बचपन के प्रारंभिक 6 वर्ष, बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए वह “स्वर्णिम काल” है जिसमें उनका मानसिक और शारीरिक विकास सबसे तेज़ गति से होता है और उनकी सीखने की क्षमता अपने चरम पर होती है।
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि बच्चे के मस्तिष्क का 85% से अधिक विकास जीवन के पहले 6 वर्षों में ही हो जाता है। इस अवधि में मिले अनुभव, परिवेश और देखभाल बच्चे के भविष्य के सीखने, सोचने, भावनात्मक संतुलन और सामाजिक कौशल की नींव रखते हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) ने इन वर्षों के महत्व को स्वीकारते हुए शिक्षा प्रणाली में बड़े संरचनात्मक बदलाव किए हैं, ताकि प्रत्येक बच्चे को प्रारंभिक बचपन की गुणवत्तापूर्ण देखभाल और शिक्षा मिल सके।
प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को हम रोज़मर्रा के अनुभवों और सरल तर्क से भी समझ सकते हैं। ये वे वर्ष हैं जब बच्चा ख़ुद को तथा दुनिया को समझना शुरू करता है। इन्हीं वर्षों में बच्चे के मस्तिष्क की बुनियाद, भाषा की समझ, भावनात्मक संतुलन और सामाजिक कौशल रूप लेते हैं।
• बच्चों के मस्तिष्क का 85% विकास जीवन के पहले 6 वर्षों में होता है। इस अवधि में उनके मस्तिष्क में न्यूरल कनेक्शन (neural connections) तीव्र गति से बनते हैं, जिससे उनकी सीखने की क्षमता, स्मरण शक्ति और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं विकसित होती हैं।
• मस्तिष्क की इस लचीलापन (neuroplasticity) के कारण बच्चे आसानी से नई भाषाएँ, सामाजिक कौशल और तर्कशक्ति विकसित कर सकते हैं।
• इस समय बच्चे की ग्रहणशीलता सबसे अधिक होती है। वे पर्यावरण, परिवार, समाज, भाषा और अनुभवों से तेजी से सीखते हैं। इस उम्र में बच्चे अपने चारों ओर के शब्दों, ध्वनियों और संकेतों को समझने और अनुकरण करने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित होते हैं।
• यह वह समय है जब बच्चे के मूलभूत कौशल (basic skills) जैसे भाषा, सामाजिक व्यवहार और संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive ability) विकसित होते हैं। इन आरंभिक वर्षों में बच्चों का भावनात्मक और सामाजिक कौशलों का विकास भी तेजी से होता है।
• प्रारंभिक वर्षों में बच्चे की भाषा ग्रहण करने की क्षमता चरम पर होती है। माता-पिता बच्चे के प्रथम गुरु होते हैं। बच्चे इस समय ध्वनियों और शब्दों को तेजी से आत्मसात कर सकते हैं, जिससे उनकी संवाद क्षमता विकसित होती है। यह सर्वविदित है कि छोटे बच्चे अपनी घर की भाषा/मातृभाषा में अधिक तेजी से सीखते और समझ लेते हैं। घर की भाषा आमतौर पर मातृभाषा या स्थानीय समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। इसका तात्पर्य है कि 0-6 वर्ष की अवस्था भाषा और संवाद कौशल विकसित करने के लिए सुनहरी दौर है। इस दौरान कहानी सुनना, बातचीत करना और गीत/कविताएँ दोहराना बच्चे की शब्दावली, स्मृति और अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाता है।
• सहानुभूति और नैतिकता का विकास : प्रारंभिक 6 वर्षों में बच्चे सहानुभूति, करुणा और नैतिकता जैसे सामाजिक मूल्यों को विकसित करना शुरू करते हैं जिससे उन्हें रिश्ते और समाज की बुनियादी अवधारणाओं को समझने में मदद मिलती है।
• कल्पनाशक्ति का विकास : बच्चे इस समय कल्पनाशील होते हैं और नई अवधारणाओं को अपनी कल्पना के माध्यम से जोड़ने में सक्षम होते हैं जिससे उनकी रचनात्मक सोच का विकास होता है
• अनुभव आधारित सीखना : बच्चे अपने आसपास की चीज़ों को देखकर और स्वयं करके अधिक प्रभावी तरीके से सीखते हैं और इससे हुए अनुभव उन्हें वास्तविक जीवन से जोड़ने में मदद करते है।
वैदिक शिक्षा-पद्धति में बाल्यावस्था को ‘संस्कार’ और ‘ज्ञान अर्जन’ का प्रारंभिक समय माना गया है। गर्भसंस्कार से लेकर बालक के जीवन के पहले कुछ वर्षों में, मस्तिष्क को संस्कारों और प्राचीन शिक्षण विधियों के माध्यम से आकार दिया जाता था।
आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से : न्यूरोसाइंस के अनुसार, मस्तिष्क की 85% संरचनात्मक और कार्यात्मक क्षमताओं का विकास 6 वर्ष की आयु तक हो जाता है।
NEP 2020 के तहत 5+3+3+4 संरचना और फाउंडेशनल स्टेज
नई शिक्षा नीति 2020 ने देश की स्कूली शिक्षा संरचना में ऐतिहासिक परिवर्तन किए हैं जिसमें 10+2 के पारंपरिक ढाँचे को 5+3+3+4 के नए ढाँचे से बदला गया है। इस नये प्रारूप में 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों को फ़ाउंडेशनल स्टेज में शामिल किया गया है ।
• प्री-प्राइमरी एवं आँगनवाड़ी के 3 वर्ष: अब 3 से 6 वर्ष तक के बच्चे आँगनवाड़ी, बालवाटिका या प्री-स्कूल के माध्यम से औपचारिक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनेंगे। नीति के अनुसार, इस आयु-वर्ग के लिए निःशुल्क, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।
• प्राथमिक विद्यालय के प्रारंभिक 2 वर्ष: 6 से 8 वर्ष की आयु के बच्चे अब फ़ाउंडेशनल स्टेज के तहत ही प्राथमिक विद्यालय की कक्षा 1 एवं 2 में शिक्षण प्राप्त करते हैं। इससे पूर्व-प्राइमरी और प्राथमिक शिक्षा के बीच एक सतत जुड़ाव सुनिश्चित होता है, ताकि बच्चे बिना किसी मानसिक अंतराल के सहज रूप से औपचारिक स्कूली माहौल में ढल सकें।
• खेल एवं गतिविधि-आधारित शिक्षण: NEP 2020 ने फाउंडेशनल चरण के पाठ्यक्रम को पारंपरिक रटने या भारी शैक्षणिक दबाव से मुक्त रखने पर ज़ोर दिया है। इसके स्थान पर बहु-स्तरीय खेल, अन्वेषण और गतिविधि आधारित शिक्षण को प्राथमिकता दी गई है। उदाहरण के लिए, बच्चों को कहानियों, चित्रों, खिलौनों, गीतों और खेल-कूद के माध्यम से भाषा, गणित तथा अन्य अवधारणाएँ सिखाई जाएँगी। यह तरीका सीखने को आनंददायक बनाने के साथ-साथ स्कूल के प्रति बच्चे की सकारात्मक धारणा बनाता है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) का महत्व
ECCE 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा और पोषण से जुड़ी एक समग्र अवधारणा है। इसका लक्ष्य बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना ही नहीं, बल्कि उनके शारीरिक स्वास्थ्य, पोषण, भावनात्मक-सामाजिक विकास और सीखने की नींव को मज़बूत करना भी है।
ECCE के अंतर्गत आँगनवाड़ी केंद्रों, प्री-स्कूलों, बालवाटिकाओं आदि के माध्यम से बच्चों को आनंददायक वातावरण में बुनियादी कौशल सिखाया जाता है। शोध स्पष्ट करते हैं कि प्रारंभिक काल में मिलने वाली उच्च-गुणवत्ता वाली देखभाल एवं शिक्षा बच्चे के पूरे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। उदाहरणस्वरूप, जिस बच्चे ने आँगनवाड़ी में रंगों, आकारों या अक्षरों से खेलते हुए सीखा है, वह आगे चलकर कक्षा में अधिक आत्मविश्वास और रुचि के साथ सीख पाएगा। इसके विपरीत, अगर छोटे बच्चों को शुरुआती प्रशिक्षण या सामाजिक एक्सपोजर नहीं मिलता, तो कई बच्चे कक्षा 1 के प्रारंभिक हफ्तों में ही पिछड़ने लगते हैं। इसीलिए ECCE को मजबूत बनाना नीतिकारों की प्राथमिकताओं में शामिल है।
एक मज़बूत नींव पर ही मज़बूत भवन का निर्माण संभव है – ठीक उसी तरह, प्रारंभिक 6 वर्ष पर ध्यान केंद्रित कर हम आने वाली पीढ़ी को सीखने, सृजन और सफल होने के लिए सशक्त आधार प्रदान कर सकते हैं।
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