राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की पंक्तियां-
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो; उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित विनीत, सरल हो’

इस समय ये पंक्तियां भारत की नीति पर अक्षरशः खरी उतरती हैं। भारत ने निर्णायक सैन्य बढ़त और अपने लक्ष्यों की पूर्ण प्राप्ति के बाद ही संघर्षविराम स्वीकार किया और यह स्पष्ट कर दिया कि अब युद्ध और शांति, दोनों की शर्तें वही तय करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा पर कहा, ‘यह समय युद्ध का नहीं, शांति का है। लेकिन शांति का मार्ग भी शक्ति से होकर ही जाता है।’ यह वक्तव्य न केवल भारत की सांस्कृतिक परंपरा, बल्कि उसकी सामरिक दृढ़ता का भी प्रमाण है।
पाकिस्तान ने न सिर्फ सीमावर्ती इलाकों और सैन्य ठिकानों पर, बल्कि साइबर मोर्चे पर भी भारत को निशाना बनाया। एक सप्ताह में 15 लाख से अधिक साइबर हमले हुए, परंतु भारत की साइबर सुरक्षा एजेंसियों ने 99.99 प्रतिशत हमलों को विफल कर दिया। यह ‘शक्ति और संयम’ का अद्वितीय उदाहरण है।
संघर्ष के दौरान पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत से हमले रोकने की अपील की, जिसके बाद भारत ने अपनी शर्तों पर संघर्षविराम स्वीकार किया। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि भविष्य में कोई भी आतंकी हमला ‘युद्ध की कार्रवाई’ माना जाएगा।
ऑस्ट्रियाई सैन्य इतिहासकार टॉम कूपर ने भारत की इस सैन्य कार्रवाई को ‘स्पष्ट विजय’ और ‘रणनीतिक सटीकता’ की मिसाल बताया। उनके शब्दों में, ’भारत की योजना निर्णायक थी, पाकिस्तान की परमाणु धमकी विफल रही। ‘अर्बन वॉरफेयर स्टडीज के प्रमुख जॉन स्पेंसर ने इसे ‘रणनीतिक संयम और निर्णायक आक्रमण’ का दुर्लभ उदाहरण बताते हुए कहा-’भारत अब किसी बाहरी दबाव के बिना अपने शत्रुओं को जवाब देने में सक्षम है।’
पाकिस्तान की तथाकथित ‘इस्लामिक लोकतांत्रिक’ हुकूमत की हकीकत भी उजागर हो गई। वहां सत्ता असल में सेना के हाथों में है, जो ‘खाकी’ की हुकूमत चला रही है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री खुलेआम मदरसों को ‘सेकंड लाइन ऑफ डिफेंस’ बताते हैं, यही मदरसे कट्टरपंथ और जिहाद का अड्डा बन चुके हैं।
भीतर से पाकिस्तान विखंडन के कगार पर है-बलूचिस्तान, पख्तून और फाटा क्षेत्रों में विद्रोह, संसाधनों की लूट और स्थानीय असंतोष चरम पर है। पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में भी भारत के समर्थन में रैलियां और प्रदर्शन हुए हैं; इंटरनेट पर सैकड़ों वीडियो-फोटोग्राफ इसकी पुष्टि करते हैं।
पाकिस्तान की संसद में भी असंतोष की गूंज सुनाई दी-’हमारे इलाके से गैस निकलती है, लेकिन पीने का पानी नहीं मिलता।’ एक सांसद ने अपने प्रधानमंत्री को ‘गीदड़’ कह डाला, जो भारत के प्रधानमंत्री का नाम लेने से भी डरते हैं।
भारत ने संघर्ष विराम के साथ यह अंतिम संदेश भी दिया-’अब कोई संवाद तभी, जब पाकिस्तान अपनी ज़मीन से आतंकवाद का पूर्ण सफाया करे।’ भारत की नीति अब स्पष्ट है-’जो आतंक का समर्थन करेगा, वह शत्रु की श्रेणी में आएगा।’
‘शांति की आकांक्षा उसी की शोभा है, जो शक्ति में सर्वोच्च है।’ भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि वह शांति का पक्षधर अवश्य है, परंतु ‘अहिंसा परमो धर्मः’ के साथ शक्ति और सामर्थ्य से समीकरणों को सिद्ध करना भी उसे भली भांति आता है। दिनकर की कविता ‘शक्ति और क्षमा’ की पंक्तियां हैं-
सच पूछो तो शर में ही,
बसती है दीप्ति विनय की..
संधि वचन संपूज्य उसी का,
जिसमें शक्ति विजय की।
X@hiteshshankar
‘शक्ति से जाता है शांति का मार्ग ’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में स्पष्ट किया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अब आतंकवाद के विरुद्ध भारत की नई नीति है। उन्होंने कहा कि इस आश्वासन के बाद कि पाकिस्तान कोई आतंकी गतिविधि और सैन्य दुस्साहस नहीं करेगा, भारत ने डीजीएमओ स्तर की बातचीत पर विचार किया है। पाकिस्तान को अगर बचना है तो उसे अपने आतंकी ढांचे का सफाया करना ही होगा। भारत का मत एकदम स्पष्ट है, टैरर और टॉक एक साथ नहीं चल सकते, टैरर और ट्रेड एक साथ नहीं चल सकते और पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकता। उन्होंने दोहराया कि पाकिस्तान के आतंकी और सैन्य ठिकानों पर भारत की जवाबी कार्रवाई अभी सिर्फ स्थगित की गई है। प्रस्तुत हैं प्रधानमंत्री मोदी के उसी संबोधन के संपादित अंश
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