बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख और सेना प्रमुख में पिछले दिनों इस साल दिसम्बर तक आम चुनाव कराने के मुद्दे पर पैदा हुआ टकराव अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है कि राखाइन के मुद्दे पर दोनों के बीच एक बार फिर तलवारें खिंच गई हैं। राखाइन गलियारे को लेकर अंतरिम सरकार में प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकारुज्जमां के बबीच एक राय नहीं बन पा रही है, लिहाजा तनाव बढ़ता जा रहा है। यह गलियारा बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से म्यांमार के राखाइन राज्य को जोड़ने वाला एक प्रस्तावित मानवीय गलियारा है, जिसका उद्देश्य मानवीय सहायता पहुंचाना, घायलों को निकालना और रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी की संभावना तलाशना है।
प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस गलियारे का समर्थन किया है, जबकि सेना प्रमुख जनरल वकारुज्जमां इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं। सेना अध्यक्ष का मानना है कि यह गलियारा बांग्लादेश की संप्रभुता को हानि पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा है कि यह गलियारा ‘खूनी गलियारा’ साबित होगा इसलिए इस दिशा में न बढ़ा जाए। वकारुज्जमां कहते हैं कि इस मुद्दे पर उनसे सलाह नहीं ली गई है। उनके इस कथन के बाद पहले से ही तनावपूर्ण बने नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच एक नया झंझट और कांटा उभरता दिख रहा है।

इस गलियारे को लेकर अमेरिका और चीन में अलग तनातनी छिड़ी है। अमेरिका इसे मानवीय सहायता बढ़ाने और बंगाल की खाड़ी में चीन के प्रभाव को रोकने के मौके के रूप में देख रहा है। तो दूसरी ओर चीन इसे अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के लिए महत्वपूर्ण आयाम मान रहा ता है। इसमें क्यौकफ्यू बंदरगाह और तेल-गैस पाइपलाइन सीरीखी परियोजनाएं शामिल हैं। चीन को भय है कि पश्चिमी देशों का समर्थन मिलने से इस इलाके में उसका प्रभाव का दायरा प्रभावित हो सकता है।
राखाइन गलियारा विद्रोही गुट ‘अराकान आर्मी’ के प्रभाव वाले क्षेत्र से गुजरता है, जो म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसक संघर्ष में शामिल रही है। इस गलियारे के निर्माण से म्यांमार की सेना और अराकान आर्मी के बीच संघर्ष और बढ़ सकता है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता फैलने की आशंका भी कुछ जानकार जता रहे हैं।
हालांकि शुरू में यूनुस सरकार इस प्रस्ताव से दूर रहने का मन बना चुकी थी, लेकिन अब संभवत: अमेरिका के प्रभाव में इसके पक्ष में दलील दे रही है। लेकिन सेना के घोर विरोध को देखते हुए इस विवाद के और गहराने के आसार बन गए हैं। बांग्लादेश में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है, कट्टर मजहबी तत्व सत्ता पर हावी होते जा रहे हैं। लेकिन सेना अध्यक्ष की गलियारे के विरुद्ध इस ताजा चेतावनी के बाद यह मुद्दा और संवेदनशील होता जा रहा है। सवाल है कि क्या अंतरिम सरकार और सेना के बीच इस विवाद का कोई समाधान निकलेगा? क्या यह गलियारा वास्तव में अस्तित्व में आ पाएगा?
इसमें संदेह नहीं है कि यह मुद्दा बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। इससे जुड़े पक्षों के स्वार्थ भी एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। चीन किसी सूरत में नहीं चाहेगा कि यहां अमेरिका का दखल बढ़े और उसकी बीआरआई परियोजना प्रभावित हो। इसलिए उसका प्रयास है कि यूनुस सरकार पर सतत दबाव बनाए रखकर राखाइन गलियारे का विषय अपने पक्ष में सुलझाए। बहरहाल, आने वाले दिनों तस्वीर साफ होगी और पता चलेगा कि किस पक्ष का पलड़ा भारी रहा और किसे मुंह की खानी पड़ी।
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