क्या भारत और पाकिस्तान पूर्ण युद्ध के कगार पर हैं?
निश्चित रूप से ऐसा नहीं है। युद्ध में भारत की रुचि नहीं है। भारत केवल यह संदेश देना चाहता था कि आतंकी पाकिस्तान की सरजमीं से यहां आकर निर्दोष नागरिकों की हत्या कर सुरक्षित लौट नहीं सकते। भारत ने केवल आत्मरक्षा में प्रतिक्रिया की, वह भी बहुत सावधानी और सोच-समझकर। केवल केवल ज्ञात आतंकी ठिकानों और उसके मुख्यालयों को ही निशाना बनाया। किसी भी सरकारी या सैन्य प्रतिष्ठान को नहीं। लेकिन पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पार से भारी तोपखाने से गोले बरसाए गए, जिसमें 19 भारतीय नागरिक मारे गए और 59 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। भारत ने भी उसका मुंहतोड़ जवाब दिया। जब पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल से भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले का प्रयास किया तो भारत ने पाकिस्तानी वायु रक्षा पर हमला किया। यह बहुत स्पष्ट है कि भारत तनाव नहीं बढ़ा रहा, केवल प्रतिक्रिया कर रहा है।
रिपोर्ट में तो कहा जा रहा है कि हमलों में बच्चे भी मरे हैं। एक मस्जिद को नष्ट कर दिया गया। क्या वाकई हमले सटीक और संयमित थे?
बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय और मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय, कुख्यात आतंकी ठिकाने थे। अगर वहां कोई रह रहा था, तो वे आतंकी सरगनाओं के परिवार या आतंकी बनने का प्रशिक्षण ले रहे लोग थे। ये किसी भी तरह से मासूम स्थान, स्कूल, मस्जिद या घर नहीं थे। इन स्थानों पर आतंकियों को प्रशिक्षित, वित्तपोषित, सुसज्जित किया जाता है और भारत में निर्दोष नागरिकों को मारने के लिए भेजा जाता है। भारत इसी पर प्रतिक्रिया कर रहा था।
आतंकवाद को प्रायोजित करने के पीछे पाकिस्तान की क्या मंशा होगी? सबूत क्या है?
मत भूलिए कि पाकिस्तान पलटी खाने में माहिर है। उसने 26 नवंबर, 2008 को मुंबई आतंकी हमले में संलिप्तता से इनकार किया, जिसमें 170 लोग मारे गए थे। जब एक आतंकी जिंदा पकड़ा गया तो उसे स्वीकार करना पड़ा कि इसके पीछे उसका हाथ था। लादेन पाकिस्तानी सेना के अड्डे से कुछ ही दूरी पर रहता था, लेकिन वे इनकार करते रहे। एक बात को बहुत स्पष्ट रूप से समझ लीजिए कि भारत एक यथास्थिति शक्ति है। उसका ध्यान अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, अपनी उच्च तकनीक को बेहतर बनाने और अपने युवाओं के लिए भविष्य प्रदान करने पर है। पाकिस्तान एक कट्टरपंथी देश है, जो भारत के कुछ हिस्सों पर इस आधार पर कब्जा करना चाहता है कि वहां रहने वाले लोग पाकिस्तानियों की तरह एक मजहब को मानते हैं। भारत में 20 करोड़ मुसलमान हैं, क्या वे उस पर कब्जा करना चाहते हैं? यह एक बेतुका दृष्टिकोण है, जिसे पाकिस्तान ने अपनाया है। वह 30 वर्ष से आतंकियों को भेज रहा है ताकि भारत को लहूलुहान कर सके और कश्मीर के क्षेत्र पर कब्जा कर सके।
पाकिस्तान समझ नहीं रहा है कि निर्दोष नागरिकों की हत्या प्रतिशोध को आमंत्रित करेगी। पठानकोट में हमला हुआ, तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी को जांच में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया। वे आए और वापस जाकर कहा कि यह हमला भारत ने कराया। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने एयर स्ट्राइक किया। लेकिन इस बार पहलगाम में आतंकी हमला हुआ तो भारत ने आतंक के नौ अड्डों को नष्ट कर दिया। भारत को शांति ज्यादा अच्छी लगती है और पाकिस्तानियों से हम यही आग्रह करेंगे। लाल सिंदूर सुहाग की निशानी है, जिसे महिलाएं लगाती हैं। सिंदूर का रंग खून के रंग से बहुत भिन्न नहीं होता।
कभी-कभी दोनों देशों को 80 साल पुराने मुद्दों को सुलझाने का अवसर मिलता है। इस संबंध में क्या कोई उम्मीद है?
जहां तक वर्तमान संकट का सवाल है, भारत से संयम बरतने का आह्वान करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत पहले से ही संयम बरत रहा है। भारत पहले ही कह चुका है कि वह कोई सैन्य कार्रवाई शुरू नहीं करेगा, लेकिन यदि सैन्य कार्रवाई थोपी गई तो प्रतिक्रिया करेगा। इसलिए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बस इतना करना है कि पाकिस्तान को सही राह पर चलने के लिए कहे। जिस दिन वह हमले बंद कर देगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। अगर वह युद्ध चाहता है, तो युद्ध मिल जाएगा। बहुत कम लोगों को संदेह है कि दोनों देशों में से किस देश में युद्ध में टिकने की क्षमता अधिक है। गेंद पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में है। हम आतंकियों और पाकिस्तान को वह हासिल नहीं करने देंगे, जो वे चाहते हैं।
पाकिस्तान से कौन बात कर सकता है और उसे इस स्थिति से बाहर निकाल सकता है और तनाव कम करने में मदद कर सकता है? वे किसकी बात सुनेंगे? क्योंकि ऐसा नहीं लगता कि वाशिंगटन में इस संघर्ष में थोड़ा भी शामिल होने की इच्छा है। चीन ने इस विषय में दिलचस्प बयान दिया है। वह पाकिस्तान का ‘सदाबहार मित्र’ है। चीन पाकिस्तान के कुल कर्ज का 30% हिस्सा नियंत्रित करता है। इसके अलावा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी है जो चीन के लिए आर्थिक महत्व रखता है। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि पाकिस्तान चीन की बात सुनेगा।
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने अपनी एक ऑनलाइन रिपोर्ट में लिखा है, “अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने संयम बरतने की अपील की, जिससे भारत में आक्रोश फैला।” क्या भारत अमेरिका से धोखा खाया हुआ महसूस कर रहा है?
मैंने यह लेख नहीं पढ़ा है, इसलिए लेखक की मंशा नहीं जानता। भारत पहले ही संयम की बात कह चुका है। हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारा अभियान आतंकी हमले की सिर्फ प्रतिक्रिया थी। हमसे संयम की बजाय पाकिस्तान से संयम की अपील करें, वह ज्यादा जरूरी है। अगर वे आगे भी गोलाबारी करते हैं, तो भारत भी जवाब देगा। भारत का आत्मसम्मान है।
क्या इस पूरे घटनाक्रम में आपको किसी पक्ष की ओर से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी या इशारा महसूस हुआ है?
भारत की ओर से तो बिल्कुल नहीं। भारत परमाणु हथियारों की धमकी नहीं देता, क्योंकि यह हमारी नीति ही नहीं है। पाकिस्तान के पास ऐसी कोई नीति नहीं है। वह कई बार इशारा कर चुका है कि वह पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। भारत के साथ पाकिस्तान की तुलना करना पूरी तरह गलत है। एक देश आतंकवाद का समर्थक है और दूसरा आतंकवाद का शिकार। एक देश ने पहले परमाणु हमले से इनकार किया है और दूसरा इस विकल्प को खुला रखता है। इसलिए अगर कोई जिम्मेदारी है तो वह पाकिस्तान की है। वही अपने बर्ताव को संयमित करे।
आप इस पूरे मामले को किस दिशा में जाते देख रहे हैं?
उम्मीद है कि कुछ विदेशी राजधानी शहरों में लोग पाकिस्तान को यह साफ कहेंगे, “तुमने काफी गोलियां चला लीं, काफी जानें ले लीं, अब रुक जाओ।”
अगर वे ऐसा नहीं कहते, विशेषकर बीजिंग, तो फिर स्थिति बहुत अस्थिर हो सकती है। पाकिस्तान को अपनी सेना की प्रतिष्ठा बचाने के लिए युद्ध का छोटा रास्ता अपनाने का लालच आ सकता है। दुनिया की निगाहों में पाकिस्तान की पहचान आतंक को बढ़ावा देने वाले देश की है। यही देश तालिबान को बढ़ावा देता आया है। हिलेरी क्लिंटन भी कह चुकी हैं, इन्होंने अपने आस्तीन में जहरीले सांप पाल रखे हैं और वही अब इन्हें डंस रहे हैं। अब पाकिस्तान को दुनिया की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके लिए उसे शांति की राह पर आना ही होगा।
(अल अरबिया इंग्लिश से साभार)
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