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ऑपरेशन सिंदूर: प्रतीकों की पुकार, संकल्प की हुंकार

‘ऑपरेशन सिंदूर’ यह कोई सामान्य सैन्य ऑपरेशन नहीं था, न ही यह केवल एक कोडवर्ड था। यह एक सजीव सांस्कृतिक घोषणा थी, जो भारत की आत्मा से निकली थी।

by आसिफ़ ज़मां रिज़वी
May 15, 2025, 05:35 pm IST
in भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

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जब भारत ने हाल ही में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का माकूल और निर्णायक उत्तर दिया, तो उस जवाबी सैन्य कार्रवाई को एक ऐसा नाम दिया गया जिसने शत्रु को केवल रणभूमि में नहीं, बल्कि विचार और संस्कृति के धरातल पर भी पराजित कर दिया‘। ऑपरेशन सिंदूर’ यह कोई सामान्य सैन्य ऑपरेशन नहीं था, न ही यह केवल एक कोडवर्ड था। यह एक सजीव सांस्कृतिक घोषणा थी, जो भारत की आत्मा से निकली थी। यह प्रतिशोध नहीं, प्रत्युत्तर था; केवल सैन्य नहीं, सांस्कृतिक और वैचारिक युद्ध का प्रतीक भी था।

इस नाम के पीछे छिपा था वह पीड़ा और आक्रोश जो पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पूरे देश ने अनुभव किया। जब आतंकियों ने नवविवाहित जोड़ों को निशाना बनाया—ऐसे युवक जो विवाह के कुछ ही दिनों बाद जीवन की नई शुरुआत करने निकले थे, और जिनकी पत्नियों के हाथों में अब भी मेहंदी की रंगत थी, जिनके माथे पर सिंदूर की लाल रेखा उनके सुखद भविष्य की कामना थी—तो उन मासूम प्रतीकों को रौंदने की यह बर्बरता किसी एक व्यक्ति या परिवार पर नहीं, पूरे देश की आत्मा पर आघात थी।

भारत ने इस बार केवल बंदूक नहीं उठाई, उसने शब्दों का भी चयन ऐसा किया जो मन, मस्तिष्क और आत्मा तक जाकर चोट करे। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम एक सांस्कृतिक घोषणा बन गया—यह स्पष्ट कर देने वाला संदेश कि अब भारत केवल गोलियों से नहीं, गौरव से भी जवाब देगा। सिंदूर हमारे समाज में केवल सौंदर्य प्रसाधन नहीं, वह विश्वास, पवित्रता, समर्पण और जीवन के प्रति आश्वासन का प्रतीक है। सिंदूर उस विवाह-संस्कार का प्रतीक है जो भारत की सांस्कृतिक पहचान में रचा-बसा है। वह स्त्री के आत्मबल का, उसकी आस्था का, और एक जीवनसाथी के साथ साझेदारी के दृढ़ संकल्प का रंग है। जब किसी नवविवाहिता का सिंदूर उसके पति के खून से धो दिया जाए, तो वह सिर्फ एक स्त्री का शोक नहीं होता—वह पूरे राष्ट्र के मस्तक पर लगे कलंक के समान होता है। और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ उस कलंक को धोने का भारत का निर्णय था।

यह नामकरण एक युद्ध को युद्ध से आगे ले गया—यह वैचारिक और सांस्कृतिक प्रतिक्रिया थी। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब हर युद्ध केवल सीमा पर नहीं लड़ा जाएगा, वह मनोभूमि पर भी लड़ा जाएगा। यह विचारों की, प्रतीकों की, और गौरव की रक्षा की लड़ाई है।

इस बार की घोषणा भी अलग थी। जब सैन्य कार्रवाई की आधिकारिक जानकारी दी गई, तो दो महिला सैन्य अधिकारियों को मंच पर लाकर देश को संबोधित कराया गया। यह केवल संयोग नहीं था, यह भारत की उस नवीन सोच का प्रतिरूप था जो अब नारी को केवल सहनशीलता की मूर्ति नहीं, शक्ति और साहस की प्रतीक मानती है। यह उस भारत का चित्र था जहाँ अब बेटियाँ न केवल सरहद की रक्षा करती हैं, बल्कि शत्रु पर आक्रमण करने की रणनीति भी बनाती हैं।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक सैन्य क्रिया से कहीं अधिक था। यह भारत की बदलती मानसिकता, उसकी आत्मविश्वासपूर्ण चेतना और सांस्कृतिक अस्मिता की गूंज थी। यह उस सोच के विरुद्ध एक उद्घोषणा थी जो भारत को अब भी एक मौन, सहिष्णु और आत्मपीड़ित राष्ट्र मानती थी। भारत अब मौन नहीं, मुखर है। सहिष्णुता अब उसकी कमजोरी नहीं, उसकी विवेकशीलता है। लेकिन जब बात उसकी नारी की मर्यादा की हो, उसकी संस्कृति की प्रतिष्ठा की हो—तो वह अब दहाड़ने को तैयार है। लेकिन जिस पवित्रता के साथ भारत ने यह नाम चुना, उसी नाम पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों और राजनीतिक विरोधियों ने व्यंग्य कसा। उन्होंने ‘सिंदूर’ जैसे सांस्कृतिक प्रतीक का उपहास किया। वे यह भूल गए कि यही सिंदूर भारत की उन करोड़ों महिलाओं की भावना है जो हर रोज अपने पतियों, बेटों और भाइयों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं, जिनकी आँखों में सरहद पर खड़े अपने प्रियजनों की चिंता तो होती है, पर माथे पर सिंदूर की रेखा उम्मीद की तरह चमकती रहती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राष्ट्र को संबोधित करते हुए जो कहा, वह केवल चेतावनी नहीं, एक सांस्कृतिक उद्घोष था—“जो भारत की माताओं-बहनों की ओर बुरी नज़र डालेगा, उसका अंजाम अब पहले से अधिक कठोर होगा।” यह वाक्य अब केवल शब्द नहीं, भारत की विदेश नीति और सुरक्षा दृष्टिकोण का मूल भाव बन चुका है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य योजना नहीं थी, यह सैनिकों के लिए भावनात्मक प्रेरणा थी। यह उन्हें बताता था कि वे केवल सीमाओं की रक्षा नहीं कर रहे, वे उन सिंदूर की रेखाओं की रक्षा कर रहे हैं जो भारत की प्रत्येक स्त्री के मस्तक पर विश्वास और समर्पण के रूप में चमकती हैं। यह मनोवैज्ञानिक ऊर्जा का स्रोत बन गया—ऐसी शक्ति जो गोलियों से नहीं, भावना और विश्वास से आती है। यह ऑपरेशन भारत के बदलते स्वरूप का परिचायक है। एक ऐसा भारत जो अब केवल तकनीकी रूप से सशक्त नहीं, वैचारिक रूप से भी सजग है। जो समझ चुका है कि आधुनिक युद्ध केवल टैंकों और मिसाइलों से नहीं, प्रतीकों और विचारों से भी लड़े जाते हैं। जब एक सैन्य कार्रवाई का नाम ही एक सांस्कृतिक शस्त्र बन जाए, तो वह शस्त्रों से अधिक प्रभावी हो सकता है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भविष्य की उस रणनीति की नींव है जिसमें भारत अब अपने सांस्कृतिक मूल्यों को भी युद्ध की भाषा में शामिल करेगा। यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नवीन प्रारूप है—जहाँ परंपराएं केवल अतीत की स्मृति नहीं, वर्तमान की शक्ति बन चुकी हैं। यह नाम उस संघर्ष की चेतावनी है, जिसमें भारत अब भावनात्मक नहीं, निर्णायक है। वह अब केवल सहता नहीं, उत्तर देता है। जो भी उसकी संस्कृति, उसकी नारियों या उसकी आत्मा पर आघात करेगा, उसे अब केवल सीमा पर नहीं, आत्मा की गहराइयों से उत्तर मिलेगा। यही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का सबसे गहरा और व्यापक संदेश है।

इस नाम ने मनोवैज्ञानिक युद्ध में भी दुश्मन को पराजित किया। दुश्मन ने जब यह नाम सुना, तो उसे समझ ही नहीं आया कि भारत किस स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है। यह नाम एक मिसाइल की तरह शत्रु के दिमाग में जा बैठा। यह केवल एक ऑपरेशन नहीं था, यह उस भारत की वापसी थी जो युगों-युगों से अपने संस्कारों से ताकत पाता आया है। अब भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं लड़ा जाता, वह विचारों, प्रतीकों और आत्मबल से भी लड़ा जाता है।

जो लोग यह पूछते हैं कि इस ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ क्यों रखा गया, वे शायद कभी भारत की मिट्टी से जुड़े नहीं। वे नहीं जानते कि जब किसी स्त्री की मांग का सिंदूर मिटता है, तो वह केवल एक व्यक्ति का शोक नहीं होता—वह सम्पूर्ण राष्ट्र की अस्मिता पर आघात होता है। और जब पहलगाम में आतंकवादियों ने नवविवाहित पतियों की हत्या की, तो उन्होंने उस सिंदूर को रौंदा। तब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम केवल जवाब नहीं, प्रतिज्ञा बन गया—अब भारत चुप नहीं रहेगा। अब वह हर सिंदूर की रक्षा करेगा।

यह ऑपरेशन अपने नाम से ही एक वैचारिक क्रांति का शंखनाद था। यह वह क्षण था जब शस्त्र और शास्त्र, दोनों एक साथ चले। जब भारत ने कहा—अब शौर्य केवल तलवार से नहीं, विचार से भी होगा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ उन सभी के लिए चेतावनी है जो भारत की स्त्री शक्ति को कमज़ोर समझते हैं, जो हमारी संस्कृति को पिछड़ा कहते हैं, जो मानते हैं कि भारत अब भी भावनात्मक राष्ट्र है। हाँ, भारत भावनात्मक है—पर अब उसकी भावनाएँ शस्त्र बन गई हैं। अब भारत रोता नहीं, गरजता है।

भारत अब बदल चुका है। यह भारत अब न गोली से डरता है, न आलोचना से। यह भारत अब उपहास का उत्तर संकल्प से देता है। और यह भारत हर माँ, हर बहन, हर बेटी के सिंदूर की रक्षा के लिए युद्ध भी लड़ेगा, और उसे गर्व से दुनिया के सामने प्रस्तुत भी करेगा।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ कोई अंतिम कदम नहीं था, यह एक नई शुरुआत है। अब हर सांस्कृतिक प्रतीक भारत की रणनीति का हिस्सा होगा। अब हर अपमान का उत्तर संस्कार से भी मिलेगा और संहार से भी। अब भारत केवल भूगोल नहीं, विचारधारा से भी लड़ेगा। अब कोई भी हमला केवल सीमाओं पर नहीं होगा, हर मानसिक चोट का जवाब भी दिया जाएगा। और यह जवाब केवल बंदूक से नहीं, सिंदूर से भी आएगा।

यह उस भारत की कहानी है, जो अब श्रद्धा को कमजोरी नहीं मानता, जो अब प्रतीकों को केवल परंपरा नहीं, प्रेरणा मानता है। यह भारत उन हर नारी को नमन करता है, जो अपने माथे पर सिंदूर सजा कर केवल श्रृंगार नहीं करती, एक जीवन मूल्य, एक आस्था, एक संकल्प को जीवित रखती है। यही वह भावना है, जिसे आहत करने वालों को अब उत्तर मिलने लगा है—स्पष्ट, सशक्त और सांस्कृतिक।

Topics: ऑपरेशन सिंदूरOperation Sindooroperation sindoor newsभारत की सैन्य कार्रवाईसिंदूर का सांस्कृतिक महत्वभारतीय नारी शक्तिIndia Pakistan Newsपहलगाम आतंकी हमला
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