संगीतकार ए. आर रहमान
कभी ‘द जीसस क्राइस्ट’ फिल्म देखते वक्त दादा साहेब फाल्के ने कल्पना की थी कि जीसस की जगह क्या कभी भगवान राम, भगवान कृष्ण भी ऐसे ही हमें परदे पर चलते-फिरते दिखेंगे? उन्होंने अपनी इस कल्पना को साकार किया उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म ‘लंका दहन’ और चौथी फिल्म ‘कालिया मर्दन’ में। उन्होंने तकनीक सीखी, कैमरा व बाकी उपकरण खरीदे और इस अभियान में बंगला तक गिरवी रखना पड़ा और बना डाली पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’। तकनीक उनकी लेकिन कहानी अपनी और संगीत क्या, उन दिनों तो आवाज तक नहीं थी। यानी चोरी की कोई सोचता भी नहीं था।
भारत के इस बड़े परदे के पहले अभियान में निवेश करने के लिए भी उन्हें एक छोटी सी वीडियो से संतुष्ट करना पड़ा था और वह था एक मटर के पौधे को रोज शूट करना और उनको जोड़कर एक साथ दिखाना। पहली बार लोगों ने मटर के पौधे को इस तरह बढ़ते देखा था। वह चाहते तो किसी भी विदेशी वीडियो की नकल बनाकर आसान काम कर सकते थे। एक दिन में हो जाता। लेकिन वह कुछ मूल रचनात्मक काम करना चाहते थे। तभी धैर्य के साथ मटर के पौधे को रोज अपने कैमरे में कैद करते रहे। ऐसे ही जब हिमांशु रॉय ने अपनी फिल्मी यात्रा शुरू की, तो बतौर निर्देशक साथ लिया जर्मनी के फ्रेंज ऑस्टन को और भगवान बुद्ध, महाभारत, ताजमहल जैसे भारतीय विषयों पर फिल्में बनाईं। सामाजिक विषय पर बनी अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत फिल्म ‘अछूत कन्या’ को तो आज भी भारतीय सिनेमा के पाठ्यक्रम में तमाम विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
अब ऑस्कर विजेता ए. आर. रहमान को लेकर यह खबर आई है कि 2023 में रिलीज हुई ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ के गीत ‘वीरा राजा वीरा’ की धुन को जूनियर डागर बंधुओं ने अपनी ‘शिव स्तुति’ की धुन बताकर कॉपीराइट केस कर दिया और दिल्ली उच्च न्यायालय ने जांच के बाद इसे सच मानते हुए ए. आर. रहमान व फिल्म की दोनों निर्माता कंपनियों मद्रास टॉकीज और लाइका प्रोडक्शंस को 2 करोड़ रुपए भुगतान का आदेश दिया है। साथ ही फिल्म के अंदर एक पट्टिका डालने का भी निर्देश दिया है ताकि दिवंगत एन. फैयाजुद्दीन डागर और जहीरुद्दीन डागर को रचना का उचित श्रेय दिया जा सके।
यह वाकई अभूतपूर्व फैसला है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ए. आर. रहमान के अंतरराष्ट्रीय कद के प्रभाव में आए बिना इतना कड़ा फैसला दिया है, जो फिल्मी दुनिया के सारे रचना या धुन चोरों के लिए एक बड़ा सबक बनेगा। इस फैसले के आने के दो दिन बाद ही एक बड़ा विवाद भी हल हो गया, जो हाल ही में रिलीज हुई अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी 2’ के लिए ए. आर. रहमान जैसी ही फजीहत करवा सकता था।
दरअसल यूट्यूबर और कवि याह्या बूटवाला ने ‘केसरी 2’ का एक दृश्य अपनी पांच साल पुरानी एक वीडियो के साथ इंस्टाग्राम पर साझा करते हुए दावा किया कि अनन्या पांडे ने ‘केसरी 2’ में जो यह डायलॉग बोला है, वह बिल्कुल जलियांवाला बाग पर उनकी कविता से मिलता-जुलता है। लेकिन रहमान पर उच्च न्यायालय का 25 अप्रैल को निर्णय आने के बाद, केसरी 2 के निर्माता भी सक्रिय हुए और 27 अप्रैल को याह्या ने फिर से इंस्टाग्राम पर लिखा “दोस्तो, मैंने और निर्माताओं ने मिलकर इस मुद्दे को दोनों पक्षों के हितों में आपस में सुलझा लिया है।” यानी अदालत और मीडिया दोनों की ही जरूरत नहीं थी। क्या समझौता हुआ, यह अभी तक बाहर नहीं आया।
हाल ही में टी-सीरीज भी तब चर्चा में आई जब हिंदुत्व विरोधी कुणाल कामरा ने इसी मार्च महीने में एक वीडियो ‘नया भारत’ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर कटाक्ष करने के लिए मिस्टर इंडिया का गीत ‘कहते हैं मुझको हवा हवाई’ का पैरोडी संस्करण बिना अनुमति प्रयोग कर लिया। टी-सीरीज ने यूट्यूब को शिकायत की और कामरा का वह वीडियो यूट्यूब ने ब्लॉक कर दिया। उसके बाद कुणाल कामरा के समर्थन में मोहम्मद जुबैर ने भी टी-सीरीज पर एक बंगाली कलाकार के गीत को फिल्म ‘दो पत्ती’ में प्रयोग करने के आरोप लगा दिए। हालांकि इस मामले में कोई समझौता या आदेश सामने नहीं आया है।
2022 में रिलीज हुई फिल्म ‘कांतारा’ को कई सारे सम्मान मिले। फिल्म को काफी सराहना भी मिली और पैसा भी खूब कमाया। लेकिन उसके एक गीत ‘वराहरूपम’ को लेकर केरल के स्थानीय बैंड थैक्कुडम ब्रिज ने आरोप लगाया कि इस गीत की धुन उनके 2017 के गीत ‘नवरसम’ से चोरी की गई है। पलक्कड़ अदालत ने फिल्म के इस गीत को दिखाने पर प्रतिबंध भी लगा दिया, लेकिन बाद में हटा दिया तो बैंड ने उच्च न्यायालय की शरण ली। उच्च न्यायालय ने इसे कॉपीराइट का खुला उल्लंघन मानते हुए सभी जगह से इस गीत को हटाने का आदेश दिया। संगीतकार ने भी मान लिया कि उनका गीत इस बैंड के गीत से प्रेरित है।
एक दौर था जब कॉपीराइट कानून ही लागू नहीं था। और लागू हुआ भी तो लोगों में इतनी जागरूकता नहीं थी और न ही तब यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या कॉपीराइट उल्लंघन को पकड़ने वाले सॉफ्टवेयर थे। सो शुरुआती फिल्म निर्देशकों के बाद तमाम लोगों ने जिस भी देश से या किसी लोकगीत से धुन मिली, उसे अपनी फिल्मों में बेधड़क इस्तेमाल किया और दिलचस्प बात यह रही कि उनमें से कई गाने पीढ़ियों ने गुनगुनाए और उन चोरी करने वाले संगीतकारों को महान संगीतकारों की श्रेणी तक में रख दिया गया। फिल्मों की कहानी या मूल विचार चुराने वालों या उससे प्रेरणा लेकर मिलती-जुलती कहानी पर फिल्म बनाने वाले निर्देशकों की भी कमी नहीं।
1950 से 1990 के चार दशकों में ये प्रवत्तियां तेजी से देखने को मिलीं। ‘शोले’ जैसी फिल्म के दृश्य आज सेवन समुराई के दृश्यों के साथ यूट्यूब पर साझा किए जाते हैं। शोले का ‘महबूबा महबूबा’ गाना डेमिस रॉसोस के गीत ‘से यू लव मी’ से प्रेरित था। यह आज की पीढ़ियां सोशल मीडिया पर साझा करके साक्ष्य के साथ बता रही हैं। ऋषि कपूर पर फिल्माए गए गीत ‘ओम शांति ओम’ पर शाहरुख खान ने पूरी फिल्म बना डाली, लेकिन तब उन्हें नहीं पता था कि इस गीत की धुन लॉर्ड शॉर्टली की शांति मंत्र की प्रशंसा में बनाई गई धुन से ली गई है।
ऐसे ही देव आनंद की फिल्म ‘सीआईडी’ के गीत ‘ऐ दिल है मुश्किल’ पीढ़ियों तक इतना चर्चित रहा कि कई दशक बाद रणबीर कपूर, ऐश्वर्या और अनुष्का की फिल्म इसी नाम से आई। लेकिन नई पीढ़ियां अब जानती हैं कि ओ. पी. नैय्यर ने इस गीत की धुन को अमेरिकी लोकगीत ‘माई डार्लिंग क्लेमेंटाइन’ से लिया था।
सलीम-जावेद की जोड़ी फिल्म लिखने वालों की सबसे मशहूर जोड़ी रही। लेकिन अब फिल्मी दिग्गज जानते हैं कि उनकी कई फिल्में विदेशी फिल्मों के आइडिया पर बनी थीं। जैसे अमिताभ को एंग्री यंग मैन बनाने वाली ‘जंजीर’ ही एक विदेशी फिल्म ‘डर्टी हैरी’ की नकल मानी जाती है। टीनू आनंद ने तो खुलासा ही कर दिया था कि अमिताभ की ‘मैं आजाद हूं’ दो हॉलीवुड फिल्मों को मिलाकर जावेद अख्तर ने लिखी थी और हम सबसे छुपाया भी। हम इसे असली कहानी समझते रहे। टीनू ने ही इस फिल्म को निर्देशित किया था।
अमिताभ, संजय दत्त आदि सितारों से सजी फिल्म ‘कांटे’ तो 1992 की विदेशी फिल्म ‘रिजर्वोयर डॉग्स’ की सीधी नकल थी, लेकिन तब विदेशी निर्देशकों को पता ही नहीं चलता था। सो कोई केस नहीं किया गया। जब पता लगने लगा तो कुछ लोगों ने अनुमति लेकर रीमेक बनाई, जैसे आमिर खान ने ‘फॉरेस्ट गम्प’ की ‘लाल सिंह चड्ढा’। अंशुमान खुराना की ‘अंधाधुन’ के बारे में कहा गया कि यह फ्रांस की फिल्म ‘द प्यानो टीचर’ से मिलती-जुलती है। तो राजकुमार राव की ‘न्यूटन’ तो ईरानी फिल्म ‘सीक्रेट बैलट’ से प्रेरित बताई गई। उसका पोस्टर भी ‘गणशत्रु’ फिल्म से मिलता-जुलता था। बावजूद इसके इस फिल्म को ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक फिल्म बनाकर भेज दिया गया था।
पिछले कुछ सालों में फिल्मी दुनिया से जुड़े लोग भी थोड़े जागरूक हुए हैं। उन्होंने न केवल 1957 के कॉपीराइट एक्ट का सहारा लेना शुरू किया है बल्कि गीतकारों, लेखकों व संगीतकारों ने अपनी संस्थाएं भी यह लड़ाई लड़ने, कमाई का हिस्सा बांटने, रॉयल्टी लेने आदि के लिए बनाई हैं। इनमें पटकथा लेखक एसोसिएशन, पीपीएल और आईपीआरएस जैसी संस्थाएं सामने आई हैं। आज इनके हजारों सदस्य हैं। यहां तक कि कोई नया शीर्षक या फिल्म विचार आपको पंजीकृत करवाना है तो ‘स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन’ में करवा सकते हैं और वे बाकायदा आपकी कानूनी लड़ाई लड़ते हैं।
भारत का शायद ही कोई ऐसा संगीत निर्देशक हो जिस पर कोई न कोई देशी या विदेशी धुन को चोरी करने या प्रेरणा लेने का आरोप न हो। एक साइट ने तो आर. डी. बर्मन तक के ऐसे 42 गीत ढूंढ निकाले थे। अब तो प्रीतम या अनु मलिक जैसे लोग प्रेरणा लेने वाली बात को साक्षात्कारों में स्वीकार करने लगे हैं। लेकिन जो नहीं स्वीकारता, उसे सोशल मीडिया में खूब सुनना भी पड़ता है लेकिन ऑस्कर जैसे विश्व स्तर के सम्मान से विभूषित ए. आर. रहमान जैसा संगीतकार ऐसा करता है, तो पूरे विश्व में भारतीय सिनेमा और फिल्मी संगीत व उससे जुड़े दिग्गजों की छवि धूमिल होती है। उम्मीद है कि बाकी लोग इस घटना से सबक लेंगे।
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