शशि थरूर एक निष्ठावान भारतीय की तरह भारत की ओर से गए हुए एक प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के रूप में भारत का पक्ष पूरी सुदृढ़ता, मजबूती और आत्मविश्वास से पूरे विश्व के सामने ना केवल रख रहे हैं अपितु लोगों को प्रभावित भी कर रहे हैं। थरूर ने अमेरिका में ही डोनाल्ड ट्रंप को ही खरी खरी सुना दिया। अभी सीधे-सीधे बोल दिया कि भाई भारत जो है वो एक स्टेटस को पावर है हमको आप अलग छोड़ दीजिए हम आपसे कोई कुछ किसी प्रकार का संबंध भी नहीं रखना चाहते और हम तो अपने आप को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। हम अपनी आर्थिक उन्नति करना चाहते हैं हम आगे बढ़ना चाहते हैं। जबकि पाकिस्तान प्रतिक्रियावादी देश है। इस तरह की बातें थिंक टैंक्स में तो कही जाती हैं। इतना स्पष्टता से डॉक्टर जयशंकर भी नहीं बोल सकते क्योंकि वो विदेश मंत्री हैं।
अमेरिका के बाद बाद वो गयाना गए। गयाना में भी उन्होंने बिल्कुल स्पष्टतया भारत का ही रुख रखा और पानामा में यह कहकर की ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत ने लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल को पार किया है थरूर के इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी में बवाल मच गया हैं क्योंकि कांग्रेस लगातार उल्टे ही विचारधारा पर चलती हैं। कांग्रेस पार्टी को इससे कोई मतलब नहीं था कि भारत पाकिस्तान से लड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी को यह लग रहा ये भारत और पाकिस्तान के युद्ध में कांग्रेस कहीं पीछे न छूट जाए। इसके साथ ही भाजपा और मोदी की लोकप्रियता चरम पर ना पहुंच जाए जहां से उसको हिला पाना मुश्किल हो तो उनको तो इसमें राजनीति करनी हैं। कांग्रेस पार्टी बार-बार यह दिखाने का प्रयास कर रही हैं कि मोदी ने कुछ भी खास नहीं किया है। कांग्रेस पार्टी के अनुसार इंदिरा गांधी के मुकाबले में मोदी कहीं नहीं ठहरते हैं।
कांग्रेस पार्टी ने ऐसे करके 1971 में इंदिरा गांधी के कार्यकलापों का फिर से गहन विवेचना करवा दिया हैं। यह सर्वविदित हैं कि इंदिरा गांधी सोवियत संघ के प्रभाव में थी। युद्ध के बाद इंदिरा गांधी सोवियत यूनियन के प्रभाव शिमला समझौता किया। शिमला समझौता करके और 93000 फौजियों को छोड़ दिया और बदले में कुछ भी नहीं लिया यहां तक कि बदले में जो हमारे 54 युद्धबंदी थे उनको भी वापस नहीं लिया। इंदिरा गाँधी को इसलिए भी कठघरे में खड़ा किया जाता हैं पाकिस्तान के साथ कई समस्या थी जिसको 93000 सैनिको को वापसी के बदले हल किया जा सकता था। उनमे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका भी हैं। ऐसे प्रमाण मिल रहे हैं की सेना की तैयारी के बावजूद भी इंदिरा गांधी ने पश्चिमी सीमा पर हमला करने से रोक दिया। इंदिरा गांधी एकतरफा निर्णय लेते हुए 13,000 स्क्वायर कि.मी का इलाका वापस दे दिया, 93,000 युद्धबंदियों को वापस दिया और बांग्लादेश के साथ भारत ने कुछ भी नहीं किया। उस समय सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसको चिकन नेक भी कहते हैं उसका भी दायरा बढ़वाया जा सकता था। उसपर भी इंदिरा गाँधी हाथ पर हाथ धड़े बैठी रही। उस समय भारत के पास पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ किसी भी प्रकार की संधि करवाने के पर्याप्त मौके थे। लेकिन उलटे इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को रियायत दे दिया कि जो भी घुसपैठिए 1971 तक आए हैं वे यहां रह सकते हैं। दरअसल घुसपैठियों में इंदिरा गाँधी को वोटबैंक नज़र आ रहा था और दूरदृष्टि में इंदिरा गाँधी की नज़र घुसपैठियों के मार्फत पुरे देश के मुस्लिम वोटबैंक पर थी। वहीं जिन हिंदुओं को जो निकाला गया था उनके लिए कुछ भी नहीं किया क्योंकि उनको धर्मनिरपेक्ष दिखना था।
पवन खेड़ा इस बात पर थरूर को घेरने की कोशिश कर रहा हैं की कांग्रेस ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी। शशि थरूर ने स्पष्ट कर दिया कि एलओसी पार करने का हमारा परिपेक्ष आतंकवादी हमलों से हैं। आतंकवादी हमलों के परिप्रेक्ष्य में पहली बार एलओसी उड़ी के समय क्रॉस की थी।
कांग्रेस पार्टी थरूर पर निशाना साधकर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार रही हैं। अगले वर्ष 2026 में केरल विधानसभा के चुनाव हैं। केरल के चुनाव के लिए थरूर कांग्रेस पार्टी के सबसे अहम अंग हैं। थरूर नायर जाति से आते हैं जो परम्परागत तौर पर कांग्रेस पार्टी का मतदाता हैं। कांग्रेस पार्टी थरूर पर निशाना साधकर अपने परंपरागत मतदाताओं को भाजपा की ओर धकेल रही हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत राष्ट्रीय स्तर पर हैं की अगर उसका वोटबैंक टूटता हैं तो वो पूरी तरह विखर जाता हैं। दिल्ली, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल जैसे अनेको राज्य हैं जहाँ कांग्रेस पार्टी का वोट दरकने के साथ ही पूरी तरह मटियामेट हो गई। अब इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी का नामलेवा भी ढूंढना मुश्किल पड़ता हैं। अगर कांग्रेस पार्टी का नायर वोटबैंक टूटेगा तो मुस्लिम मतदाता भी कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से किनारा करके केरल की राजनीति में नयी दल अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस पार्टी की ओर अपना रुख कर सकती हैं।
उस हालात में भाजपा केरल में 2026 में त्रिपुरा के 2018 जैसा प्रदर्शन कर सकती हैं। त्रिपुरा में 2018 से पहले भाजपा 60 सदस्यीय विधानसभा में महज एक सीट कदमतला-कुर्ती सीट पर अपनी जमानत बचा सकी थी मगर 2018 में 36 सीट जीतकर स्पष्ट बहुमत की अपनी सरकार बनाई थी। भाजपा के लिए केरल में ऐसे हालात बनते दिख रहे हैं। केरल में भाजपा की ओर एझावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का पहले से रुख हैं। केरल में ईसाई समुदाय का एक वर्ग खासतौर सीरियन क्रिश्चियन भारतीय जनता पार्टी की ओर आकर्षित होता दिख रहा हैं। इसका कारण उनको मुसलमान के लव जिहाद का संकट दिख रहा है। केरल में मुसलमान हिंदुओं और ईसाइयों दोनों को बराबरी से अपने लव जिहाद का शिकार बनाने का प्रयास करते हैं।
शशि थरूर केरल की राजनीति में गाँधी परिवार और केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के आपसी रजामंदी से ऑनर ही अंदर नाराज़ हैं। शशि थरूर इस तथ्य से भली भांति अवगत हैं कि गांधी परिवार के नेतृत्व में केरल में कांग्रेस पार्टी माकपा नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट को महज सांकेतिक चुनौती देगी जैसे कांग्रेस ने 2021 के विधानसभा के चुनाव में दिया था। गांधी परिवार को अपने पारिवारिक सीट वायनाड सीट अपने परिवार के लिए और पार्टी के लिए लोकसभा में सीटों की जरूरत हैं वही विजयन को अपने मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाये रखने की जरूरत हैं। विजयन को अपने दामाद मोहम्मद रियस को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करवाना हैं वही गांधी परिवार को अपने संतानों राहुल और प्रियंका गांधी को पार्टी की बागडोर सौपनी हैं।
थरूर जब से कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए गाँधी परिवार के उम्मीदवार खरगे के खिलाफ चुनाव लड़ा तब से वो गाँधी परिवार के आखों की किरकिरी बने हुए हैं और गाँधी परिवार उनसे छुटकारा पाना चाहता हैं। ऐसे नेता जो गाँधी परिवार के खिलाफ पार्टी में आवाज़ बुलंद करेगा उसको पार्टी से बाहर जाना पड़ेगा।
अगर शशि थरूर कांग्रेस छोड़ते हैं तो उनके साथ केरल में कांग्रेस पार्टी के कई विधायक भी पार्टी छोड़ सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के अनेको सांसद पार्टी और गाँधी परिवार के क्रियाकलापों से खुश नहीं हैं। शशि थरूर अगर पार्टी से किनारा करते हैं तो कुछ अन्य सांसद भी उनकी राह पर चलते दिख सकते हैं।
(डिस्क्लेमर : स्वतंत्र लेखन। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं; आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)
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