भारत के निर्माण में कई महान देशभक्तों, विचारकों और समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें प्रमुख नाम हैं – स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, योगी अरविन्द, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर, भाई परमानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द। इन महापुरुषों द्वारा शुरू की गई संस्थाएं जैसे आर्य समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), हिन्दू महासभा, और विश्व हिन्दू परिषद (VHP) आज भी हिन्दू संस्कृति और हिन्दुत्व की रक्षा तथा प्रचार-प्रसार में लगी हुई हैं। आइए अब जानें कि हिंदू और हिंदुत्व पर इन महापुरुषों के क्या विचार थे-
महर्षि दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना जीवन हिन्दू समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने में लगाया। उस समय जब हिन्दू समाज अनेक समस्याओं और बाहरी आक्रमणों से जूझ रहा था, तब उनके विचारों ने लोगों को फिर से जगाया और संगठित किया। वे कहते थे कि हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी विविधता और सहनशीलता है। हिन्दू धर्म एक बड़े समुद्र की तरह है, जिसमें अलग-अलग मत और परंपराएं साथ-साथ चलती हैं। कोई ध्यान करता है, कोई पूजा करता है, कोई संयम का पालन करता है, कोई अवतारों को मानता है – फिर भी ये सभी हिन्दू हैं। यही इसकी विशेषता है कि यह किसी को भी बाहर नहीं करता।
स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म को नया, वैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप दिया। उन्होंने धर्म को सिर्फ मंदिर और पूजा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि जीवन जीने का मार्ग बताया। उन्होंने युवाओं से कहा कि अगर भारत को फिर से महान बनाना है, तो उन्हें संगठित होकर धर्म की रक्षा करनी होगी। स्वामी जी मानते थे कि वेद और उपनिषद हिन्दू धर्म की आत्मा हैं – ये सभी विचारों को जोड़ने वाले सूत्र हैं।
योगी अरविन्द
योगी अरविन्द ने हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहा। “सनातन” का मतलब होता है, जो हमेशा रहने वाला हो, जो सबको अपनाने वाला हो। उन्होंने कहा कि अगर कोई धर्म केवल कुछ समय या लोगों तक सीमित हो, तो वह सनातन नहीं कहा जा सकता। हिन्दू धर्म की खूबी है कि यह हर विचार, हर पंथ को अपना लेता है। उन्होंने हिन्दू समाज से यह भी कहा कि आत्मरक्षा और विकास के लिए उसे मजबूत और सक्रिय होना पड़ेगा।
स्वामी श्रद्धानन्द
स्वामी श्रद्धानन्द जी अपन आत्मचरित “कल्याण मार्ग का पथिक” पुस्तक में शीर्षक देते हैं- “हिन्दू देवी का मातृभाव” – इस शीर्षक में इन्होंने पूर्वाश्रम के अपनी धर्मपत्नी के साथ अपने व्यक्तिगत संस्मरणों का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।
स्वामी जी द्वारा लिखित पुस्तक “हिन्दू संगठन” जिसे श्रद्धानन्द ग्रंथावली में प्रकाशित किया गया है (संपादक डॉ. भवानी लाल भारतीय) हो उसकी कुछ पंक्तियों को प्रस्तुत किया जा रहा है, जो उनके विचारों को सुस्पष्ट करती हैं।
“मेरा सर्वप्रथम सुझाव यह है कि प्रत्येक नगर और शहर में एक हिन्दू राष्ट्र-मंदिर की स्थापना की जानी चाहिए जिसमें 25 हजार व्यक्ति एक साथ समा सकें और उन स्थानों पर प्रतिदिन भगवद्गीता, उपनिषद्द, रामायण और महाभारत की कथा होनी चाहिए। इन राष्ट्र-मन्दिरों का प्रबंध स्थानीय सभा के हाथ में रहना चाहिए और वह इन स्थानों के अन्दर अखाड़े, जीवित गौएँ रखी जानी चाहिए जो कि हमारी समृद्धि की द्योतक हैं, उस मंदिर के प्रमुख द्वार पर गायत्री मन्त्र लिखा जाना चाहिए जो कि प्रत्येक हिन्दू को उसके कर्तव्य का स्मरण कराएगा तथा अज्ञान को दूर करने का संदेश देगा, और उस मन्दिर के बहुत ही प्रमुख स्थान पर भारत माता का एक सजीव नक्शा बनाना चाहिए, इस नक्शे में उसकी विशेषताओं को विभिन्न रंगों द्वारा प्रदर्शित किया जाए, और प्रत्येक भारतीय बच्चा मातृभूमि के सम्मुख खड़ा होकर के उसे नमस्कार करे और यह प्रतिज्ञा दोहराए कि वह अपनी मातृभूमि को उसी प्राचीन स्थान पर पहुँचाने के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देगा, जिस स्थान से उसका पतन हुआ था।”
डॉ. हेडगेवार
डॉ. हेडगेवार जी ने हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दशा को ध्यान में रखते हुए यह महसूस किया कि समाज की सभी समस्याओं का समाधान केवल हिन्दू संगठन में ही है। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। उन्होंने यह स्पष्ट कहा- “भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। इसे संगठित करके मैं देश को परम वैभव के शिखर तक ले जाऊँगा।”
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परमानन्द जी
परमानन्द जी अपनी पुस्तक “हिन्दू संगठन और आर्य समाज आन्दोलन” (पृष्ठ 11) में लिखते हैं- “हिन्दू हमारे लिए मात्र एक नाम नहीं है, बल्कि यह हमारे सम्पूर्ण इतिहास और संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इस नाम की महिमा का वर्णन करने वाले हमारे ऋषि, कवि और अवतार हुए हैं। इसके लिए शास्त्र और दर्शन की रचनाएँ हुई हैं। इसकी रक्षा के लिए हमारे वीर योद्धाओं ने युद्ध किए और अपने प्राणों तक की आहुति दी।”
(इस लेख के तथ्य स्वामी विज्ञानानंद द्वारा लिखित पुस्तक ‘ हिंदू नाम की प्राचीनता और विशेषताएं’ से लिए गए हैं। इस पुस्तक को सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।)
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