कई बार हम अनुभव करते हैं कि जब हम किसी की मदद करते हैं, तो वह व्यक्ति समय के साथ बदल जाता है। प्रेमानंद जी महाराज इस विषय में एक अत्यंत सूक्ष्म और आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखते हैं। उनका कहना है- “अगर आप किसी की मदद कर रहे हैं, तो उसका फल उस व्यक्ति से नहीं, बल्कि भगवान से अपेक्षित रखें।”
मदद करो, पर बदले में कुछ मत चाहो। प्रेमानंद जी समझाते हैं कि यदि आपने किसी को ₹500 दिए, भोजन कराया, वस्त्र दिए या अन्य कोई सहयोग किया तो उसका लेखा-जोखा भगवान के पास दर्ज हो गया है। यदि आप उस व्यक्ति से ‘धन्यवाद’ की उम्मीद करते हैं, तो आप लौकिक दृष्टि से सोच रहे हैं। जबकि सच्चा परोपकार वह होता है, जिसमें अपेक्षा केवल ईश्वर से हो, न कि इंसान से।
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वे कहते हैं “हमारी यही कमजोरी है कि जब हम किसी को सुख देते हैं, तो बदले में चाहते हैं कि वह हमसे प्रेम करे, सम्मान करे, और हमेशा कृतज्ञ रहे लेकिन ऐसा होता नहीं है।” माया से प्रेरित लोग, उपकार को भी भूल जाते हैं, आचार्य प्रेमानंद जी कहते हैं कि यह संसार माया से प्रेरित है। जब आप किसी पर बार-बार उपकार करते हैं, तो कई बार वही व्यक्ति आपको ‘बुद्धिहीन’ समझने लगता है। यहां तक कि वह आपके सम्मान की बजाय आपको तुच्छ समझ सकता है।वास्तविक परोपकार – चुपचाप देना, प्रभु से लेना उनका उपदेश है कि यदि आपने किसी को पानी पिलाया और वह धन्यवाद देकर चला गया तो ठीक है। लेकिन यदि वह चुपचाप चला गया, तब भी वह पुण्य ईश्वर के खाते में जमा हो गया। प्रभु जब देंगे, तो बहुत अधिक देंगे।
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