पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल
जिन्ना के देश के कमअक्ल और तथ्यों से अनभिज्ञ बड़बोले नेता उस देश के लिए किरकिरी की वजह बन रहे हैं, लेकिन उस मजहबी उन्मादी देश की सरकार तो भी उनको विदेश भेजकर अपनी नाक कटवाने से बाज नहीं आ रहा है। मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वाले बिलावल भुट्टो जैसे नेता अपनी ठसक में ही रहते हैं और जो मन में आए बोलते रहते हैं। उन्हें जरा अंदाजा नहीं होता कि उनकी बात से उनके ही देश की लिजलिजी हो रही है। गत कुछ दिनों से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी अमेरिका में हैं और वहां वे भारत के हिस्से जम्मू कश्मीर और आपरेशन सिंदूर को लेकर तथ्यहीन बयानबाजियां कर रहे हैं। ऐसे ही रौ में बहते हुए उन्होंने अमेरिका में एक और विवादास्पद बयान दे दिया। बिलावल ने अमेरिका की अफगान नीति को पाकिस्तान में बढ़ रहे आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। बिलावल को अंदाजा नहीं रहा होगा लेकिन उनके इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है। इतना ही नहीं, अमेरिका से संबंध सुधारने को हाथपैर मार रहे अपने देश की बेइज्जती करा ली है।
जिन्ना के देश के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल ने उस बयान में कहा कि अमेरिका की अफगानिस्तान नीति और वहां से सेना की जल्दबाजी में वापसी के कारण आतंकवादियों को ताकत मिली। उनका दावा है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलते समय कई तरह के आधुनिक हथियार वहीं छोड़ दिए, जो आतंकवादी संगठनों ने कब्जा लिए हैं। बिलावल का कहना है कि उन हथियारों का इस्तेमाल पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
अपने इस वक्तव्य में बिलावल ने साल 2020 में तत्कालीन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा तालिबान के साथ किए गए ‘दोहा समझौते’ का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने जिस जल्दबाजी में अफगानिस्तान से वापसी की, उसने पूरे क्षेत्र को डावांडोल कर दिया। वापसी के दौरान अमेरिका अपने कई आधुनिक हथियार अफगानिस्तान में ही छोड़ के निकल गया, आज आतंकवादी वही हथियार थामे पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन हुए हैं।
यानी बिलावल की मानें तो अमेरिका के छोड़े हथियार अब पाकिस्तान में सक्रिय आतंकियों के हाथों में हैं। उन्हीं के बूते वे पाकिस्तान के सुरक्षाबलों से लोहा ले रहे हैं, उनकी नाक में दम किए हुए हैं। इससे पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा गंभीर खतरे में पड़ चुकी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और पाकिस्तान को आतंकवाद से निपटने के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। यहां बिलावल ने बड़ी चालाकी से अपनी सरकार और सेना द्वारा पाले जा रहे जैशे मोहम्मद, लश्करे तैयबा सरीखे जिहादियों का जिक्र नहीं किया, जिनको नेस्तोनाबूद करने की गरज से ही भारत ने आपरेशन सिंदूर चलाया हुआ है।
हालांकि अभी तक अमेरिका की ओर से बिलावल के इस कथन पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन कई अमेरिकी सांसदों ने पहले ही पाकिस्तान से जैशे-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खत्म करने की मांग उठाई हुई है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सांसद ब्रैड शर्मन ने पाकिस्तान को सलाह दी है कि वे अपने यहां पल रहे आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाएं।
जिन्ना के देश के विदेश मंत्री रहे बिलावल ने खुलेआम अमेरिकी नीतियों की आलोचना की है। लेकिन उन्होंने होशियारी बरतते हुए यह नहीं बताया कि पाकिस्तान ने दशकों तक अफगानिस्तान में तालिबान और अन्य कट्टरपंथी संगठनों को मदद दी है। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने 1980 और 90 के दशक में अमेरिका से अरबों डॉलर की सहायता लेकर अफगान मुजाहिदीनों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए थे। यही संगठन आगे चलकर तालिबान और अल-कायदा जैसे आतंकी नेटवर्क में रूपांतरित हुए हैं।
कहना न होगा, बिलावल भुट्टो का यह लापरवाही भरा बयान पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों में नया विवाद पैदा कर गया है। अमेरिका की अफगान नीति पर सवाल उठाने के साथ-साथ उन्होंने पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर इसके ‘असर’ पर भी अपनी ‘समझ’ जाहिर की है। बेशक, बिलावल के इस बयान के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं!
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