नई दिल्ली । मंगलवार 20 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि मस्जिदों में मंदिरों की तरह चढ़ावा नहीं चढ़ता, बल्कि मस्जिद का प्रबंधन वक्फ संपत्ति से प्राप्त आय से किया जाता है।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि नया वक्फ संशोधन कानून, 2025 दरअसल वक्फ संपत्तियों को हथियाने का रास्ता खोलता है।
कपिल सिब्बल की इस दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा-“मैं खुद दरगाह गया हूं, वहां भी चढ़ावा चढ़ता है।”
इसके अलावा सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि 100 से 200 साल पुरानी वक्फ संपत्तियों के दस्तावेज कहां से लाए जाएं, जब उन्हें अनिवार्य रूप से पंजीकृत करना आवश्यक बना दिया गया है। इस पर सीजेआई गवई ने सिब्बल से पूछा कि क्या पहले के वक्फ कानून में रजिस्ट्रेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी..?
जिसके उत्तर में सिब्बल ने कहा कि हाँ, पहले भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान था, लेकिन उसका प्रभाव इतना गंभीर नहीं था। पहले केवल यह होता था कि रजिस्ट्रेशन न कराने पर मुतवल्ली (प्रबंधक) को हटाया जा सकता था, परंतु अब नया प्रावधान कहता है कि यदि संपत्ति का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो उसे वक्फ संपत्ति ही नहीं माना जाएगा।
कपिल सिब्बल ने वक्फ बाय यूजर के पंजीकरण को लेकर कहा कि यूजर द्वारा दस्तावेज़ प्रस्तुत करना व्यावहारिक रूप से कठिन है, क्योंकि जिसने संपत्ति वक्फ की थी, वह अब जीवित नहीं और दस्तावेज़ अनुपलब्ध हैं।
जिस पर सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 1954 के बाद से ही रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया था, जो पहले से लागू व्यवस्था का हिस्सा है।
टिप्पणियाँ