विश्लेषण

फर्जी आधार और मतदाता पत्र से देश की एकता और अखंडता से खिलवाड़

कुछ पाकिस्तानी नागरिक करीब 50 वर्षों से भारत में रह रहे थे। ओसामा ने स्वीकार किया कि वह उरी विधानसभा क्षेत्र से मतदाता के रूप में पंजीकृत था।

Published by
अभय कुमार

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं जो देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकते हैं। पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनज़र भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया। इस आदेश के तहत कई निर्वासितों ने बताया कि उनके पास वैध आधार कार्ड, राशन कार्ड, और यहाँ तक कि मतदाता पहचान पत्र भी हैं।

एक पाकिस्तानी नागरिक ओसामा ने देश वापसी के समय कुछ चौंकाने वाली जानकारियाँ साझा कीं। ओसामा पिछले 17 वर्षों से भारत में रह रहा था। उसने यहीं से बोर्ड परीक्षाएं पास कीं और उसके पास भारतीय दस्तावेज, जैसे कि आधार कार्ड भी मौजूद थे। हैरानी की बात यह है कि उसने भारतीय चुनावों में मतदान भी किया था।

दरअसल, वापस भेजे गए कुछ पाकिस्तानी नागरिक करीब 50 वर्षों से भारत में रह रहे थे। ओसामा ने स्वीकार किया कि वह उरी विधानसभा क्षेत्र से मतदाता के रूप में पंजीकृत था।

गैर-भारतीय नागरिकों का भारत में मतदान करना पूरी तरह अवैध है और इस दावे से भारत की चुनावी शुचिता, राष्ट्रीय सुरक्षा, और मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। चुनाव आयोग ने इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को जांच के निर्देश दिए हैं।

एक वोट के अंतर से तय हुए चुनाव परिणाम

भारत में चुनाव अक्सर बहुत ही नजदीकी अंतर से तय होते हैं। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ एक वोट के अंतर से चुनाव परिणाम बदल गया। नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-

कर्नाटक 2004 विधानसभा चुनाव
निर्वाचन क्षेत्र उम्मीदवार पार्टी मत मत प्रतिशत
संथेमार हल्ली (एससी) आर. ध्रुवनारायण कांग्रेस 40752 42.77%
ए.आर.कृष्णमूर्ति जेडीएस 40751 42.77%

अंतर: 1 वोट

मध्यप्रदेश 2008 विधानसभा चुनाव
निर्वाचन क्षेत्र उम्मीदवार पार्टी मत मत प्रतिशत
धार नीना विक्रम वर्मा भाजपा 50510 47.34%
बालमुकुंद गौतम कांग्रेस 50509 47.34%

अंतर: 1 वोट

राजस्थान 2008 विधानसभा चुनाव
निर्वाचन क्षेत्र उम्मीदवार पार्टी मत मत प्रतिशत
नाथद्वारा कल्याण सिंह चौहान भाजपा 62216 47.13%
सी पी जोशी कांग्रेस 62215 47.13%

अंतर: 1 वोट

भारत के कुछ छोटे राज्यों जैसे सिक्किम, गोवा, उत्तराखंड, और पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा सीटों का आकार छोटा होता है। यहाँ कुछ मतदाताओं के नाम जोड़ने से चुनाव परिणाम को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। विदेशी शक्तियाँ इस स्थिति का दुरुपयोग कर भारत की एकता, अखंडता, और सुरक्षा पर हमला करने की कोशिश कर रही हैं।

कई मतदाताओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न मतदाता पहचान पत्र बनवा रखे हैं। जब चुनाव कई चरणों में होते हैं तो वे कई स्थानों पर जाकर मतदान कर सकते हैं। यह समस्या पश्चिम बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक देखी जाती है। इसके पीछे एक विशेष समुदाय के लोगों की भूमिका भी बताई जा रही है।

चुनाव आयोग द्वारा आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की योजना एक सकारात्मक कदम है। आधार कार्ड व्यक्ति की पहचान प्रमाणित करता है और इससे फर्जी मतदाताओं की पहचान की जा सकती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिक को है। यह अनुच्छेद चुनाव आयोग को बाध्य करता है कि वह अवैध अप्रवासी या फर्जी मतदाताओं को मतदान करने से रोके।

एक प्रस्तावित विधेयक इमीग्रेंट एंड फॉरेनर्स बिल के तहत, अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

यदि कोई व्यक्ति फर्जी आधार कार्ड प्रस्तुत करता है और उसे मतदाता पहचान पत्र से जोड़ा जाता है तो UIDAI आसानी से ऐसे दस्तावेज़ों की पहचान कर सकता है। यह मामला तब NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के अंतर्गत आ जाएगा क्योंकि यह सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बन जाता है।

इस वर्ष के अंत में बिहार और अगले वर्ष पश्चिम बंगाल में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कुछ राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया है कि कई गैर-भारतीय नागरिक भी मतदाता सूची में शामिल हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सरकार और चुनाव आयोग द्वारा की गई सख्ती के चलते फर्जी मतदाताओं की पहचान हुई और चुनाव परिणाम सबके सामने है।

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