यूरोप में इन दिनों शरणार्थियों को लेकर तमाम प्रश्न उठ रहे हैं। सीरिया, अफगानिस्तान आदि देशों से मुस्लिमशरणार्थी यूरोप का हिस्सा बन रहे हैं। अशांत देशों से वे यूरोप के विभिन्न हिस्सों में जा रहे हैं और दावा यह कि उन्हें इस्लामिक देशों में कट्टरता का सामना करना पड़रहा है। लेकिन एक प्रश्न उठता है कि क्या उन देशों में गैर मुस्लिमों के साथ प्रताड़नाएं नहीं होती हैं? क्या वहां से गैर मुस्लिम यूरोप के देशों में शरण लेनेनहीं आते हैं?
यूके में एक ईसाई महिला “मारिया”(सुरक्षा की दृष्टि से नाम असली नहीं है) की कहानी से एक ऐसे षड्यन्त्र का खुलासा हुआ है, जो ब्रिटेन में शरणार्थियों के नाम पर चल रहा है। जीबी न्यूज़ के अनुसार एकईसाई महिला जो एक इस्लामिक मुल्क से अत्याचारों से डरकर ब्रिटेन भागकर आई थी। उसे यूके मे रहने के कानूनी अधिकार अब मिले हैं और गृह विभाग के अधिकारियों से उसकेसाथ भेदभाव हुआ था। मारिया ने बताया कि उसके देश में ईसाई होने के नाते उस पर कई प्रकार के अत्याचार होते थे। उसके मुस्लिम सहकर्मीकहते थे कि यदि वह इस्लाम में कन्वर्ट हो जाती है तो उसकी समस्याएं दूर हो जाएंगी।
मारिया का कहना है कि उस पर जो दबाव था, उसमें आकर उसने कन्वर्जन का प्रमाणपत्र भीले लिया था, मगर उनकी मांगें बढ़ती गईं। उन्होंने उस पर दबाव डालना आरंभ किया कि मारिया की बेटी को हिजाब पहनना चाहिए और उसे अपने ईसाई टैटू को भी हटानाहोगा। स्कूल से लौटते समय उसकी बेटी का अपहरण करने का प्रयास किया गया। यही वह क्षण था, जब उसने ब्रिटेन में शरण केलिए विचार किया और फॉर्म भरा। मगर उसके दावे को रद्द कर दिया गया। मारिया ने दावा किया कि उसके फॉर्म का आंकलन करने वाली महिला हिजाब में थी और उसने उनकी कहानी परसंदेह किया।
conservativewoman.co.uk के अनुसार मारिया पर यह भी दबाव था कि उसे अपने पति को छोड़ना होगा। मारिया जब इतने सारे दबावों को सह नहीं सकीं तो तो उन्होंनेअपने मुस्लिम सहकर्मियों से कहा कि वे अभी भी ईसाई हैं। इसके बाद उन्हें मारने की धमकियां भी मिलने लगीं। उन्हें एक ईसाई वकील ने सलाह दी कि यदि वे वहीं पर रुकेंगीतो उनकी जान को खतरा है और यूके उनके परिवार के लिए सुरक्षित स्थान होगा। मगर मारिया के फॉर्म का आँकलन करने वाली मुस्लिम महिला ने कई अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट्सको अपने तरीके से पढ़कर ब्रिटेन के गृह विभाग के पास यह रिपोर्ट भेजी कि मारिया का मुल्क ईसाइयों के लिए ठीक है। मारिया ने इमग्रैशन ट्रिब्यूनलमें याचिका डाली।
सुनवाई के समय उनका जबरन कन्वर्जन
वाला प्रमाणपत्र भी गृह विभाग से वापस आ गया, लेकिन वह फोटोकॉपी था। असली खो गयाथा। जज ने भी मारिया के तमाम प्रमाणों को अनदेखा कर दिया और यह कहा कि यह सब अविश्वसनीय है। मारिया निराश हो गई थीं, मगर फिर उनके मामले को जज जे अल बार्कर केपास भेजा गया। और अंतत: तीन साल के बाद मारिया और उनके परिवार को शरण मिली। जज बार्कर ने यह निर्णय दिया कि मारिया की कहानी सच है और वे जिस इस्लामी मुल्क की बात कर रही हैं, वहां परईसाइयों के साथ ऐसा ही व्यवहार होता है और खासकर मुस्लिम सहकर्मियों वाले कार्यस्थलों पर।
उन्होंने कहा कि डॉ पार्सनद्वारा जो भी प्रमाण दिए गए हैं, उनसे स्पष्ट है कि यदि अपीलकर्ता ईसाई मत में वापस आने का प्रयास करती है तो उसे मजहब से विद्रोह माना जाएगा और जिसके लिए शरियामें केवल मौत है। जीबी न्यूज़ ने कुछ दिन पहले एक नेटवर्क का खुलासा किया था कि किस प्रकार ब्रिटेन के गृह विभाग में मुस्लिमकर्मियों की नियुक्ति काफी संख्या में की जा रही है। उसने रिपोर्ट दी थी कि गृह विभाग में इस्लामिक नेटवर्क प्रभावशाली नीति-निर्माताओं के साथ लॉबी करने काप्रयास कर रहा है। इस नेटवर्क पर आरोप था कि वह मजहबी एजेंडे को प्रमोट कर रहा है जो शरण लेने के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। जीबीन्यूज़ को ब्रिटेन के गृहविभाग के ही एक सूत्र ने बताया था कि इस नेटवर्क ने हिजाब का समर्थन करने वाला प्रोपोगेंडा पैदा किया है, जो गृह विभाग मे शरणार्थियों से संबंधित निर्णयों कोप्रभावित करता है और वे नीति का प्रयोग अपने मजहबी लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए करते हैं।
जीबी न्यूज़ के अनुसार इस्लामिकनेटवर्क का गृह विभाग में लगभग 700 से अधिक इस्लामिक कर्मियों का नेटवर्क है जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करना चाहते हैं। रिपोर्ट में लिखा था कि “लीक हुएदस्तावेजों से पता चलता है कि 700 से अधिक सिविल सेवकों के समूह का कहना है कि उनका लक्ष्य “गृह कार्यालय में मुस्लिम कर्मचारियों की भर्ती, प्रतिधारणऔर प्रगति को बढ़ावा देना” और “नीति निर्माताओं को प्रभावित करना है ताकि नीति मुस्लिम आवश्यकताओं को अधिक समावेशी बना सके”।“
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