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रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

मानवाधिकारों के नाम पर रोहिंग्याओं को भारत में बसाने का प्रयास लंबे समय से जारी है। वे न केवल देश के संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं, बल्कि उनके द्वारा भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी सामने आई हैं।

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

मानवाधिकारों की आड़ में रोहिंग्याओं को भारत में बसाने का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। जबकि वे भारत में आकर यहां के संसाधनों का भरपूर उपयोग तो कर ही रहे हैं, साथ ही भारतीयों के साथ किए जा रहे उनके दुर्व्‍यवहार के अनेक प्रकरण सामने आ रहे हैं। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार रोहिंग्‍या समस्‍या को लेकर सख्‍त है, किंतु ये मानवाधिकारवादी हैं कि भारत पर रोहिंग्‍याओं का अरिरिक्‍त बोझ मानवता के नाम पर डालने से पीछे नहीं हट रहे। अब सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार (08.05.2025) को जिस प्रकार की टिप्पणी इन रोहिंग्‍या को लेकर की है, यथा; ‘यदि भारत में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थी भारतीय कानून के तहत विदेशी पाए जाते हैं तो उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।’ तब इसके बाद कुछ कहने को शेष नहीं बचता। ऐसे में इन्‍हें अतिशीघ्र भारत से बाहर किया जाना चाहिए।

उच्‍चतम न्‍यायालय ने 2021 में भी रोहिंग्‍याओं को देश से बाहर निकाल देने को कहा था

देखा जाए तो आज जो सुप्रीम कोर्ट ने टिप्‍पणी की है, इससे पूर्व भी उसका अभिमत यही था। तब केंद्र सरकार ने न्‍यायालय के सामने स्‍पष्‍ट कर दिया था कि आखिर क्‍यों ये “रोहिंग्‍या मुस्‍लिम प्रवासी” भारत में नहीं रह सकते। वर्ष 2021 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रोहिंग्याओं का भारत में अवैध रूप से रहना देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। इसलिए अवैध तरीके से भारत में रहने वालों के खिलाफ कानून के अंतर्गत कार्रवाइयां की जाती रहेंगी। यहां केंद्र सरकार इतना कहकर ही नहीं रुकी थी सरकार ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों को शरणार्थी का दर्जा दिलाने के लिए संसद और कार्यपालिका के विधायी और नीतिगत डोमेन में नहीं जा सकती। वहीं, यह भी स्‍पष्‍ट किया गया था कि भारत UNHRC के शरणार्थी कार्ड को कोई मान्यता नहीं देता है, जिसकी मदद से कुछ रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के दर्जे के लिए दावा कर रहे हैं।

साथ ही केंद्र की मोदी सरकार ने तत्‍कालीन समय में कोर्ट को यह भी बताया था कि किस हद तक भारत पहले ही बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठ का सामना कर रहा है, जिसके चलते कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और पश्चिम बंगाल) की जनसांख्यिकी प्रोफाइल बदल गई है। तब सरकार से जवाब से कोर्ट संतुष्‍ट नजर आई थी, और उसने केंद्र सरकार के पक्ष में ही फैसला सुनाया था। अब देखो; न्‍यायालय में इतना गहराई से स्‍पष्‍ट करने के बाद भी ये रोहिंग्‍याओं से जुड़े मामले हैं कि बंद होने का नाम नहीं ले रहे।

भारत में रोहिंग्‍याओं के यूएनएचसीआर पहचान-पत्र नहीं है मान्‍य

वस्‍तुत: आज फिर इस मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय मुखर हुआ है। न्यायालय ने देश में रोहिंग्याओं की जीवन स्थितियों और उनके निर्वासन की मांग से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर अनेक टिप्‍पणियां की हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने अपने पुराने आदेश का हवाला देते हुए स्‍पष्‍ट कहा है, ‘शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी पहचान पत्र उनके लिए कोई मददगार नहीं हो सकते हैं।’ वास्‍तव में “यदि वे विदेशी अधिनियम के अनुसार विदेशी हैं, तो उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।” यहां बहस के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी न्‍यायालय को बताया कि भारत शरणार्थी सम्मेलन का पक्षकार नहीं है और शरणार्थियों के यूएनएचसीआर कार्ड विवादित हैं।

अत: आज सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से कहा है कि अप्रैल 2021 के उसके पहले के आदेश को देखते हुए, आगे किसी अंतरिम निर्देश की आवश्यकता नहीं है। क्‍योंकि तब शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर में बसे रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के खिलाफ कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया था।

भारत सरकार को इन्‍हें निर्वासित करने का पूरा अधिकार

कहना होगा कि एक बार फिर आज सुप्रीम कोर्ट में वही दृष्‍य उभरा। अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस और अधिवक्ता प्रशांत भूषण रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर से पेश हुए और अदालत को यूएनएचसीआर कार्ड का आधार लेकर रोहिंग्‍याओं के बच्‍चों और म्‍यान्‍मार सरकार के वर्तमान रुख का हवाला देकर समझाना चाहा कि भारत में इन अवैध प्रवासी रोहिंग्‍याओं को रहने दिया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्‍पष्‍ट कर दिया है कि भारत सरकार को इन्‍हें निर्वासित करने का पूरा अधिकार है। इन्‍हें तत्‍काल निर्वासित किया जाए। अत: अब जरूरी हो जाता है कि जितनी जल्‍दी हो सके, इन्‍हें चिन्‍हित कर भारत से बाहर का रास्‍ता दिखाया जाए।

इनसे हमदर्दी रखने वालों इनका इतिहास भी जानें

अब यहां उन्‍हें समझना होगा जिन्‍हें मानवाधिकार के नाम पर इन रोहिंग्‍याओं से हमदर्दी है। वास्‍तव में उन्‍हें इन रोहिंग्‍याओं का इतिहास जरूर देखना चाहिए। ये वही रोहिंग्‍या हैं, जिन्‍होंने अपने ही देश म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के खिलाफ अत्याचार किए। नतीजतन, शांतिप्रिय बौद्धों को हिंसा का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। आइये घटनाक्रम को समझते हैं- 1962 से 2011 तक बर्मा में सैनिक शासन था, इस दौरान ये रोहिंग्या मुसलमान खामोश रहे। लेकिन जैसे ही इस देश में लोकतंत्र बहाल हुआ, इन्होंने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करना और स्थानीय बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय को परेशान करना शुरू कर दिया। महिलाओं के साथ बलात्कार तक करने लगे, पुलिस और सेना को निशाना बनाया जाने लगा। तत्‍कालीन समय में म्यांमार में हालात इतने अराजक हो गए थे कि शांति के उपासक बहुसंख्यक बौद्ध पहले तो रोहिंग्याओं से डर गए। जब अत्याचार नहीं रुके तो इन बौद्धों ने भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए शांति का रास्ता छोड़ दिया। वर्षों तक ये संघर्ष यहां चला है।

अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के जरिए गैर मुसलमानों पर करते थे अत्‍याचार

इन रोहिंग्‍याओं ने जो अपनी अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA) बनाई, उसके अत्‍याचार इतने बढ़ गए कि ये सैन्य चौकियों पर हमला तक करने लगे। जिसमें कि कई सीमा अधिकारी और सैनिक मारे गए थे। तब म्यांमार की सेना भी इन रोहिंग्याओं के विरोध में उतर आई, उसका परिणाम यह हुआ कि इनके वर्चस्व वाले क्षेत्र पर म्‍यांमार की सेना का कब्ज़ा हो गया। सेना ने इनके क्षेत्र में पहुंचकर देखा कि वहाँ हिंदुओं और बौद्धों की सामूहिक कब्रें हैं। तब जाकर पूरी दुनिया को पहली बार पता चला कि ये रोहिंग्या कितने धोखेबाज और क्रूर हैं। इन्‍होंने भयंकर क्रूरता से अपने अधिकार क्षेत्र में बौद्ध और हिन्‍दुओं का सामूहिक नरसंहार किया है। इस नरसंहार के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों ने कुछ महिलाओं को तभी छोड़ा जब उनका इस्लाम में धर्मांतरण करा दिया गया। बाकी सभी को मारकर दफना दिया गया था। रोहिंग्याओं द्वारा मचाए गए आतंक को समझने के लिए इन आठ महिलाओं की गवाही भी आज मौजूद है, जिन्होंने जबरन इस्लाम में धर्मांतरण की शर्त स्वीकार कर अपनी जान बचाई थी।

म्यांमार में जब रोहिंग्याओं का अत्याचार बढ़ने लगा तो सरकार ने अपने देशवासियों के लिए कई सख्त कानून लागू किए, जिनमें विवाह, परिवार नियोजन, आवागमन की स्वतंत्रता, रोजगार, शिक्षा, धार्मिक विकल्प आदि शामिल थे। जिसमें ये रोहिंग्या फिट नहीं बैठ पाए और यहां से पलायन करने लगे। सबसे पहले उन्होंने अवैध रूप से भारत में प्रवेश करना शुरू किया। कई बांग्लादेश पहुंच गए। रोहिंग्या शरणार्थी शिविर बांग्लादेश के चटगांव क्षेत्र में हैं, जो इस्लामी चरमपंथ और अलगाववादी गतिविधियों के लिए कुख्यात है। अतीत में, भारत में आतंकवादी हमलों से पहले और बाद में उत्तर पूर्व के आतंकवादियों ने इस क्षेत्र में शरण ली थी।

इस्‍लामिक आतंकियों से रोहिंग्‍या कनेक्‍शन कई बार उजागर हुए

रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठन अका-उल-मुजाहिदीन के पाकिस्तान में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंधों का खुलासा अब तक कई बार हो चुका है। इनमें से कई हैं जो इस्‍लामिक आतंकवादियों को हर संभव मदद पहुंचाते हैं। अब तक भारत के अलग-अलग राज्यों में अनेक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई रोहिंग्या मुसलमान अपराधों में शामिल पाए गए हैं। वस्‍तुत: वर्तमान में भारत का कोई भी राज्य नहीं बचा, जहां इनकी घुसपैठ न हो रही हो और इनके माध्‍यम से अपराध नहीं बढ़ रहा हो! दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात (नूंह), उत्तराखंड के हल्द्वानी और बनभूलपुरा क्षेत्र में हुए हिंसक दंगों में रोहिंग्या मुसलमानों की संलिप्तता सामने आ चुकी है। अकेले बनभूलपुरा क्षेत्र में ही आज करीब 8000 रोहिंग्या मुसलमान व अन्य बाहरी लोग रह रहे हैं। आज बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसे रोहिंग्याओं ने भारत और नेपाल के मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में अपनी अवैध बस्तियां बनाना जारी रखा है। हजारों की संख्‍या में ये रोहिंग्‍या हमारे देश में घुस चुके हैं।

इन रोहिंग्‍याओं से केंद्र सरकार विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निपटे

देश की राजधानी दिल्ली, इससे सटे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक व अन्य राज्यों में हिंसा, बलात्कार व लूटपाट की घटनाएं इन रोहिंग्‍याओं के कारण से भी बढ़ गई हैं। फिर भी भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं, जो मानवाधिकार के नाम पर इन अपराधी रोहिंग्याओं की वकालत कर रहे हैं। वे उन्हें भारत में स्थायी रूप से बसाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर रहे हैं और भारत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। अब ऐसे में हो यह कि केंद्र सरकार अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों के साथ सख्‍ती से विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निपटे। वस्‍तुत: आज जो सुप्रीम कोर्ट में इन रोहिंग्‍याओं के समर्थन में खड़े हो रहे हैं, उन अधिवक्‍ताओं को भी समझना चाहिए कि भारत कोई अराजक भूमि नहीं है, जहां, जब, जिसकी इच्‍छा हो वह घुस आए और यहां के मूल निवासियों के हकों को वह छीनने लगे।

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