यह कहना थोड़ा कठिन या विवाद का विषय हो सकता है कि “हिंदू” शब्द का प्रयोग पहली बार कब हुआ, लेकिन यह बात तय है कि इस शब्द की जड़ें पुराने वैदिक और धार्मिक ग्रंथों में कहीं न कहीं मौजूद हैं। औपनिषदिक काल के बाद जब प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत जैसी भाषाओं का साहित्यिक रूप में प्रयोग बढ़ा, तब “हिंदू” शब्द भी आम बोलचाल की भाषा से निकलकर इन भाषाओं में आने लगा।
मध्यकालीन संस्कृत ग्रंथों जैसे ब्रह्मस्पत्य शास्त्र, कालिका पुराण, कविकोष, रामकोष, अद्भुतकोष, मेदिनीकोष, शब्दकल्पद्रुम, मेरुतंत्र, पारिजातहरण नाटक, भविष्य पुराण, अग्नि पुराण और वायु पुराण में “हिंदू” शब्द जाति या पहचान के रूप में स्पष्ट रूप से पाया जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि “हिंदू” शब्द बहुत पहले से आम लोगों की बोलचाल में मौजूद था, और बाद में वह साहित्य और धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा बन गया।
इससे यह स्पष्ट होता है कि इन संस्कृत ग्रन्थों के रचना काल से पहले भी हिन्दू शब्ट का जन समुदाय में प्रयोग होता था।
संस्कृत साहित्य में ‘हिन्दु’ शब्द
संस्कृत साहित्य में पाए गए हिन्दु शब्द के कुछ प्रमाण यहाँ दिए जा रहे हैं-
हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्परः । वेद………हन्दु मुख शब्दभाक् ।। (वृद्ध स्मृति)
जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुःख मानने वाला है, वह हिन्दू है।
हिनस्ति तपसा पापान् दैहिकान् दुष्टमानसान् । हेतिभिः शत्रुवर्गः च स हिन्दुः अभिधीयते ।।
“जो अपनी तपस्या से दैहिक पापों तथा चित्त को दूषित करने वाले-दोषों का नाश करता है, तथा शस्त्रों से अपने शत्रु समुदाय का भी संहार करता है, वह हिन्दू है।”
हीनं दूषयति इति हिन्दू जाति विशेषः (शब्द कल्पद्रुमः )
“हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिन्दू कहते हैं।”
हिन्दू नाम की प्राचीनता
जैसा कि पहले बताया गया है, बहुत प्राचीन वेदों और हिन्दू धर्मग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द सीधे-सीधे नहीं मिलता, लेकिन इसका मूल वहाँ जरूर मौजूद है। यह बात सही है कि ‘हिन्दू’ शब्द बहुत पुराना तो है, लेकिन उतना नया भी नहीं है जितना कुछ लोग मानते हैं। चूँकि इसका आधार वेदों में है, इसलिए यह शब्द वेदों की ही प्राचीनता से जुड़ जाता है। हिन्दुत्व के विचारक वीर सावरकर मानते हैं कि ‘हिन्दू’ शब्द कम से कम 4000 साल पुराना है। उनकी पुस्तक हिन्दुत्व (पृष्ठ 10) में उन्होंने लिखा है, “यदि अधिक नहीं तो कम से कम हमारा 40 शताब्दियों का इतिहास इस नाम से जुड़ा हुआ है।”
प्रसिद्ध कवि और विचारक रामधारी सिंह दिनकर ने भी अपनी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय (पृष्ठ 112) में लिखा है कि ईरान के राजा डेरियस (522–486 ईसा पूर्व) के शिलालेखों में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख आता है। इससे यह साफ़ होता है कि इस शब्द का इस्तेमाल शिलालेखों में आने से पहले ही समाज में होने लगा था।इसके अलावा, पुराणों और शार्दूल पद्धति जैसे ग्रंथों में भी शकों और हूणों के आक्रमण का ज़िक्र है, जो लगभग 1500 से 2000 साल पुराने प्रमाण हैं। हालांकि कुछ लोग पुराणों की ऐतिहासिकता को पूरी तरह नकारते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। इस विषय को समझने के लिए पं. भगवद्दत्त जी की किताब भारतवर्ष का वृहद् इतिहास, खासतौर पर उसका “हमारे इतिहास के स्रोत” नामक अध्याय बहुत उपयोगी है।
इस लेख के तथ्य स्वामी विज्ञानानंद द्वारा लिखित पुस्तक ‘ हिंदू नाम की प्राचीनता और विशेषताएं’ से लिए गए हैं। इस पुस्तक को सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
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