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वैश्विक पांथिक समुदायों की स्थिति और आबादी पर विस्तृत शोध करने वाले संगठन ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ की ताजा रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इसके अनुसार, इस्लाम न केवल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मजहब बन गया है, बल्कि 2010 से 2020 के बीच यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला मजहबी समूह भी बन चुका है। इस दशक में मुस्लिम आबादी में 21 फीसदी की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की गई है, जो 170 करोड़ से बढ़कर 200 करोड़ तक पहुंच गई। यह वृद्धि 10 फीसदी की वैश्विक औसत जनसंख्या वृद्धि से दोगुनी है। इन आंकड़ों से साफ है कि इस्लाम असाधारण जनसांख्यिकीय गति दर्शा रहा है।
प्यू रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 तक, दुनिया की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 26 फीसदी हो गई है, यानी विश्व में हर चार में से एक व्यक्ति मुस्लिम है। इसके विपरीत, गैर-मुस्लिम आबादी में केवल 9.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। हिंदू जैसे कुछ अन्य पंथों में 0.1 फीसदी की गिरावट देखने में आई है।
इस्लाम की वृद्धि का क्षेत्रवार विश्लेषण करने पर पता चला है कि विश्व के अनेक हिस्सों में इस्लाम वहां की परिस्थिति के हिसाब से तेजी से फैलता गया है। कह सकते हैं कि इस्लाम की यह बढ़त किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रही है। विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसके इस तेजी से प्रसार के पीछे अलग-अलग कारण रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिका में मुस्लिम आबादी में 52 फीसदी वृद्धि दर्ज हुई है। यह वृद्धि मुख्यतः शरणार्थी आप्रवासन, कन्वर्जन और प्राकृतिक रूप से हुई जनसंख्या वृद्धि के कारण देखने में आई है।
इसी तरह उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या में 34 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। यहां इस्लामी मदरसों के खुलने और उच्च प्रजनन दर इस वृद्धि के प्रमुख कारण माने गए हैं। एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में मुस्लिम आबादी में 1.4 फीसदी की वृद्धि देखने में आई है। यह क्षेत्र अब भी मुस्लिमों का सबसे बड़ा ठिकाना बना हुआ है, जिसमें इंडोनेशिया, पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश जैसे देश शामिल हैं। यूरोप की बात करें तो यहां मुस्लिम आबादी में 0.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। यहां इस वृद्धि के पीछे मुख्यतः आप्रवासन कारण रहा है।
विश्व में इस्लाम मजहब में तेज़ी से बढ़ती आबादी के पीछे कई सामाजिक और सांस्कृतिक कारण भी दर्ज किए गए हैं। जैसे,
1.औसत आयु कम होना—2020 तक मुस्लिमों की औसत आयु 24 वर्ष थी, जबकि गैर-मुस्लिमों की औसत आयु 33 वर्ष थी। मुसलमानों में युवा आबादी का अनुपात अधिक होने से प्रजनन दर भी अधिक रही।
2. उच्च प्रजनन दर—मुस्लिम समुदायों में ‘मजहब का फरमान’ माना जाता है एक से अधिक निकाह करना और अधिक संतानें पैदा करना। यह मजहबी फरमान भी उनकी जनसंख्या में तेज वृद्धि की एक वजह मानी गई है।
3. कन्वर्जन की दर—इस्लाम में कन्वर्जन की दर अपेक्षाकृत स्थिर रही है, जबकि अन्य मतों, विशेषकर ईसाई मत में, मत छोड़कर दूसरा मत अपनाने की प्रवृत्ति अधिक देखने में आई है।
4. शरणार्थी आप्रवासन—मध्य पूर्व और अफ्रीका के संघर्षग्रस्त क्षेत्रों से मुस्लिम ‘शरणार्थियों’ का दूसरे देशों में जाकर बसना भी इस्लाम में जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण रहा है।
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ईसाई मत अब भी दुनिया का सबसे बड़ा मत बना हुआ है। हालांकि उसकी वैश्विक हिस्सेदारी 30.6 फीसदी से घटकर 28.8 फीसदी हो गई है। वहीं, बौद्ध धर्म एकमात्र ऐसा प्रमुख धर्म है जिसकी जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई है। हिंदू धर्म की जनसंख्या में मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन यह वैश्विक औसत से कम रही है।
विश्व भर में कौतुहल से देखी जाने वाली प्यू रिसर्च सेंटर की जनसंख्या और पांथिक हिस्सेदारी से संबंधित रिपोर्ट न केवल पांथिक जनसांख्यिकी में हो रहे बदलावों को उजागर करती है, बल्कि यह संकेत करती है कि आने वाले दशकों में पांथिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इस्लाम की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या वैश्विक स्तर पर सामाजिक ताने—बाने में बदलाव प्रस्तुत कर सकती है। ऐसे में यह परस्पर पांथिक संवाद की आवश्यकता पैदा कर सकती है।
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