गत 7 मई की सुबह जब लोग सोकर उठे तो उनका स्वागत एक ऐसे संदेश ने किया जिसकी प्रतीक्षा वे लगभग 15 दिन से कर रहे थे। यह संदेश उन महिलाओं के प्रति न्याय को लेकर था, जिनकी मांग का सिंदूर आतंकवादियों ने पोंछ दिया था। जिन महिलाओं की मांग का सिंदूर आतंकवादियों ने नाम और धर्म पूछकर मिटा दिया था, उनका प्रतिशोध लेने के लिए ही भारत सरकार ने आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई की। इस कार्रवाई का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा।

वरिष्ठ पत्रकार
वैसे तो सिंदूर का भारत की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आदि शक्ति से लेकर माता सीता तक सभी ने सिंदूर की शक्ति का दर्शन कराया है। सिंदूर मात्र धार्मिक प्रतीक ही नहीं है, अपितु यह हिंदू पहचान का भी प्रतीक है। गौरतलब है कि कश्मीर में जब आतंकवाद अपने चरम पर था, उस समय हिंदू महिलाओं के माथे से बिंदी हटवा दी जाती थी। अभी भी पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में एक पीड़िता ने बताया था कि आतंकवादी उसने कह रहा था, वह बिंदी हटा दें और सिंदूर मिटा दें, तो बच सकती हैं। यानी आतंकवादी तत्व हर हाल में सिंदूर मिटाना चाहते हैं, फिर उसका माध्यम कोई भी हो।
पुरुषों को मारना अर्थात् सिंदूर मिटाना, अर्थात् एक पूरी पीढ़ी को समाप्त कर देना। सिंदूर का महत्व उन महिलाओं से पूछना चाहिए, जिनकी मांग का सिंदूर असमय मिटा दिया जाता है और वह भी आतंकवादियों द्वारा। नवरात्रि में मां दर्गा की पूजा में सिंदूर खेला होता है और विघ्नहर्ता गणेश जी को लाल सिंदूर चढ़ाया जाता है। हनुमान जी तो पूरे ही सिंदूर में रंगे हुए हैं। तो सिंदूर के हिंदू धर्म या कहें भारतीय संस्कृति में एकाधिक पहलू हैं। इसलिए इस अभियान का नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखने से भारत का लोक गौरवान्वित हुआ, उसके कलेजे को ठंडक पहुंची।
मगर फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें इस नाम से समस्या है। उन्हें इस नाम से क्यों समस्या है, वह समझना कठिन नहीं है। दरअसल, एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसके लिए भारत के लोक का सिंदूर तो ‘शोषण’ का प्रतीक है, परंतु उसके लिए हिजाब, नकाब और बुर्का आदि महिलाओं की ‘आजादी’ के प्रतीक हैं। यह ऐसा वर्ग है, जिसे भारत की हिंदू पहचान से घृणा है और सिंदूर, बिंदी लगाने वाली महिलाएं उसके लिए सबसे ‘पिछड़ी’ महिलाएं हैं। यह वह वर्ग है, जिसका एकमात्र उद्देश्य हिंदू महिलाओं को सिंदूर और बिंदी आदि के विषय में भड़काना ही होता है।
जैसे ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे, यह वर्ग सक्रिय हो उठा। इसका बीड़ा उठाया ‘द हिंदू ग्रुप’ की पत्रिका ‘फ्रंटलाइन’ की संपादक वैष्णा रॉय ने। उन्होेंने एक्स पर एक पोस्ट लिखी और उसके तुरंत बाद अपना ‘प्रोफ़ाइल प्रोटेक्टेड‘ कर दिया। मगर तब तक स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर छा चुके थे। उन्होंने लिखा, “सैद्धांतिक रूप से मैं ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लेबल का विरोध करती हूं। यह पितृसत्ता, महिलाओं की मिल्कियत, ‘इज्जत’ के नाम पर कत्ल, पवित्रता, विवाह संस्थान को पवित्र बताने जैसी बातों करता है।” इसे लेकर लोगों ने इसका विरोध भी किया। एक यूजर ने लिखा, “सिंदूर शक्ति का प्रतीक है, सिंदूर स्त्री शक्ति का प्रतीक है।”
यह याद रखना चाहिए कि यह वही वैष्णा रॉय हैं, जिनके लिए हिजाब को प्रतिबंधित करना एक समस्या थी। मगर ऐसा नहीं है कि केवल वैष्णा रॉय को इस शब्द पर आपत्ति है। कई कथित रचनाकार भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम के विरोध में उतर आईं। उनका कहना है, “सिंदूर तो महिलाओं के शोषण का प्रतीक है, यह महिलाओं को याद दिलाता है कि वे किसी की नौकर हैं, और बंधी हुई हैं। इसलिए सिंदूर नाम नहीं रखना चाहिए था।”
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ की सांसद महुआ माजी को भी सिंदूर नाम से परेशानी हुई। उन्होंने कहा, ”यह नाम उन महिलाओं के लिए चुना गया, जिनकी पतियों की हत्या कर दी गई। कुछ और भी नाम हो सकता था। जब तीनों सेनाओं को खुली छूट दी गई थी कि वे अपने लक्ष्य और समय को खुद चुनें, तो ऐसे में भी प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर नाम रखा। इसलिए इसमें कुछ राजनीति शामिल है।” भारत की एक अन्य महिला ने एक्स पर लिखा, ”जाहिर है कि यह सिंदूर है, जाहिर है कि यह भारत माता है, जिसकी रक्षा पुरुषों को दूसरे पुरुषों से करनी है, जब तक कि असल में लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को युद्ध से बचाने की बात न आ जाए।”
भारत की कथित नारीवादी जहां इस सिंदूर नाम से परेशान हैं, तो वहीं पाकिस्तान की कई मुस्लिम महिलाएं भी सिंदूर को लेकर बिफर रही हैं। जोहा नामक एक यूजर ने लिखा, “ऑपरेशन सिंदूर बहुत ही बेचैन करने वाला और भयानक है, यदि आप इसके प्रभाव के बारे में एक क्षण को रुककर सोचते हैं। हिंदुत्व विचारधारा खुद को इस उप महाद्वीप की मालिक मानने का दावा करती है, वह इसके प्रति बहुत जुनूनी है और यह नाम कोई इत्तेफाक नहीं है। यह महिला विरोधी भी है।” ऐसी ही एक पाकिस्तानी सबहत जकरिया ने लिखा, “मजहबी कारक से परे यह बेवकूफी वाला नाम क्यों? मतलब सिंदूर क्यों?” यानी भारत से लेकर पाकिस्तान की कथित नारीवादी महिलाएं अचानक से ही सिंदूर शब्द के विरोध में आ गई हैं।
जहां एक ओर ये कथित नारीवादी महिलाएं ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम को लेकर रो रही थीं, तो वहीं दूसरी ओर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की पूरी जानकारी कर्नल सोफिया कुरैशी एवं विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने दी। इन दोनों महिला सैन्य अधिकारियों के माध्यम से सरकार ने बताया कि भारत में सिंदूर का क्या महत्व है। भारत की महिलाएं सिंदूर के महत्व को जानती हैं और समझती हैं। यही स्त्री शक्ति है, जिसका परिचय भारत ने संपूर्ण विश्व को दिया।
‘सिंदूर’ की शक्ति और हमले की रणनीति
पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ देकर कई संदेश दिए गए हैं। उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि सिंदूर केवल शृंगार ही नहीं, नारी के शौर्य, सामर्थ्य, शक्ति और आत्मविश्वास का भी प्रतीक होता है
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