सावरकर जयंती : हिंदू राष्ट्र के मंत्रद्रष्टा
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

सावरकर जयंती पर विशेष : हिंदू राष्ट्र के मंत्रद्रष्टा

सावरकर सिर्फ प्रखर राष्ट्रभक्त ही नहीं थे। उन्होंने हिंदी और हिंदुत्व को राष्ट्रीयता का आधार बनाया। चाहे हिंदुओं पर आसन्न दोहरा खतरा हो या वनवासी समुदाय को लेकर आज की विकराल समस्या, उन्होंने दशकों पहले की सचेत कर दिया था

by डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष
May 28, 2025, 07:41 am IST
in भारत, विश्लेषण, संघ
विनायक दामोदर सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

आधुनिक भारत के निर्माताओं में विनायक दामोदर सावरकर का नाम अग्रणी है। वीर सावरकर को भारतीयता के मूलस्वर हिंदुत्व के विचार को देश में स्थापित करने का श्रेय जाता है। यद्यपि इससे पूर्व लोकमान्य तिलक ने हिंदू जागरण का कार्य प्रारंभ कर दिया था, किंतु पारंपरिक रूढ़ियों में बंधे होने के कारण तिलक का अभियान समाज के सभी वर्गों को स्पर्श नहीं कर सका। उसका प्रमुख स्वरूप धार्मिक और राजनीतिक जनजागरण का ही रहा।

डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष
साहित्यकार

सावरकर ने हिंदू और हिंदुत्व शब्द को उपासनापरक अर्थ से बाहर निकालकर उसे राष्ट्रीयतापरक अर्थ दिया। हिंदुत्व को राष्ट्रीयता का आधार बनाया, इसीलिए उन्हें हिंदू राष्ट्र का मंत्रद्रष्टा कहा जाता है। उन्होंने खूब विचार-मंथन कर हिंदू शब्द की परिभाषा निश्चित की, जो आज की सर्वाधिक प्रचलित परिभाषा है–

आसिंधु सिंधुपर्यंतं यस्य भारतभूमिका।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिंदुरितिस्मृत:।।

अर्थात् सिन्धु नदी से लेकर हिंद महासागर तक फैली हुई इस भूमि को जो व्यक्ति अपनी पितृभूमि (पूर्वजों की भूमि) व पुण्यभूमि मानता है, वह हिंदू है। आगे चलकर हिंदूराष्ट्र की अवधारणा को युगानुरूप परिष्कृत करते हुए हिंदुओं को संगठित करने का बीड़ा डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने उठाया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर संगठित हिंदू शक्ति के माध्यम से भारत राष्ट्र के अभ्युदय का पथ प्रशस्त किया।

हिंदुत्व का उद्घोष

यह देश में स्वतंत्रता आंदोलन के तिलक-काल का अवसान और गांधी-काल का उठान था, जिसमें मुस्लिम तुष्टीकरण एक प्रमुख प्रवृत्ति बन गया। मुस्लिम समुदाय की संतुष्टि के लिए तत्कालीन सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा हिंदू शब्द से भी परहेज किया जाने लगा। भारत की मौलिक पहचान एवं ऐतिहासिक गौरव बिंदुओं को यह कहकर तिरस्कृत किया गया कि ये हिंदू सांप्रदायिकता के चिह्न हैं। ऐसे सर्वथा प्रतिकूल माहौल में इन्हीं दोनों प्रणेताओं ने हिंदुत्व का उद्घोष किया, जिसने दैन्यग्रस्त हिंदू समाज को वैचारिक ऊर्जा प्रदान की। जब पश्चिमी विद्वान् यह दुष्प्रचार कर रहे थे कि भारत की कोई एक प्राचीन राष्ट्रीयता नहीं, यहां बाहर से आए हुए भांति-भांति के लोगों और संस्कृतियों का जमावड़ा रहा है, तब सावरकर ने ही सर्वप्रथम भारत की राष्ट्रीयता को दृढ़तापूर्वक ‘हिंदू राष्ट्रीयता’ के नाम से संबोधित किया था।

राष्ट्रीय राजनीति से तिलक के अवसान के बाद राजनीति की दिशा बदल गई। कांग्रेस द्वारा खिलाफत आंदोलन को हाथ में लेना एक असामान्य घटना थी। यह राजनीति में सांप्रदायिकता का अनैतिक घपला था। यह कितना अनुचित था इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि जिन्ना जैसे मुस्लिम नेता भी इसके घोर विरोधी थे। भारत में यह पहली राजनीतिक घटना थी, जिसने मुस्लिमों की उग्रता और आक्रामकता को प्रोत्साहित कर अत्यधिक बढ़ा दिया। देश में मुस्लिम साम्प्रदायिकता को यदि यह राजनितिक आधार नहीं मिला होता तो न मोपला हत्याकांड घटित होता, न देश का विभाजन होता। सावरकर हिंदुओं पर बढ़ते जा रहे इन संकटों का एकमात्र समाधान देशभक्त हिंदुओं का संगठन और हिंदुत्व का पुनर्जागरण करने में देखते थे।

हिंदुओं पर मंडराता खतरा

सावरकर हिंदुओं के सम्मुख दो तरह के खतरे देख रहे थे। एक ओर गांधी और नेहरू की छाया में कांग्रेस द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विचारों की निरंतर उपेक्षा हो रही थी तो दूसरी ओर भारत में कम्युनिस्टों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। भारतीय मानस पर मार्क्सवाद, इस्लाम और ईसाइयत के समवेत संकटों को देखते हुए इनका एकमात्र उत्तर देशभक्त हिंदुओं का संगठन और हिंदुत्व का पुनर्जागरण ही था और इसके लिए यह आवश्यक था कि वे अपना सम्पूर्ण समय हिंदुत्व की अवधारणा को साकार करने में लगाएं। इस समय वे काले पानी के कठोर कारावास में लोमहर्षक यातनाएं झेल रहे थे।

वीर सावरकर जिस चट्टानी धातु से बने थे, वह यातनाओं से विचलित होने वाली नहीं थी। जिस काल कोठरी में एक दिन तक रहना मुश्किल हो जाता है, उसमें उन्होंने जवानी के दस वर्ष बिताए। किन्तु हिंदुओं को संगठित करने की आग उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रही थी। नियति ने उन्हें जेल के सीखचों में जीवन पूर्ण करने के लिए नहीं, अपितु हिंदुत्व का ध्वजारोहण करने के लिए भेजा था। इसके लिए आवश्यक था कि वे येन-केन-पथेन दुष्ट अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होकर हिंदुत्व के सिद्धांत को साकार करने में अपनी शक्ति लगाएं। आखिरकार उन्होंने अपनी चतुराई से भांति-भांति के पत्र लिखकर कारावास से बाहर निकलने का मार्ग खोजा। क्षमा याचना का चारा फेंक कर वे जेल से रिहा हो गए और अपना सम्पूर्ण जीवन हिंदुत्व और भारत राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया।

सावरकर की छवि को धूमिल करने के लिए जिन विचारमूढ़ों ने उनके कारागार से बाहर निकलने की रणनीति को निशाना बनाकर उन पर माफी मांगने का लांछन लगाया, उसका असली कारण कुछ और है। वे हिंदूद्रोही लोग सावरकर के विचारों में छुपी हुई उन चिंगारियों को फैलने से रोकना चाहते थे, जो सेकुलरों और वामपंथियों की छल-कपट की लंका में आग लगा सकती थीं। इसीलिए वे उन पर व्यक्तिगत आक्रमण तो करते हैं, परंतु उनके युगांतरकारी विचारों से मुंह चुराते हैं। चाहे 1857 की क्रांति पर उनकी नई इतिहास दृष्टि हो, मोपला हत्याकांड पर उनका तथ्यात्मक लेखन हो, उनकी हिंदुत्व की मौलिक अवधारणा हो, खिलाफत आंदोलन की विफलता का तार्किक विश्लेषण हो, तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर उनकी दूरदृष्टि हो, अस्पृश्यता निवारण और सामाजिक समरसता के लिए किए गए जन आंदोलन हों, शास्त्रीय पोंगापंथियों के विरुद्ध उनके आधुनिक वैज्ञानिक विचार हों; ये सारे छद्म सेकुलरवादी और वामपंथी उनके प्रखर विचारों से कन्नी काटते हुए बचकर निकल जाते हैं। यही सावरकर के विचारों की विजय है।

निर्द्वंद्व राष्ट्रभक्ति

वस्तुत: उस कालखंड में हम ऐसे अनेक महापुरुषों को देखते हैं, जिन्होंने सीधे स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने के स्थान पर अपने जीवन को समाज के जागरण और कल्याण में लगाना उचित समझा। उनकी दृष्टि में देश को गौरवशाली एवं वैभवशाली बनाने में समाज को जाग्रत और संगठित करना आवश्यक था। सभी अपने तरीके से इसमें लगे हुए थे, डॉ. आंबेडकर वंचित समुदायों का एकीकरण तथा उन्नयन कर रहे थे। वीर सावरकर और महर्षि अरविंद ने आरंभ में राष्ट्रीय आंदोलन में बहुत सक्रियता से भाग लिया। किन्तु कुछ समय बाद महर्षि अरविंद ने स्वयं को आध्यात्मिक साधना में लगा दिया तो सावरकर ने जीवन का उत्तरार्ध हिंदुत्व के संधान और हिंदू समाज के उत्थान में लगा दिया। किन्तु इससे इनका महत्व कम नहीं हो जाता, अपितु इन असाधारण कार्यों के कारण कई गुणा बढ़ जाता है।

सावरकर की राष्ट्रभक्ति भावना कितनी निर्द्वंद्व थी, इसका एक उदाहरण देखना चाहिए। सावरकर भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाने का खुलकर समर्थन कर रहे थे। देश में ऐसा चाहने वाले करोड़ों लोग थे। किन्तु जब झंडा समिति द्वारा तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज निर्धारित कर दिया गया तो सावरकर ने 15 अगस्त, 1947 को अपने निवास ‘सावरकर सदन’ पर हिंदू महासभा के ध्वज के साथ तिरंगा झंडा श्रद्धापूर्वक फहराया था। यह घटना इसलिए उल्लेखनीय है कि हिंदू महासभा कार्यकर्ता नाथूराम गोडसे सावरकर के इस कदम से नाराज हुए और इसके विरोधस्वरूप अग्रणी पत्र में लेख भी लिखा था।

समरसता के प्रति समर्पण

सामाजिक समरसता के प्रति सावरकर का समर्पण देखते बनता है। वे इसे कोरी भाषणबाजी से नहीं, कार्य व्यवहार से समाज में उतारने का प्रयास करते थे। डॉ. आंबेडकर के हिंदू धर्म त्यागने की घोषणा करने के बाद विनायक सावरकर ने जो पत्र उनको लिखा उसका एक-एक शब्द पढ़ा जाना चाहिए। सामाजिक समरसता का ऐसा एकनिष्ठ और तीव्र प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं के अलावा देश में कहीं नहीं दिखाई देता।

छुआछूत से आहत डॉ. आंबेडकर ने चुनौती दी थी कि, ‘‘केवल बातों की सहानुभूति नहीं चाहिए। अब सक्रिय गारंटी क्या देते हैं; यह पक्की तरह करके दिखाइए।’’ इस पर सावरकर का दिया गया उत्तर सामाजिक समरसता के इतिहास में मील का पत्थर है। उन्होंने पत्र लिखकर आंबेडकर को रत्नागिरि आने का आमंत्रण दिया कि, ‘‘आइये, हम सार्वजनिक घोषणा के साथ सबसे पहले रोटी बंदी तोड़कर दिखाना चाहते हैं, आपके आगमन पर एक बड़ा कार्यक्रम रखते हैं।… पतितपावन मंदिर के बीच सभा मंडप में औसत एक हजार ब्राह्मण, मराठा, वैश्य, किसान आदि प्रतिष्ठित प्रमुख स्पृश्य नागरिकों के साथ अस्पृश्य महार, चमार, भंगी सहित सब मिल-जुलकर पंगत में बैठते हैं। ऐसा ही विशाल भोज आपकी अध्यक्षता में होगा। …यहां के भंगी कथावाचक कथा बांचेंगे। यदि आपके साथ कोई योग्य कथावाचक हो तो वह भी कथा कर सकेंगे। मंदिर में अन्य कथावाचकों जैसे ही भंगी कथावाचक का स्वागत सत्कार किया जाएगा और सैकड़ों लोग कथावाचक के चरण स्पर्श करेंगे। … आपका एक व्याख्यान भी इस अवसर पर हो यह भी हमारी इच्छा है।’’ (सावरकर समग्र : खंड–७, पृ. 165-168)

यद्यपि इस आमंत्रण पर बाबा साहेब रत्नागिरि नहीं आ सके। उन्होंने दिनांक 24.11.1935 को सावरकर को इसका उत्तर भेजा कि ‘‘रत्नागिरि में आप जो कार्य कर रहे हैं उसकी जानकारी पढ़ कर मुझे खुशी हो रही है। यहां के लॉ कॉलेज की व्यवस्था के कारण मैं आपका आमंत्रण का लाभ नहीं ले पा रहा हूं इसका मुझे खेद है।’’ (उपरोक्त, पृ. 169)

सावरकर की दूरदर्शिता

सावरकर दूरद्रष्टा मनीषी थे। वनवासी समुदाय को लेकर आज की विकराल समस्या पर उन्होंने सत्तर वर्ष पूर्व सचेत कर दिया था। 12.12.1953 को पुणे में ‘धर्मांतरण माने राष्ट्रांतरण’ पर व्याख्यान देते हुए वे कहते हैं- ‘‘वनवासी लोगों को हिंदुओं से अलग करने के लिए मिशनरियों ने आदिवासी शब्द रूढ़ कर लिया है। हमें चाहिए कि हम वह शब्द काम में न लाएं। और वे वनवासी हिंदू हैं, यह जान-बूझकर कहें। उनमें भी वैसी जागृति उत्पन्न करें। वे वनवासी ईसाई हो गए तो उनका इस राष्ट्र के लिए स्नेह घट जाएगा, वे भी पादरिस्तान की मांग करने लगेंगे।’’(सावरकर समग्र : खंड–८, पृ.३६१)

हिंदी भाषा के प्रति जैसा आग्रह और दृढ़ता विनायक सावरकर ने दिखाई वैसी यदि कांग्रेस के अन्य नेतागण दिखाते तो आज हिंदी को ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते। हिंदी के प्रति इस अनन्य निष्ठा के कारण वे नेहरू और सुभाष चंद्र बोस, दोनों को कठघरे में खड़ा कर देते हैं। वे कहते हैं, ‘‘पिछले दो साल पंडित जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए हम हिंदुओं को आज्ञा दी कि उर्दू को ही राष्ट्रभाषा बनाओ। और श्री सुभाष बाबू उनसे सवाई अध्यक्ष हुए। उन्होंने पंडित नेहरू जी को मात करने के लिए बताया कि अपनी लिपि छोड़कर रोमन लिपि को स्वीकार करो। उनकी यह कल्पना है कि अगर हमने मुसलमानों को न आने वाली नागरी लिपि छोड़कर रोमन लिपि को स्वीकार किया तो वह प्रसन्न होंगे, परंतु यह कल्पना गलत है क्योंकि मुसलमानों का केवल नागरी लिपि से द्वेष नहीं है। वह निश्चित रूप से अरबी लिपि चाहते हैं, उनका संतोष रोमन लिपि से होने वाला नहीं है। यह भी याद रखें कि देवनागरी लिपि को स्वीकार किए बिना हमें संतोष होने वाला नहीं है। (सावरकर समग्र : खंड-10, पृ. 508)

हिंदी के उन्नायक

वे संस्कृतनिष्ठ हिंदी के पक्षधर थे। हिंदी में घुसा दिए गए हजारों ऐसे शब्दों को, जो उर्दू अथवा अंग्रेजी भाषा के हैं, उन्होंने चिह्नित कर उनके स्थान पर हिंदी के अपने शब्द प्रस्तुत किए। जो शब्द हिंदी में अनुपलब्ध थे, उनके लिए नए शब्द गढ़कर भाषा को विकसित किया। वे डंके की चोट पर कहते थे कि ‘संस्कृतनिष्ठ हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए यह मेरा स्पष्ट मत है।’ विनायक सावरकर असाधारण प्रतिभा के उज्ज्वल पुंज थे। कवि, उपन्यासकार, इतिहासकार, पत्रकार, भाषाविद्, क्रांतिकारी, समाज सुधारक ऐसे कितने ही उनके जीवन के आयाम हैं। 1857 क्रांति पर पहला शोधपूर्ण ग्रंथ ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ उन्होंने लिखा और इस आंदोलन के ऐतिहासिक विमर्श की धारा को मोड़ दिया। मोपला के भीषण नरसंहार की घटना पर विनायक राव ने एक मार्मिक उपन्यास ‘मुझे उससे क्या?’ की रचना की। यह उपन्यास हमें झकझोर कर रख देता है। हिंदुत्व आधारित राजनीतिक अवधारणा को स्थापित करने के लिए सावरकर ने 1923 में ‘हिंदुत्व’ नामक कालजयी ग्रंथ की रचना की, जिसने पूरे देश में हिंदू नवजागरण की लहर उत्पन्न कर दी। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, भाषापरक विषयों पर हजारों पृष्ठ लिख दिए। जेल की दीवारों पर लिख-लिख कर सैंकड़ों पृष्ठों की कविताएं रच डाली।

वीरवर सावरकर के अवदानों की सूची लंबी है। भारत के उत्थान हेतु हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की जो ज्योति उन्होंने जलाई, उसे कुछ और परिष्कृत कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कृति रूप में कोटि-कोटि दीपों में अवतरित कर रहा है। वीरवर सावरकर के निधन पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने कहा था, ‘‘आज उनके प्रति श्रद्धांजलि यह हो सकती है कि हम उनके प्रति श्रद्धा, आदर रखते हुए यह विचार करें कि उनके द्वारा चलाए गए कार्य को आगे बढ़ाना अपना काम है।’’ (श्रीगुरुजी समग्र : खंड 1, पृ. 159) संघ ने ‘अपना काम’ समझते हुए उनके द्वारा प्रारंभ किए गए कार्यों को निरंतर आगे बढ़ाया है, हिंदुत्व की दिव्य ज्योति से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करने की ठानी है।

Topics: हिंदुत्व को राष्ट्रीयताडॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारहिंदी के उन्नायकवीर सावरकरहिंदुत्व का उद्घोषविनायक दामोदर सावरकरहिंदूराष्ट्रमहर्षि अरविंदहिंदुत्व का ध्वजारोहणहिंदू महासभासंगठित हिंदू शक्तिपाञ्चजन्य विशेष1857 का स्वातंत्र्य समरहिंदू जागरणहिंदुत्व विचारहिंदू और हिंदुत्व शब्द
Share6TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ : अरविंद नेताम

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

स्वामी दीपांकर

1 करोड़ हिंदू एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने की “भिक्षा”

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

माता वैष्णो देवी में सुरक्षा सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

Britain NHS Job fund

ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट: एनएचएस पर क्यों मचा है बवाल?

कारगिल विजय यात्रा: पूर्व सैनिकों को श्रद्धांजलि और बदलते कश्मीर की तस्वीर

four appointed for Rajyasabha

उज्ज्वल निकम, हर्षवर्धन श्रृंगला समेत चार हस्तियां राज्यसभा के लिए मनोनीत

Kerala BJP

केरल में भाजपा की दोस्तरीय रणनीति

Sawan 2025: भगवान शिव जी का आशीर्वाद पाने के लिए शिवलिंग पर जरूर चढ़ाएं ये 7 चीजें

CM Yogi Adityanath

उत्तर प्रदेश में जबरन कन्वर्जन पर सख्त योगी सरकार, दोषियों पर होगी कठोर कार्यवाही

Dhaka lal chand murder case

Bangladesh: ढाका में हिंदू व्यापारी की बेरहमी से हत्या, बांग्लादेश में 330 दिनों में 2442 सांप्रदायिक हमले

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies