सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यपाल और राष्ट्रपति को किसी भी विधेयक को तीन माह के अंदर मंजूरी देने का निर्देश देने के मामले में अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल किए हैं। सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया कि अगर कोई मामला संघीय विवाद (केंद्र-राज्य का विवाद) से जुड़ा हुआ है तो राज्य सरकारें किस प्रकार से अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल (मौलिक अधिकारों की रक्षा) कर सकती हैं, जबकि मामले अनुच्छेद 131 से जुड़ा हुआ है।
लाइव हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ने मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 8 अप्रैल 2025 को संविधान के अनुच्छेद 141 (1) का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति को निर्देश देने के फैसले पर सवाल किया है। राष्ट्रपति का कहना है कि ये पूरी तरह से व्यवस्थाओं संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है औऱ इससे संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण होता है। इसी के साथ उन्होंने सर्वोच्च अदालत से 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय भी मांगी है।
संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं
सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल को 3 माह के अंदर विधेयकों पर हस्ताक्षर करने वाले फैसले पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 या 201 में इस प्रकार की समय सीमा का वर्णन ही नहीं है। संविधान में राष्ट्रपति या फिर राज्यपाल के विवेक पर आधारित फैसलों के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। अगर इसी प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 142 का दुरुपयोग किया गया तो इससे देश में संवैधानिक असंतुलन पैदा हो सकता है। दरअसल, अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार मिलता है।
क्या है पूरा मामला
मामला कुछ यूं है कि तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए राज्यापाल रवि एन को तुरंत राज्य सरकार के विधेयकों पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में टिप्पणी की थी कि राज्यपाल को किसी भी विधेयक पर तीन माह के भीतर ही फैसला लेना होगा। इसी समयसीमा के भीतर राज्यपाल को या तो विधेयक को स्वीकृत करना होगा या फिर उसे पुनर्विचार के लिए वापस करना होगा। अगर दोबारा से राज्य सरकार विधेयक पारित करके लाती है तो उसे मंजूरी देनी ही होगी। इसी तरह का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को दिया था।
इसी को लेकर देश की सियासत में बवाल मचा हुआ है।
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