पी चिदंबरम, कांग्रेस सांसद
इंडी गठबंधन के वर्तमान और भविष्य पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम ने हताशा और निराशा का भाव व्यक्त किया है। पी चिदंबरम की जुबान फिसल गई या यूं कहें कि दिल की बात जुबान पर आ गई। सलमान खुर्शीद और मृत्युंजय सिंह यादव द्वारा लिखित 2024 के लोकसभा चुनाव पर Contesting Democratic Deficit के विमोचन के अवसर पर पी चिदंबरम ने इंडी गठबंधन पर अपनी गहरी निराशा का भाव व्यक्त किया। पी चिदंबरम की चिंता की अपनी गहरी वजह है। लेकिन, यह चिंता सिर्फ चिदंबरम की नहीं, बल्कि पार्टी में एक बड़े वर्ग के नेताओं की है, मगर वे सभी गांधी परिवार के डर से मुंह नहीं खोल रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी दो लोकसभा चुनावों 2014 और 2019 में नेता विपक्ष की हैसियत नहीं प्राप्त करने के बाद 2024 में 99 सीट जीतकर नेता विपक्ष की कुर्सी हासिल करने में जरूर सफल रही, मगर यह भूल गई की इस सफलता के पीछे पिछले लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी और इंडी गठबंधन की बड़ी भूमिका है। गांधी परिवार ने दबे शब्दों में बहरामपुर लोकसभा सीट से उनकी हार का जश्न मनाते हुए राहुल गांधी को नेता विपक्ष बना दिया। पार्टी के अंदर शशि थरूर सरीखे कई नेता थे जो इस पद के लिए राहुल गांधी से ज्यादा अच्छे से पार्टी के मानस को आगे बढ़ाते।
गांधी परिवार की इस मनमानी का खामियाजा जनता ने तुरंत देना शुरू कर दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के कुछ समय ही बाद महाराष्ट्र के नांदेड़ लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के सांसद वसंतराव बलवंतराव चव्हाण का निधन हुआ। कांग्रेस पार्टी ने 2024 का लोकसभा चुनाव इस सीट से जहाँ 59442 मतों से जीता था, वहीं चव्हाण के निधन से खाली हुए उपचुनाव में महज 1457 वोटों से पार्टी मुश्किल से ही सीट जीत सकी। इतना ही नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव के बाद 9 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा के चुनाव हुए मगर सिर्फ झारखंड और जम्मू और कश्मीर में ही कांग्रेस नीत इंडी गठबंधन सफलता प्राप्त कर सकी।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के एकतरफा निर्णयों के कारण इंडी गठबंधन के दलों का कांग्रेस से मोहभंग होता जा रहा है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में गठबंधन दलों के साथ गठबंधन करके पूरा लाभ उठाया, मगर जब विधानसभा के चुनावों में जब कांग्रेस पार्टी को इन दलों का साथ देना चाहिए था, तो उसने अपनी असली नीयत को सामने रखते हुए सहयोगी दलों की पीठ में खंजर भोंक दिया।
दिल्ली में कांग्रेस पार्टी विगत तीन लोकसभा और दो विधानसभा चुनावों में अपना खाता नहीं खोल पा रही थी। अतएव कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी से इंडी गठबंधन के तहत सीटों का तालमेल किया, मगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आप से सीटों का तालमेल नहीं किया। परिणामतः जहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन में 8 विधानसभा की सीटों पर बढ़त बनाई थी, वहीं विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार शून्य पर आ गई। हरियाणा में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी और आप ने इंडी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा और कांग्रेस पार्टी जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में अपना खाता नहीं खोल सकी थी, वहीं 2024 में 5 लोकसभा की सीट जीतने में सफल हुई थी। हरियाणा में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 42 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी। मगर लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आप के साथ गठबंधन से इंकार कर दिया और जहाँ कांग्रेस पार्टी हरियाणा में सरकार बनाने की ओर अग्रसर थी, वहीं कांग्रेस पार्टी महज 37 सीट पर सिमट गई।
गुजरात में जहां कांग्रेस 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में अपना खाता नहीं खोल सकी थी, वहां इस बार एक सीट आप के साथ गठबंधन के कारण जीतने में सफल हुई थी। राजस्थान में भी गुजरात की तरह जहां दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस खाता नहीं खोल पा रही थी, वहां स्थानीय दलों भारत आदिवासी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और माकपा के साथ ना सिर्फ खाता खोलने में सफल हुई, बल्कि 8 सीटें जीती और इंडी गठबंधन राजस्थान में 11 सीटें जीतने में सफल रही।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी नीत गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 30 लोकसभा की सीटों पर जीत दर्ज़ की थी। कांग्रेस ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो कि पिछले लोकसभा के चुनाव से 12 अधिक थी। ऐसा ही प्रदर्शन उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टियों ने भी किया। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन के दलों ने 288 सदस्यीय विधनसभा में 151 विधानसभा की सीटों पर बढ़त बनाई थी। कांग्रेस ने इंडी गठबंधन में सर्वाधिक 63 विधानसभा की सीटों पर बढ़त बनाई थी। मगर इंडी गठबंधन के दलों ने आपसी खींचातानी में काफी राजनीतिक जमीन खो दी। गठबंधन ने विधानसभा के चुनाव में महज 50 सीट ही जीत सकी। जहाँ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 63 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाया था, वहीं विधानसभा के चुनाव में एक-चौथाई महज 16 विधानसभा की सीटों पर ही बढ़त बना सकी।
केंद्र शासित जम्मू और कश्मीर की बात करें तो वहां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने इंडी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने जानबूझकर महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी के साथ गठबंधन के लिए चर्चा तक नहीं किया। जबकि पीडीपी लोकसभा चुनाव में गठबंधन का हिस्सा थी। मगर कांग्रेस पार्टी ने 7 सीटों पर अपने सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ ही उम्मीदवार उतारा। उन सात सीटों में एक भी सीट पर ना कांग्रेस पार्टी सीधे मुकाबले में आ सकी और ना ही एक भी सीट पर अपना जमानत बचा सकी। आप ने भी अलग होकर जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ा और अपना खाता भी खोलने में सफलता प्राप्त की। जम्मू-कश्मीर चुनाव के क्रम में उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस पार्टी पर कमजोरी से चुनाव लड़ने के साथ ही अपने मजबूत गढ़ जम्मू के इलाके के बदले कश्मीर घाटी में जहाँ उनकी मजबूत पकड़ थी, वहां चुनाव प्रचार करने का आरोप लगाया। उमर अब्दुल्ला इशारों में यह कहना चाह रहे थे कि कांग्रेस जम्मू में अपनी निश्चित हार को देखते हुए अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उनके इलाके में उनके अच्छे प्रदर्शन में अपनी सहभागिता लेने का प्रयास करेगी।
कांग्रेस के इसी रवैये के कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान इंडी गठबंधन के कई दलों ने कांग्रेस का खुलकर विरोध और आप का समर्थन किया। इनमें उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, ममता बनर्जी की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और यहाँ तक कि लालू यादव की पार्टी राजद ने भी कांग्रेस से किनारा करते हुए ममता बनर्जी को इंडि गठबंधन का कमान सौंपने की मांग की थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उसके नकारात्मक रवैये के कारण सभी दलों ने हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया।
वर्तमान में हुए असम पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन कांग्रेस पार्टी को पुरे देश में अपने अन्य सहयोगियों से और भी दूरी बढ़ा देगी। असम पंचायत चुनाव में जहाँ सत्तारूढ़ भाजपा ने स्थानीय सहयोगी दल असम गण परिषद के साथ सीटों का पूरे सम्मान के साथ बंटवारा किया, वहीं कांग्रेस पार्टी ने किसी भी दल से गठबंधन नहीं किया। इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस का बुरा हाल हो गया। लेकिन इसके बाद भी वह किसी भी दल से सीटों का तालमेल करने से बचने की कोशिश करती है।
इतना ही नहीं देश में सबसे अधिक 10 लाख से भी अधिक मतों से धुबड़ी लोकसभा सीट जीतने वाले कांग्रेस पार्टी के रकीबुल हुसैन के मुस्लिम बाहुल्य समागुरी विधानसभा पर उनका पुत्र तंज़ील हुसैन बड़े मतों के अंतर से चुनाव हार जाता है। यह हार बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के कांग्रेस पार्टी के इस उपचुनाव में समर्थन के बावजूद हुई थी। बदरुद्दीन अजमल ने इस सीट पर कांग्रेस पार्टी का एकतरफा समर्थन करके पंचायत तथा आगामी चुनावों के लिए गठबंधन के संकेत दिए थे, मगर कांग्रेस ने उनके इस संकेत को सिरे से ख़ारिज कर दिया।
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