डॉ हरिभाऊ बागड़े, राजस्थान के राज्यपाल
जयपुर। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा है कि पत्रकारिता में खोज और अन्वेषण मूल्यों का विकास जरूरी है। उन्होंने इज़रायल के अपने यात्रा संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वहां पत्रकारिता में शोध को पहले पन्ने पर प्रकाशित किया जाता है। पत्रकारिता में यह दृष्टि अपनाई जाए। उन्होंने भारतीय शोध का अधिकाधिक पेटेंट करवाने का भी आह्वान किया।
राज्यपाल बागडे 13 मई को विश्व संवाद केन्द्र फाउंडेशन द्वारा आयोजित नारद जयंती व पत्रकार सम्मान समारोह में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मौखिक मीडिया की प्रासंगिकता कई बार दूसरे मीडिया से अधिक होती है। महर्षि नारद इसी मीडिया से जुड़े थे। उन्होंने पीओके के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि यह उस समय की ऐतिहासिक भूल थी। उन्होंने कहा कि पीओके निर्माण का पाप लार्ड माउंटेन बेटेन का था।
उन्होंने कहा कि नारद जयंती पत्रकारिता के मूल्यों से जुड़ी है। नारद जी तीनों लोकों में हर प्रकार की सूचनाओं का आदान प्रदान मौखिक करते थे। यही तब की पत्रकारिता थी। इससे पहले उन्होंने विभिन्न वर्गों में पत्रकारिता में उत्कृष्ट कार्य करने वाले पत्रकारों को सम्मानित भी किया। उन्होंने कहा कि जो पत्रकार सम्मानित हुए हैं, वे समाज के लिए अनुकरणीय हैं। उन्होंने कहा कि भारत में बाहरी आक्रांता इसलिए हावी रहे कि हमारे यहां आंतरिक एकता का अभाव था। एक राजा दूसरे राजा की मदद नहीं करता था। उन्होंने कहा कि भारत बदल रहा है। उन्होंने राष्ट्र भक्ति, सावरकर और भारत पाकिस्तान सम्बन्धों की चर्चा करते हुए कहा कि देश प्रेम का जज्बा बदले भारत की सुनहरी तस्वीर है।
राज्यपाल ने महर्षि अरविंद की चर्चा करते हुए कहा कि पंडित नेहरू ने उनके दर्शन की विशेष रूप से “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” में चर्चा की है। अरविंद ने बच्चों की बौद्धिक क्षमता कैसे बढ़ें, इसी पर विशेष ध्यान देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले द्वारा भारत को मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखने के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति इसी आलोक में लागू की है कि बच्चे भारतीय ज्ञान की परंपरा से जुड़े और उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास हो।
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि चाहे हमारे लेखन में नारद शब्द प्रत्यक्ष रूप से आए या नहीं, यदि उसके मूल भाव—लोकमंगल—की स्थापना हमारे लेखन के केंद्र में हो और वह हमारी कसौटी में शामिल हो जाए, तो समझिए हमारी पत्रकारिता की दिशा सही हो जाएगी। मीडिया लोक-रंजन करता है, लेकिन उसे लोक-कल्याण से भी जुड़ा होना चाहिए। नारद जयंती पर हमें, चाहे हमने पत्रकारिता को पेशे के रूप में चुना हो या नहीं, नारद जी के लोकमंगल के भाव को आत्मसात करना चाहिए और उस पर आधारित पत्रकारिता की दिशा में कार्य करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, लेकिन यह निर्णय लेना महत्वपूर्ण होता है कि कौन-सा पक्ष समाज के सामने प्रस्तुत किया जाए। आज जब हम देवर्षि नारद की चर्चा कर रहे हैं, तो साथ ही एक बड़ा विमर्श भी हमारे भीतर चल रहा है—एक द्वंद, एक छानबीन। हम यह जानना चाहते हैं कि जो खबरें हमें दी जा रही हैं, उनके पीछे की असली खबर क्या है। यह जिज्ञासा केवल समाचार तक सीमित नहीं, बल्कि देश की शौर्यगाथा और उसकी अस्मिता से भी जुड़ी है।
वह आगे कहते हैं कि मीडिया में भी अब मठाधीशी की पकड़ कमजोर हुई है। जब एक युवा मात्र आठ हजार रुपये के मोबाइल के साथ सौ करोड़ के चैनल के सामने खड़ा हो जाता है, तो वह तथ्यों की जांच में उतना ही सक्षम हो जाता है। ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया में कई ऑपरेशन हुए हैं, जिनके पीछे कई कारण रहे हैं, लेकिन इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसमें भारत की नैतिक वैधता की विजय हुई है। भारत ने इस नैतिकता के साथ सटीक रणनीति भी अपनाई है, जिसका व्यापक उल्लेख अभी तक नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि सीआईएचएस की रिपोर्ट के अनुसार इन हमलों में 14 आतंकी शिविर, लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद के तीन लॉन्च पैड तथा आईएसआई के दो कमांड सेंटर ध्वस्त किए गए हैं। पाकिस्तान कुछ भी कहता रहे, लेकिन जब उससे कहा जाता है कि चित्र दिखाइए, तो वह चुप हो जाता है। यही स्थिति भारत के कुछ आलोचकों की भी है, जो केवल बयानबाज़ी करते हैं—काग़ज़ नहीं दिखाएंगे, लेकिन बातें बहुत बनाएंगे।
हितेश शंकर ने कहा कि भारत की प्रतिक्रिया के बाद बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के दमित समूहों को एक नई आशा दिखाई दी है। कुछ तथ्य दुनिया के सामने रखने चाहिए—जैसे कि पीओके और बलूचिस्तान केवल नाम नहीं हैं। पाकिस्तान के संविधान में ये क्षेत्र चार आधिकारिक प्रांतों में शामिल नहीं हैं। भारत के संविधान में भी इनके प्रति स्थिति स्पष्ट है। आज का पाकिस्तान लगभग 55 प्रतिशत ऐसे क्षेत्रों से बना है जिनकी पहचान और स्थिति स्वयं पाकिस्तान के लिए बोझ बन चुकी है। यदि ये क्षेत्र निकाल दिए जाएं, तो पाकिस्तान का असली चेहरा स्पष्ट दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन स्थगित भले हो गया हो, लेकिन उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव अब भी गूंज रहा है। डर और आशंका पाकिस्तान में व्याप्त है और ऐसा लगता है कि भारत ने इस ऑपरेशन के ज़रिए पाकिस्तान की नियति लिख दी है। उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक महत्वपूर्ण बात देखने को मिली—वह यह कि भारतीय मीडिया से विपरीत, पाकिस्तान के मीडिया ने इस पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी। वहाँ या तो आधुनिक गीत बजते रहे, या फिर कुरान की आयतें, या कौमी तराने। एक तरह की चुप्पी और हल्कापन देखने को मिला।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत निर्णायक भूमिका निभाने वाला है। इज़रायल और अमेरिका के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है जिसने आतंकवाद और युद्ध के बीच के भ्रम को स्पष्ट रूप से अलग कर दिया है।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जयपुर प्रान्त सह संघचालक डॉ. हेमंत सेठिया ने कहा कि नारद भक्ति, ज्ञान, गीत, कविता, संवाद, के साथ-साथ लोकमंगल के पर्याय हैं। वे विश्व के प्रथम पत्रकार हैं। नारद के चरित्र में लोकमंगल प्रेम, न्याय और सद्भाव के रूप में दिखाई देता है। तीनों लोकों में लोग उनकी प्रतीक्षा करते थे। ऐसी ही पत्रकारिता लोकमंगल के लिए आज हमें चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के समय में लोक मंगल का अर्थ भारत का चहुंमुखी विकास है। इस विकसित भारत में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है और इसके लिए सकारात्मक पत्रकारिता आज के समय की आवश्यकता है। समाज के सामाजिक समरसता के प्रयासों को पत्रकारों को उठाने की आवश्यकता है। पर्यावरण, परिवार, समरसता सभी क्षेत्रों में सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं। स्व का बोध और पंच परिवर्तन समाज में रच बस गए हैं उन्हें पत्रकारों द्वारा प्रचारित करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल तीनों माध्यमों के चयनित पत्रकारों का सम्मान किया गया। प्रिंट मीडिया से मेघश्याम पाराशर को “पुण्यार्थ जीवन, हितार्थ सौदा” स्टोरी के लिए, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से के जे श्रीवत्सन को मेवात में साइबर ठगी और डिजिटल मीडिया से अभिषेक जोशी को सामाजिक समरसता पर विशेष समाचारों के लिए सम्मानित किया गया।
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