केरल

केरल यूनिवर्सिटी बिल पर बवाल : शिक्षकों की अभिव्यक्ति पर रोक..?

केरल यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक : ‘शिक्षक न करें राज्य सरकार का विरोध, केंद्र के खिलाफ बोल सकते हैं’, बाद में केरल सरकार ने कहा- गलत समझा गया

Published by
सोनाली मिश्रा

केरल में यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक अर्थात यूनिवर्सिटी अमेंडमेंट विधेयक को लेकर हंगामा मचा हुआ है। मातृभूमि पोर्टल के अनुसार इस विधेयक में यह कहा गया है कि टीचर्स को राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए, हां वे लोग केंद्र सरकार के खिलाफ बोल सकते हैं। केरल सरकार का प्रस्तावित यह विधेयक बहस का मुद्दा बना हुआ है। यह अकादमिक स्वतंत्रता और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में राज्य के हस्तक्षेप की सीमा पर प्रश्न उठाता है।

इस पोर्टल के अनुसार इस विधेयक के मुख्य प्रावधानों में से एक प्रावधान ऐसा है जो यूनिवर्सिटी और कॉलेज टीचर्स को उन गतिविधियों में संलग्न करने से रोकेगा जो राज्य के कानूनों और यूनिवर्सिटी नीतियों की आलोचना करती हैं। इसमें लिखा है कि केंद्र सरकार के कानूनों और नीतियों की आलोचना कर सकते हैं।

हालांकि केरल सरकार की उच्च शिक्षा मंत्री ने इसका खंडन किया है। उन्होंने इसे विकृतिकरण कहा है। द न्यूज मिनट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि विधेयक में “स्टेट अर्थात राज्य” शब्द का अर्थ केरल राज्य से न होकर देश से है।

मंत्री आर बिन्दु ने कहा कि “हम शिक्षकों को संगठनात्मक स्वतंत्रता दे रहे हैं, उनके अधिकारों पर रोक नहीं लगा रहे हैं। मैंने भी देखा कि विकृत खबरें फैल रही हैं। राज्य के कानून की व्याख्या देश में मौजूद कानूनों के रूप में की जानी चाहिए, न कि केरल राज्य में।” लेकिन उनका यह तर्क गले नहीं उतरता है।

इस विधेयक में यह भी कहा गया है कि यदि टीचर्स या उनके समूह किसी भी प्रकार की कोई प्रचारात्मक सामग्री लेकर आते हैं और जिनका अनुमोदन पहले से नहीं है तो उनमें किसी भी प्रकार से राज्य का कोई भी विरोध नहीं होना चाहिए।

इसमें लिखा है कि “शिक्षक या उनके समूह या संगठन यूनिवर्सिटी की पूर्व स्वीकृति के बिना परिसर में लिखित या मुद्रित या इलेक्ट्रॉनिक सामग्री वितरित और प्रदर्शित कर सकते हैं, बशर्ते वितरित सामग्री यूनिवर्सिटी की नीति और राज्य कानून के अनुरूप हो। ऐसी सामग्री के लिए जिम्मेदार व्यक्ति या व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से इंगित किया जाना चाहिए।“

यह प्रावधान आपत्तिजनक है क्योंकि इससे सत्ता की चेतावनी का संकेत प्राप्त हो रहा है। यह विधेयक यूनिवर्सिटी के प्रो-चांसलर्स, प्रो-वाइस चांसलर्स और रजिस्ट्रार्स की शक्तियों का विस्तार करता है। प्रो-चांसलर उच्च शिक्षा विभाग का प्रभारी मंत्री होता है। यह विधेयक प्रो-चांसलर को चांसलर की अनुपस्थिति में यूनिवर्सिटी की सीनेट बैठकों और दीक्षांत समारोहों की अध्यक्षता करने और यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक और प्रशासनिक मामलों पर कोई भी जानकारी मांगने का अधिकार देता है। प्रो-चांसलर को यह अधिकार होगा कि वे किसी भी ऐसे मामले को उठा सकें जिसे वे महत्वपूर्ण मानते हों या जो सरकारी नीति से संबंधित हों, चांसलर या यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के ध्यान में ला सकें और उचित कार्रवाई का अनुरोध कर सकें।

इस विधेयक की आलोचना इसी कारण हो रही है कि यह प्रो-चांसलर्स को बहुत अधिक अधिकार दे रहा है। परंतु केरल की उच्च शिक्षा मंत्री इससे सहमत नहीं हैं। इस विधेयक को लेकर पूर्व में भी हंगामा हो चुका है। मार्च में केरल में विपक्षी दलों ने विरोध करते हुए कहा था कि राज्य सरकार यूनिवर्सिटीज को सरकारी संस्थान बनाकर उनकी स्वायत्ता समाप्त करने का प्रयास कर रही है।

विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीसन ने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक का उद्देश्य निजी विश्वविद्यालयों के पक्ष में सार्वजनिक संस्थानों को कमज़ोर करना है। उन्होंने तर्क दिया कि विधेयक कुलपतियों की शक्तियों को सीमित करेगा और उच्च शिक्षा मंत्री को अत्यधिक अधिकार प्रदान करेगा, जो प्रो-चांसलर का वैधानिक पद धारण करते हैं, जिससे शैक्षणिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप की अनुमति मिलती है। उन्होंने टिप्पणी की, “यह प्रतिगामी और अभूतपूर्व है, और दर्शाता है कि यूनिवर्सिटी का प्रबंधन कैसे नहीं किया जाना चाहिए।” यह विधेयक वर्तमान में राज्यपाल के पास है।

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