झारखंड के गिरिडीह बगोदर प्रखंड के बेको पूर्वी और पश्चिमी पंचायत के करीब 300 सेवानिवृत्त नागरिकों ने एक मिसाल कायम करते हुए अपने धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरी आस्था का परिचय दिया है। इन बुजुर्गों ने अपनी पेंशन की राशि से एक भव्य पंच शिव मंदिर का निर्माण कराया है, जिसकी लागत साढ़े तीन करोड़ रुपये से भी अधिक रही है।
इस मंदिर का निर्माण कार्य हाल ही में पूरा हुआ और 29 अप्रैल से 9 मई 2025 तक यहां प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव सह यज्ञ का आयोजन किया गया। आयोजन के बाद मंदिर को आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। स्थानीय लोग इन बुजुर्गों के इस समर्पण और सेवा भावना की भरपूर सराहना कर रहे हैं।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार मंदिर निर्माण में सहयोग करने करने वालों में से अधिकांश बुजुर्ग रेलवे, बीसीसीएल सहित विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत रहे हैं। कुछ शिक्षक भी रहे हैं। अब ये सभी खुद को भगवान शिव का सेवक मानते हैं और समाज सेवा में जुटे हैं। यह मंदिर न केवल बगोदर प्रखंड बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी अपनी भव्यता और सहयोग की भावना के लिए चर्चा में है।
खास बात यह है कि मंदिर निर्माण के इस नेक उद्देश्य के लिए कई बुजुर्गों ने अपनी बुरी आदतें जैसे शराब और अन्य व्यसन त्याग दिए। उन्होंने वह राशि मंदिर निर्माण में समर्पित कर दी। अब ये बुजुर्ग अन्य ग्रामीणों को भी व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दे रहे हैं। इनका सपना है कि मंदिर के माध्यम से पूरे क्षेत्र में शांति और सकारात्मक ऊर्जा फैले।
इस पवित्र और सामजिक कार्य में सम्मलित करीब 15-20 बुजुर्ग जो इस पवित्र कार्य में सहभागी रहे, जो कि अब इस दुनिया में नहीं हैं। गांव के लोगों का मानना है कि उनके आत्मा को शांति मिली होगी क्योंकि उन्होंने जो संकल्प लिया था, वह अब साकार हो चुका है।
कैसे शुरू हुआ मंदिर निर्माण
बता दें कि यह पहल वर्ष 2012 में तब शुरू हुई जब बेको गांव के पुराने मंदिर की जर्जर हालत देखकर कुछ बुजुर्गों ने उसके जीर्णोद्धार का विचार किया। उन्होंने चारदीवारी से शुरुआत की, पौधे लगाए लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। इसके बाद सभी ने मिलकर पंच शिव मंदिर निर्माण का संकल्प लिया।
नियमित अंशदान से रखी गई नींव
हर महीने सभी बुजुर्गों ने अपनी पेंशन से एक निर्धारित राशि – किसी ने 500 तो किसी ने 1000 रुपये – मंदिर निर्माण के लिए देना शुरू किया। शुरुआत में 50 लोग जुड़े और बाद में यह संख्या 300 तक पहुंच गई। नियमित अंशदान से पर्याप्त धन एकत्र हुआ और मंदिर निर्माण की नींव रखी गई। जरूरत पड़ने पर इन बुजुर्गों ने आपस में पुनः राशि इकट्ठा की।
अन्य लोगों ने भी दिया सहयोग
पेंशन से जमा पूंजी के बाद भी जब राशि कम पड़ी, तो इन बुजुर्गों ने सोनापहाड़ी स्थित एक अन्य धार्मिक स्थल पर जाकर श्रद्धालुओं से सहयोग मांगा। वहां आने-जाने वाले लोगों से वे दिनभर संपर्क करते और मंदिर निर्माण के लिए योगदान की अपील करते। लोगों ने भी यथासंभव सहयोग दिया।
इस मुहिम में स्थानीय ग्रामीणों ने भी भरपूर योगदान दिया और अंततः यह भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया। मंदिर का संचालन फिलहाल शादी-ब्याह और श्रद्धालुओं के चढ़ावे से हो रहा है, क्योंकि संचालन के लिए अभी कोई समिति नहीं बनाई गई है। मंदिर निर्माण में प्रशासन या जनप्रतिनिधियों की कोई सहायता नहीं मिली, केवल पूर्व मुखिया टेकलाल चौधरी ने आर्थिक सहयोग किया।
लोगों की प्रतिक्रिया –
“बुजुर्गों ने मंदिर निर्माण कराकर एक अनुकरणीय कार्य किया है। जो काम युवाओं को करना चाहिए था, वह इन्होंने कर दिखाया। यह योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।”
– टेकलाल चौधरी, पूर्व मुखिया
“हमने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था, जिसे सभी के सहयोग से पूरा कर लिया। कई लोगों ने इसके लिए शराब तक छोड़ दी।”
– दशरथ महतो, सहयोगकर्ता
“मंदिर बनाना हमारा ध्येय था। तन, मन, धन से सहयोग कर हमने जो संकल्प लिया था, उसे पूरा किया।”
– तिलक साव, सहयोगकर्ता
टिप्पणियाँ