दो अप्रैल, 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विभिन्न देशों से आने वाले सामानों पर उच्च टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिसे वे पारस्परिक टैरिफ कहते हैं। चूंकि विभिन्न देश अमेरिका से आने वाले सामानों पर अलग-अलग टैरिफ लगाते हैं, इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने भी विभिन्न देशों पर अलग-अलग टैरिफ लगाने का विकल्प चुना है। इस संदर्भ में ट्रंप ने भारत पर 27 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिसका अर्थ है कि भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले सामानों पर यह टैरिफ लगेगा।

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यह महत्वपूर्ण है कि ट्रंप ने चीन पर पहले 54 प्रतिशत टैरिफ लगाया था, जबकि वियतनाम पर 46, श्रीलंका पर 44, थाईलैंड पर 36, ताइवान पर 32, दक्षिण अफ्रीका पर 30 और जापान पर 24 प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ लगाया। संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के कार्यालय के अनुसार, इस पारस्परिक टैरिफ को तय करने के लिए एक सूत्र का उपयोग किया गया है। इसके अलावा, अमेरिकी प्रशासन ने धमकी दी कि अगर कोई भी देश अमेरिका से आयात पर जवाबी कार्यवाही कर टैरिफ बढ़ाता है तो वह टैरिफ और भी बढ़ा देगा।
डोनाल्ड ट्रंप का गलत तर्क
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यह तर्क देते हैं कि दूसरे देश अमेरिकी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका विदेशों से आने वाले सामान पर कम टैरिफ लगाता है। इससे अमेरिका को नुकसान होता है, क्योंकि उनका सामान दूसरे देशों में जाकर महंगा हो जाता है, जिससे वह कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाता है।
उनका कहना है कि उन्हें अमेरिका में उद्योगों को पुनः स्थापित कर देश को महान बनाना है। लेकिन उनका यह तर्क इसलिए गलत है, क्योंकि भारत समेत दूसरे देश अमेरिकी सामान पर अधिक टैरिफ डब्ल्यूटीओ में हुए समझौतों के अनुरूप लगाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत अपने देश में आने वाले सामानों पर 50.8 प्रतिशत टैरिफ लगाने का अधिकारी है। हालांकि भारत वास्तव में मात्र 6 प्रतिशत टैरिफ ही लगाता है।
भारत समेत अन्य विकासशील देशों को ज्यादा टैरिफ लगाने की अनुमति इसलिए दी गई थी, क्योंकि डब्ल्यूटीओ में हुए समझौतों में भारत समेत अन्य विकासशील देशों को मात्रात्मक नियंत्रण लगाने, अपने लघु उद्योगों के संरक्षण करने, कृषि को अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों से अलग रखने, अपनी बौद्धिक संपदा एवं विदेशी निवेश को नियमित करने हेतु कानून बनाने की स्वतंत्रता सहित कई अधिकारों से वंचित होना पड़ा था।
इसके बदले में उन्हें अमेरिका और अन्य विकसित देशों की तुलना में ज्यादा टैरिफ लगाने का अधिकार मिला था। ट्रंप द्वारा टैरिफ युद्ध के बाद वह अधिकार भी छिन रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा पारस्परिक टैरिफ लगाने से डब्ल्यूटीओ में हुए समझौतों को ही नकारा जा रहा है।
डब्ल्यूटीओ से हुआ नुकसान
यह साबित हो चुका है कि बहुपक्षीय समझौते भारत जैसे विकासशील देशों के लिए शुभ नहीं हैं। अब समय आ गया है कि जब अमेरिका जैसे विकसित देश डब्ल्यूटीओ की अवहेलना कर रहे हैं, तो हमें भी डब्ल्यूटीओ में ट्रिप्स समेत अन्य शोषणकारी समझौतों से बाहर आने की रणनीति के बारे में सोचना चाहिए।
ज्ञातव्य है कि डब्ल्यूटीओ से पहले भारत लगभग 10,000 वस्तुओं के आयातों पर मात्रात्मक नियंत्रण (क्यूआर) लगाता था, लेकिन डब्ल्यूटीओ समझौतों के कारण वह संभव नहीं रहा। डब्ल्यूटीओ के विघटन के बाद अब मात्रात्मक नियंत्रण लगाना संभव हो सकेगा, जिससे हमें अपने उद्योगों को संरक्षित एवं संवर्धित करना संभव हो सकेगा।
पूर्व में रोजगार सृजन के उद्देश्य से लगभग एक हजार वस्तुओं के उत्पादन को लघु उद्योगों के लिए आरक्षित रखा गया था, लेकिन डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत विदेशों से हर प्रकार की वस्तु के आयात की अनुमति अनिवार्य है। इससे लघु उद्योगों के आरक्षण की नीति अप्रभावी हो गई और यह आरक्षण धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया।
अमेरिका की हठधर्मिता के चलते यदि डब्ल्यूटीओ समाप्त होता है तो ऐसी स्थिति में हम आरक्षण की नीति को फिर से लागू करके अपने छोटे उद्योगों की रक्षा और संवर्धन के लिए कुछ ऐसे उत्पादों को छोटे उद्योगों के लिए आरक्षित कर विकेंद्रीकरण और रोजगार सृजन के लिए एक बड़ा प्रयास कर सकते हैं। अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर से आयात पर टैरिफ लगा दिया है, तो हमें इस स्थिति
का लाभ उठाने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की रणनीति बनानी होगी।
द्विपक्षीय समझौतों की जरूरत
नए परिदृश्य में भारत को बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के बजाय द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के साथ अपने विदेशी व्यापार को बढ़ाना चाहिए। हालांकि, अमेरिका और अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करते समय राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जानी चाहिए, खासकर हमारे किसानों और छोटे उद्यमियों की।
हमने देखा है कि पिछले 10 वर्षों में सरकार व्यापार समझौतों पर बातचीत करते समय किसानों के हितों और उनकी आजीविका की रक्षा कर रही है, चाहे वह ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) से कृषि को बाहर करना हो या डेयरी और कृषि पर इसके प्रतिकूल प्रभाव की चिंताओं के कारण क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से बाहर आना हो। जहां तक कृषि और लघु उद्योग का सवाल है, इस नीति को जारी रखने की जरूरत है, खासकर जहां किसानों और श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो रही हो।
इसके अलावा, भारतीय रुपये में विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए सरकार के प्रयास सराहनीय है। हालांकि, यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि स्विफ्ट जैसी पश्चिमी प्रणाली को हमारे देश पर दबाव बनाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल न करने दिया जाए। पूरी दुनिया भू-आर्थिक विखंडन के दौर से गुजर रही है और इस परिदृश्य में सफलता की कुंजी ‘राष्ट्र प्रथम’ की नीति है।
नई संभावनाएं
एक तरफ जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और दूसरे देशों पर शुल्क बढ़ाए जा रहे हैं और डब्ल्यूटीओ नियमों को दरकिनार किया जा रहा है, नए परिप्रेक्ष्य में नई संभावनाएं भी जन्म ले रही हैं। चूंकि राष्ट्रपति ट्रंप ने विभिन्न देशों पर अलग-अलग शुल्क लगाने का निर्णय किया है, चीन पर अधिक शुल्क लगाने और चीनी सामान अमेरिका और यहां तक कि यूरोपीय देशों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के रुकावटें लगाने से भारत के लिए इन देशों में संभावनाएं बेहतर हुई हैं। यूरोपीय देश जो भारत से सामान्यतः प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अन्य प्रकार के सहयोग से बचते थे, अब भारत को प्रतिरक्षा के क्षेत्र में भी वैश्विक मूल्य शृंखला में भी शामिल करने के लिए आतुर हो रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एपल कंपनी को भारत में निवेश करने हेतु बारंबार मना करने के बावजूद फोक्सकॉन, जो एप्पल कंपनी के आईफोन उत्पादन में मुख्य भूमिका रखती है, की 1.5 अरब डाॅलर के निवेश की घोषणा इस बात का संकेत है कि वैश्विक कंपनियां अब भारत को एक महत्वपूर्ण निवेश गंतव्य मान रही हैं।
समझा जा सकता है कि चाहे अमेरिका द्वारा थोपा गया व्यापार और टैरिफ युद्ध हो, अथवा पाकिस्तान द्वारा आतंकी गतिविधियों को प्रश्रय देने के खिलाफ भारत की ऑपरेशन सिंदूर के नाते की गई कार्यवाही, सभी प्रकार की परिस्तिथियां देश में उत्पादन और निवेश के नए रास्ते खोल रहे हैं। चीन के प्रति शेष दुनिया की विमुखता, भारत के वैज्ञानिकों एवं उद्यमियों के प्रयासों और दुनिया की भारत के प्रति बढ़ती रुचि, सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में नए स्पंदन का कारण बन रही हैं।
कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने खोली पोल
डोनाल्ड ट्रंप भारत-पाकिस्तान ऑपरेशन सिंदूर के दौरान संघर्षविराम पर खुद को दादा की तरह पेश कर रहे थे। वह बार-बार दावा करते रहे हैं कि उन्हीं की व्यापार नीति के चलते भारत-पाकिस्तान परमाणु युद्ध के मुहाने से लौटे और संघर्षविराम पर सहमत हुए। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर दोनों देश नहीं माने तो अमेरिका उनका व्यापार बंद कर देता।
उस समय भी भारत सरकार ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया था, किन्तु ट्रंप अपनी ही रट पर अड़े रहे। अब पता चला है कि ट्रंप की इस ‘क्रेडिट लेने की रणनीति’ के पीछे एक और ही एजेंडा छुपा था, एक कानूनी चाल और वह चाल खुद उनके ही देश की अदालत ने ही पकड़ ली है।
अमेरिकी कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा व्यापारिक शुल्क पर रोक लगाने के सम्बन्ध में कहा कि व्हाइट हाउस ने आपातकालीन कानून का गलत इस्तेमाल करते हुए लगभग हर देश पर टैरिफ थोप दिए, जो कि संविधान की भावना के खिलाफ हैं।
ट्रंप प्रशासन इस केस में अदालत को यह समझाने की कोशिश करता रहा कि उनकी व्यापार नीति ने दुनिया को एक बड़े नुकसान से बचा लिया।
उनका तर्क था कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर उन्हीं की दबाव वाली नीति का नतीजा था। यहां तक कहा गया कि अगर अमेरिका ने व्यापार का दबाव न बनाया होता, तो शायद परमाणु युद्ध हो चुका होता।
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