पाकिस्तान इनदिनों अपनी आतंकी करतूतों को लेकर चर्चा में है। आखिर वह केवल आतंक की ही तालीम के लिए क्यों कुख्यात हो गया है? दरअसल समस्या पाकिस्तान के निर्माण की सोच में ही है, जिसकी जड़ें उसकी हिन्दू पहचान से घृणा में धंसी हैं।
पाकिस्तान में यह होता है, किताबों के माध्यम से। यह सब राष्ट्र निर्माण के आधार पर हो रहा है। समय-समय पर कई रिपोर्ट्स अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित होती हैं या फिर USCIRF जैसी संस्थाओं में प्रकाशित होती हैं। ये रिपोर्ट्स कई वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं और इनमें बताया जाता है कि कैसे एकतरफा झूठ पाकिस्तान में बच्चों के मन में भर दिया जाता है।
USCIRF की वेबसाइट पर वर्ष 2010-11 में करवाए गए एक अध्ययन में यह पाया गया था कि पाकिस्तान में प्राथमिक और सेकंडरी शिक्षा प्रणाली की पुस्तकों में धार्मिक अल्पसंख्यकों और विशेषकर हिंदुओं और ईसाइयों के प्रति पाठ्यक्रम में तो दुराग्रह है ही, साथ ही टीचर्स और उनके साथ पढ़ने वाले बच्चों के व्यवहार में भी दुराग्रह है।
कक्षा दस की उर्दू की किताब में लिखा है कि “चूंकि मुस्लिम मजहब, तहजीब, और सामाजिक व्यवस्था गैर-मुस्लिमों से एकदम अलग है, तो हिंदुओं के साथ रहना मुमकिन नहीं है।“ इसमें लिखा गया है कि इस प्रकार की तालीम भारत के हिंदुओं के साथ हर प्रकार के शांतिपूर्ण संबंधों की हर संभावना को समाप्त कर देती है और साथ ही सबसे बढ़कर यह पाकिस्तान के हिंदुओं को भी बाहरी बना देती है।
इसमें कक्षा सात की उर्दू की पुस्तक के हवाले से यह भी लिखा है कि “”मुसलमानों के दो दुश्मन थे, अंग्रेज़ और हिंदू। ये दोनों ही पाकिस्तान के गठन के खिलाफ थे। एक तरफ अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के बंटवारे की योजना को त्याग दिया था, वहीं दूसरी तरफ़ हिंदू पूरे हिंदुस्तान पर कब्ज़ा करके मुसलमानों को गुलाम बनाने की योजना बना रहे थे….”
Journal of International and Comparative Education, v9 n2 p103-118 2020 में Ashar Johnson Khokha ने भी एक रिसर्च पेपर लिखा था। जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि कैसे पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से इतिहास को पूरी तरह से तोड़ कर पाकिस्तान में बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। उनके दिमाग में वह सब भरा जाता है, जो सच था ही नहीं। और हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ उन्हें भड़काया जाता है।
Portrayal of Invaders and Conquerors of Indian Subcontinent: Analysis of History
Textbooks Studied in Pakistani Schools शीर्षक वाले रिसर्च पेपर में लिखा है कि वर्ष 1971 में पाकिस्तानी सेना की हार ने राष्ट्र निर्माण की बहस को तेज किया और राज्य ने यह तय किया कि इस्लाम को पाकिस्तानी पहचान के साथ जोड़ेंगे। एक काल्पनिक पहचान, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुस्लिम शासन से पैदा हुई थी और उसमें ही सम्मिलित थी। भारत के साथ संघर्ष और युद्ध का प्रयोग इस पहचान को और मजबूत तरीके से स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
जिया उल हक के कार्यकाल में हुए पाठ्यक्रम संशोधन में इस्लाम को ही ऐसा कारक बना दिया जो पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों की विषय सामग्री को निर्धारित करने वाला था। यह बताया जाता है कि भारत को लेकर हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच लगातार संघर्ष हुआ और मुस्लिम उस संघर्ष में विजयी हुए और फिर उन्होनें तमाम तरीके के सकारात्मक परिवर्तन किये। हिन्दू उनसे न केवल सैन्य शक्ति में, बल्कि सामाजिक, और सांस्कृतिक रूप से भी कमजोर थे।
पाकिस्तान में सिंधु घाटी सभ्यता को पढ़ाया जाता है मगर आर्यों के विषय में नकारात्मक पढ़ाया जाता है। ऐसा पढ़ाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के वास्तविक उत्तराधिकारी केवल और केवल मुस्लिम ही थे। आर्यों को खानाबदोश और निर्दयी, असभ्य जैसा प्रस्तुत किया जाता है। हिंदुओं और बौद्धों के मध्य अंतर करके बौद्धों को श्रेष्ठ बताया जाता है।
राजपूतों को चालाक, लालची, मुस्लिमों और इस्लाम के खिलाफ बताया जाता है, जिनका कोई भी योगदान विज्ञान, कला, साहित्य में नहीं रहा है।
पाकिस्तान में जिन्ना को नायक बनाकर प्रस्तुत किया जाता है और कांग्रेस को हिन्दू पार्टी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। एक पाकिस्तानी ड्रामा में भी कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी बताकर लीग को ही केवल मुस्लिमों का मसीहा बताया गया था।
यह भी बच्चों को पढ़ाया जाता है कि ये हिन्दू ही थे, जो अंग्रेजों के साथ थे। मुस्लिमों को ऐसी ताकत बताया जाता है, जिसने अंग्रेजों का सामना सबसे पहले करना शुरूकिया।
दरअसल पाकिस्तान का यह झूठा इतिहास ही है, जो बचपन से ही वहां के मुस्लिम बच्चों में यह बात बैठा देता है कि वे मुस्लिम हैं, वे हिंदुओं से अलग हैं, वे श्रेष्ठ हैं, मुस्लिमों के कारण ही तहजीब है आदि आदि और हिंदुओं की एक बहुत विशाल एवं समृद्ध विरासत से उन्हें घृणा करना सिखाया जाता है।
यही कारण है कि वे हिंदुओं से घृणा करते हैं, अपनी जड़ों से घृणा करते हैं और यह घृणा मुनीर जैसे लोगों के माध्यम से हर दिन बढ़ती ही जा रही है। और कहीं न कहीं वे ऐसे जोम्बी बना रहे हैं, जिन्हें अपनी घृणा के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं देता, घृणा अपनी जड़ों से, घृणा अपनी हिन्दू पहचान से। क्योंकि यही घृणा पाकिस्तान के निर्माण का आधार है और यही घृणा वहाँ की राजनीति का आधार है।
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