भारत के हमले से पाकिस्तान की किराना पहाड़ी पर बने गहरे गड्ढे। माना जाता है कि यहां परमाणु हथियार रखे गए हैं
गत 12 मई की शाम को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान के ‘परमाणु ब्लैकमेल’ को भारत बर्दाश्त नहीं करेगा। पाकिस्तान के नेता व सैन्य अधिकारी बराबर कहते रहे हैं कि ‘पाकिस्तान परमाणु अस्त्र संपन्न देश है। इसलिए भारत कोई ‘दुस्साहस’ न करे।’ अभी तक पाकिस्तान की एक ही मंशा थी कि परमाणु बम का डर दिखाकर भारत को अपने यहां माैजूद आतंकी अड्डों पर हमले करने से रोका जाए।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के प्रतिशोध से सहमे पाकिस्तान ने फिर ‘परमाणु ब्लैकमेल’ करने की कोशिश की। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जो दृढ़ता और विश्वास दिखाया, उससे पाकिस्तान को लगने लगा है कि नया भारत अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए कुछ भी करने से नहीं हिचकेगा।
पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने शुरू किया था। वजह 1971 के युद्ध में भारत से हार थी। 1974 में पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करने के लिए अतिरिक्त जोर लगाया। डॉ. ए. क्यू. खान 1974 के अंत में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े और माना जाता है कि उन्होंने गुप्त तरीकों से विखंडनीय सामग्री प्राप्त कर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश की। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान ने 1984 के अंत तक परमाणु हथियार विस्फोट करने की क्षमता हासिल कर ली थी।
मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जब ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत परमाणु हथियारों का परीक्षण किया तो पाकिस्तान ने भी उसी माह के अंतिम सप्ताह में परमाणु विस्फोट किए। इस प्रकार पाकिस्तान मई 1998 में एक आधिकारिक परमाणु हथियार वाला राष्ट्र बन गया। कहा तो यह भी जाता है कि पाकिस्तान के पास भारत के बराबर परमाणु हथियार हैं। शुरुआत से ही भारत ने परमाणु हथियारों का पहले उपयोग नहीं करने के सिद्धांत का पालन किया है। एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति होने के नाते परमाणु निरोध की नीति का सख्ती से पालन भी करता है। इसके विपरीत पाकिस्तान इस सिद्धांत को खारिज करता है। हाल के वर्षों में उसने एक सैन्य रणनीति की बात की है। इसके अनुसार, अपने खिलाफ किसी भी आक्रामक हमले के लिए वह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है।
भारत की पारंपरिक युद्ध श्रेष्ठता को दूर करने के लिए पाकिस्तान ने 1999 के कारगिल युद्ध में हार के बाद विशेष रूप से अधिक आक्रामक तरीके से ‘सामरिक परमाणु हथियार’ विकसित किए। खबर है कि ये परमाणु हथियार अपेक्षाकृत कम क्षमता और कम दूरी वाले हैं। ये रणनीतिक परमाणु हथियारों से भिन्न हैं, जिन्हें भारत में अंदर तक मार करने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। इसीलिए वह बार-बार ‘परमाणु ब्लैकमेल’ करता रहा है।
‘परमाणु ब्लैकमेल’ की वजह से भारत पाकिस्तान के खिलाफ खुद को पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) तक सीमित कर लेता था। 2016 में उरी स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद हमने यह देखा। लेकिन इस बार भारत ने बहावलपुर और मुरीदके में जाने-माने आतंकी ठिकानों पर हमला करके पाकिस्तान के परमाणु झांसे को झकझोर दिया। जब पाकिस्तान ने संघर्ष को बढ़ाया, तो भारत ने सरगोधा से सियालकोट तक पाकिस्तान के आठ रणनीतिक हवाई क्षेत्रों पर सटीक मिसाइल हमले किए। भारत ने पाकिस्तान के रडार सुविधाओं और वायु रक्षा बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाया, जिससे पाकिस्तान द्वारा परमाणु हथियार के उपयोग के आसन्न खतरे को प्रभावी ढंग से बेअसर कर दिया गया।
एक अस्थिर राष्ट्र होने के नाते पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका के लिए यह सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती रहा है कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों के संबंध में अनिवार्य दायित्वों को पूरा करे। भारत में जहां सेना नागरिक नियंत्रण में काम करती है, वहीं पाकिस्तान सेना नागरिक सरकार को नियंत्रित करती है। इसलिए अनिवार्य रूप से परमाणु ट्रिगर पाकिस्तान सेना प्रमुख के हाथों में है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में स्थिति को और गंभीर बनाता है। ऐसी स्थिति में परमाणु हथियारों का खतरा किस्तान की अस्थिरता में एक और आयाम जोड़ता है, विशेष रूप से असीम मुनीर जैसे कट्टरपंथी सेना प्रमुख के रहते।
एक चिंता यह भी है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर देश में सक्रिय जिहादी तत्व कब्जा कर सकते हैं। आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली अपनी नीति के तहत पाकिस्तान ने कई इस्लामी आतंकी संगठनों को शरण दी है। ये पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर नजर गड़ाए हुए हैं। इसे हासिल कर वे उन सभी को नष्ट करना चाहते हैं, जो खिलाफत का विरोध करते हैं। चूंकि हमने कुछ उच्च शिक्षित इंजीनियरों और प्रौद्योगिकी उन्मुख लोगों को आतंकी संगठनों में शामिल होते देखा है (जैसा कि 9/11 के हमलों में स्पष्ट है), जो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में ले सकते हैं। दरअसल, पाकिस्तान ऐसे आतंकियों से लड़ने के वादे का झांसा देकर बड़ी आर्थिक मदद हासिल करने के लिए अमेरिका को ‘ब्लैकमेल’ करने में सफल रहा है। दुनिया अब पाकिस्तान के षड्यंत्र को समझ चुकी है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की पूरी दुनिया में कड़ी निंदा हुई। भारत कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सक्षम रहा।
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