक्तिकरण। उनमें आज वह भारत के साथ पता नहीं क्यों भेदभाव करता हुआ नजर आ रहा है। उसका यह कहना “2025 में भारत 64.4% के समग्र लिंग समानता स्कोर के साथ 131वें स्थान पर होगा। 2024 संस्करण की तुलना में, अन्य अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन के कारण भारत की रैंक (-3) में सापेक्ष गिरावट देखी गई है।” वास्तव में उसके साथ अपने छल का प्रकट करता है। यहां छल शब्द का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है कि क्योंकि बहुत चतुराई के साथ यह अपने आंकड़ों के जरिए एक ओर यह दिखाता है कि भारत पहले की तुलना में कमजोर हुआ है, वह ओर निचले पायदान पर जा पहुंचा है।
दूसरी ओर साथ में यह भी कहता दिखता है कि “एक आयाम जहां भारत समानता बढ़ाता है, वह है आर्थिक भागीदारी और अवसर, जहां इसका स्कोर +.9 प्रतिशत अंकों से सुधरकर 40.7% हो जाता है।…श्रम-बल भागीदारी दर में स्कोर समान (45.9%) रहता है, जो भारत के अब तक के उच्चतम स्तर को दोहराता है भारत स्वास्थ्य और जीवन रक्षा में भी उच्च समानता दर्ज करता है, जो जन्म के समय लिंग अनुपात और स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में बेहतर स्कोर द्वारा संचालित होता है।” तात्पर्य कि श्रम बल भागीदारी दर में अंक पिछले वर्ष के समान (45.9%) रहे हैं यही भारत में अब तक की सर्वाधिक उपलब्धि है। WEF की रिपोर्ट में कहा गया है कि शैक्षिक उपलब्धि के मामले में भारत ने 97.1% अंक प्राप्त किए हैं, जो साक्षरता और उच्च शिक्षा में नामांकन के लिए महिलाओं की हिस्सेदारी में सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र रूप से उपसूचकांक के स्कोर में सकारात्मक सुधार हुआ है।
इसके आगे फिर बहुत ही चतुराई से इस रिपोर्ट में कहा जाता है कि “अन्य देशों की तरह, पुरुषों और महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में समग्र कमी के बावजूद उत्तरार्द्ध में समानता प्राप्त की जाती है। जहां भारत ने पिछले संस्करण से समानता (-0.6 अंक) में मामूली गिरावट दर्ज की है, वह राजनीतिक सशक्तीकरण में है।” किंतु राजनीतिक आंकड़े भी यहां इसके भारत के संदर्भ में गलत नजर आते हैं। साथ ही जिन भी क्षेत्रों में यह रिपोर्ट भारत में महिलाओं की निचली स्थिति दर्शा रही है। वह जूठी इसलिए है, क्योंकि जमीन पर स्त्री-पुरुष समानता की स्थिति इस वैश्विक रिपोर्ट के आंकड़ों से मेल नहीं खाती।
यहां बात सिर्फ मोदी सरकार के पिछले 11 वर्षों की ही हो जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने महिला सशक्तिकरण में एक परिवर्तनकारी बदलाव देखा है, जिसमें निष्क्रिय लाभार्थियों से सक्रिय राष्ट्र-निर्माता के रूप में उनकी भूमिका को साफ देखा जा सकता है। यहां लगातार स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, वित्तीय समावेशन और नेतृत्व में महिलाओं को सशक्त बनाने वाली नीतियों को आगे बढ़ाया जा रहा है।
कुपोषण के खिलाफ सरकार के प्रयास मिशन पोषण 2.0 के माध्यम से देखे जा सकते हैं, जो बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को लक्षित करते हुए ₹1.81 लाख करोड़ की पहल (2021-26) के लिए निर्धारित किए गए हैं। पोषण, स्वास्थ्य और सामुदायिक प्रयासों को एकीकृत करके, पोषण अभियान यहां चल रहा है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और मिशन शक्ति जैसी योजनाओं तक, महिलाओं के विकास से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। मिशन सक्षम आंगनवाड़ी के तहत, 24,533 आंगनवाड़ी केंद्रों (AWC) को सक्षम आंगनवाड़ी में अपग्रेड किया गया है। जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम से अब तक 16.60 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को सहायता प्रदान की गई है। वहीं, जननी सुरक्षा योजना (JSY) ने संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर 11.07 करोड़ महिलाओं की सहायता की जा चुकी है, जबकि सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (SUMAN) 90,015 प्रमाणित सुविधाओं में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए शून्य-लागत वाली स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित कराई जा चुकी है। इसी प्रकार से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान से हर संभव बच्चे को जन्म देनेवाली महिलाओं को सहायता उपलब्ध हो रही है।
प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) ने 2.75 करोड़ लाभार्थियों को घर उपलब्ध कराए हैं, जिनमें से 73% महिलाएँ हैं, जिससे उन्हें सुरक्षा और निर्णय लेने की शक्ति मिली है। ट्रिपल तलाक को खत्म करने, महिलाओं के लिए न्यूनतम विवाह आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव और मातृत्व अवकाश को 26 सप्ताह तक बढ़ाने जैसे कानूनी सुधारों ने भारत में महिला सशक्तिकरण को काफी आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) ने 10.33 करोड़ एलपीजी कनेक्शन वितरित किए हैं, जिससे महिलाओं को भोजन पकाते वक्त होनेवाले धुएं से मुक्ति मिली है। स्वच्छ भारत मिशन ने 12 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए हैं, जिससे महिलाओं की सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित हुई है। जल जीवन मिशन ने 15.6 करोड़ नल के पानी के कनेक्शन दिए हैं जो महिलाओं को सशक्त बनाने में सहायक रही है। संबल में 819 चालू वन स्टॉप सेंटर (OSC) शामिल हैं, जो 10.98 लाख महिलाओं की सहायता करते हैं, और महिला हेल्पलाइन, जो 214.78 लाख कॉल संभालती है। SHe-Box पोर्टल कार्यस्थल पर उत्पीड़न को संबोधित करता है, और नारी अदालत जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व वाले न्याय को बढ़ावा देती है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान ने जन्म के समय लिंग अनुपात सुधार के साथ ही लड़कियों के स्कूल नामांकन को 78% तक बढ़ाया है। सुकन्या समृद्धि योजना ने 4.2 करोड़ से अधिक खाते खोले हैं, जिससे लड़कियों का वित्तीय भविष्य सुरक्षित हुआ है। मई 2025 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से महिला कैडेटों का पहला बैच स्नातक हुआ और महिलाओं ने चंद्रयान-3 जैसे मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) ने 52.5 करोड़ ऋण खातों में 34.11 लाख करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, जिनमें से 68% महिला उद्यमियों को लाभ मिला है। स्टैंड-अप इंडिया योजना ने 2.04 लाख महिला उधारकर्ताओं को 47,704 करोड़ रुपये से अधिक प्रदान किए हैं। दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) ने 10.05 करोड़ महिलाओं को 90.90 लाख स्वयं सहायता समूहों में संगठित किया है, जिसमें लखपति दीदी पहल ने 1.48 करोड़ महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपये कमाने में सक्षम बनाया है।
इतना ही नहीं तो भारत आज महिला STEM स्नातकों और पायलटों के मामले में दुनिया भर में सबसे आगे दिखाई दे रहा है। अनुच्छेद 35A को निरस्त करने से जम्मू और कश्मीर में महिलाओं को समान संपत्ति अधिकार मिले हैं, जिससे क्षेत्र में लैंगिक समानता और मजबूत हुई है।मिशन शक्ति, महिलाओं की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम जैसे ऐतिहासिक कानून से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गई हैं। यहां और भी बहुत कुछ है जो बताया जा सकता है। वस्तुत: इन सभी आंकड़ों से यह साफ है कि मोदी सरकार में महिलाओं के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया है। महिलाएं अब केवल अपने परिवारों के लिए नहीं, बल्कि समाज और देश की समृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। अनेक योजनाओं ने महिलाओं के आत्मसम्मान, सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े बदलाव किए हैं।
ऐसे में विश्व आर्थिक मंच की आई इस रिपोर्ट को लेकर यही कहना होगा कि इसमें भारत को बांग्लादेश समेत कई छोटे-छोटे देशों से भी नीचे पायदान पर जानबूझकर कमजोर दिखाया गया है, ताकि भारतीयों का मनोबल तोड़ा जा सके। सच यही है कि भारत इन दिनों हर क्षेत्र में अच्छा और बहुत अच्छा कर रहा है । वास्तव में हम भारतीयों को बहुत गहराई से इस प्रकार की सभी नकारात्मक रिपोर्ट का गहराई से अध्ययन करते रहने की आवश्यकता है और उनके नैरेटिव को जानने और समझने की गंभीर जरूरत है, जो भारत को उठते हुए, प्रगति करते हुए नहीं देखना चाहते हैं।
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