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Islamists करवा रहे तस्लीमा नसरीन की आवाज पर ऑनलाइन हमला: तस्लीमा ने की साथ की अपील

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका, जो कट्टरता के खिलाफ मुखर रहती हैं और साथ ही वे लगातार बांग्लादेश के बदलते कट्टर स्वरूप के विषय में भी लिखती हैं।

Published by
सोनाली मिश्रा

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका, जो कट्टरता के खिलाफ मुखर रहती हैं और साथ ही वे लगातार बांग्लादेश के बदलते कट्टर स्वरूप के विषय में भी लिखती हैं। वे हर मंच का प्रयोग अपने देश में बढ़ रही जिहादी कट्टरता को बताने के लिए करती हैं। और यही कारण है कि वे हमेशा ही जिहादी ताकतों का निशाना बनती रहती हैं।

आज उन्होंने सोशल मीडिया पर एक अपील जारी की। उन्होनें फ़ेसबुक और एक्स दोनों को ही संबोधित करके यह अपील लिखी है। उन्होनें लिखा कि वे इसे बहुत तनाव में लिख रही हैं। उन्होनें लिखा कि वे वर्षों से अपने लगभग 1 मिलियन फॉलोवर्स के साथ मानवाधिकारों की रक्षा के लिए हर प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ कलम उठा रही हैं। मगर अब फ़ेसबुक उनकी पोस्ट्स को डिलीट कर रहा है और उनके अकाउंट को सीमित कर रहा है और उन्हें बहुत ही सुनियोजित तरीके से शांत करवा रहा है।

उन्होंने अपनी आवाज दबाने वालों को साइबर जिहादियों की संज्ञा दी। उन्होनें लिखा कि महिला विरोधी चरमपंथी संगठित समूह बनाकर उनके खिलाफ रिपोर्ट्स करते हैं।

उन्होंने लिखा कि “ये लोग – साइबर जिहादी – मुझे व्यवस्थित रूप से निशाना बना रहे हैं। वे फेसबुक की रिपोर्टिंग प्रणाली का दुरुपयोग करके मेरी पोस्ट हटा रहे हैं और मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रहे हैं। वे मेरी सामग्री को आपत्तिजनक इसलिए नहीं कहते क्योंकि यह किसी मानक का उल्लंघन करती है, बल्कि इसलिए क्योंकि यह सच बोलती है – वह सच जिसे वे दफनाना चाहते हैं।“

ऐसा नहीं है कि उनके साथ यह पहली बार हुआ था। उनके साथ अक्सर सोशल मीडिया पर यह होता ही रहता है। यह और भी विडंबनापूर्ण है कि तस्लीमा नसरीन अपने देश बांग्लादेश तो कट्टरपंथियों के चलते जा नहीं सकती हैं, वे भारत के बंगाल में भी जिहादी तत्वों के चलते नहीं जा सकती हैं। बांग्लादेश मे जहाँ पुस्तक मेले में उनकी पुस्तक वाले स्टाल पर हमला होता है तो वहीं बंगाल में उनके नाटकों का मंचन रोका जाता है।
और उससे भी मजेदार यह है कि कथित प्रगतिशीलों की दृष्टि में बांग्लादेश और बंगाल दोनों ही स्थान अभिव्यक्ति की आजादी के प्रतीक हैं। मगर इन दोनों ही स्थानों पर तस्लीमा जिहादी तत्वों के चलते नहीं जा सकती हैं। तस्लीमा के साथ वे कथित प्रगतिशील भी खड़े होने से बचते हैं, जो प्रगतिशीलता का सारा थेका अपनी रचनाओं में लेकर चलते हैं।

तस्लीमा अपनी पोस्ट में आगे लिखती हैं कि “उन्होंने एक्स पर भी ऐसा किया है। वे मेरी मूल तस्वीरों और पोस्ट की नकल करते हैं, उन्हें अपने पेजों पर पिछली तारीख से डालते हैं और फिर मेरी सामग्री को हटाने के लिए फर्जी कॉपीराइट दावे दायर करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म उनकी चालों में फंस रहे हैं, मेरे काम को हटा रहे हैं और डिजिटल धोखाधड़ी और उत्पीड़न के अपराधियों को पुरस्कृत कर रहे हैं।“ उन्होंने फ़ेसबुक और एक्स की नीतियों पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होनें पूछा कि फेसबुक की जिम्मेदारी कहां है? मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्यों छीनी जा रही है जबकि घृणा फैलाने वाले लोग बहुत आराम से बहुत कुछ लिखते रहते हैं?”

तस्लीमा नसरीन ने प्रश्न किया कि क्या ऐसा कोई है जो इस डिजिटल उत्पीड़न के खिलाफ उनके साथ खड़ा रहे? उन्होनें फ़ेसबुक, ट्विटर और सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से उनकी नीतियों की समीक्षा करने के लिए कहा और यह भी कहा कि वे चुप नहीं बैठेंगी। मगर उन्हें समर्थन चाहिए!

यह तस्लीमा को भी पता है कि उन्हें वह समर्थन नहीं मिलेगा जो वे चाहती हैं। भारत का प्रगतिशील वर्ग जो लगातार पश्चिमी मीडिया में बांग्लादेश की यूनुस सरकार के लिए एक भी शब्द नहीं कहता है, फिर चाहे वह शेख हसीना के अंतवस्त्र लहराना हो या फिर शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत को समाप्त करना हो या फिर वहाँ की लड़कियों का सुनियोजित तरीके से परदे में कैद होना, वह तस्लीमा के साथ आएगा, यह तो स्वत: ही अकल्पनीय है। देखना यह भी होगा कि क्या भारत का कथित प्रगतिशील वर्ग तस्लीमा की इस डिजिटल पीड़ा को साझा करता है या जिहादी तत्वों के सामने पूर्ण समर्पण कर चुका प्रगतिशील समुदाय एक बार फिर से चुप रह जाएगा?

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