सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि भगवान विष्णु का एकमात्र स्त्री रूप अवतार है मोहिनी अवतार। ऐसा मोहक स्वरूप कि उनके सम्मोहन की मोहिनी से देव-दानव कोई भी अछूता न रहा। श्रीमदभागवत महापुराण के अनुसार जगत पालक ने यह मोहक स्त्री रूप धरती को दानवों के आतंक से मुक्त करने के लिए रचा धारण किया। समुद्र मंथन का रोचक पौराणिक वृतांत श्रीहरि के इस मोहिनी अवतार से जुड़ा है। इस पौराणिक कथानक के अनुसार देवताओं और दानवों द्वारा किये गये समुद्र मंथन के अंत में बैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन जब समुद्र से आचार्य धनवन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो उस अमृत कलश को देखने ही उसे पीकर अमर होने की लालसा में देव व दानव दोनों पक्ष आपस में भिड़ गये।
सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्रीहरि विष्णु भलीभांति जानते थे कि यदि दानवों ने अमृत पान कर लिया तो आसुरी शक्तियों के आतंक से पूरी धरती पर त्राहि-त्राहि मच जाएगी। इसलिए लोकमंगल के महान उद्देश्य से उन्होंने एक अत्यन्त मोहक स्त्री का रूप धारण कर वहां उपस्थित होकर छल से दानवों को मदिरा और उस देवताओं को अमृत को पिला किया; फलत: देवता अमर हो गये। तभी से वैशाख शुक्ल की उपरोक्त तिथि मोहिनी एकादशी के नाम से विख्यात हो गयी।
ज्ञात हो कि तंत्र विद्या के प्राचीन ग्रंथों में मोहिनी विद्या का विस्तार से वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि इस विद्या का प्रयोग त्राटक, मंत्र और यंत्र के द्वारा किया जाता है। इसके आरम्भिक सूत्र वेदों में मिलते हैं। भगवान कृष्ण को मोहिनी विद्या का सर्वाधिक शक्तिशाली प्रयोगकर्ता और पारंगत आचार्य माना जाता है। दुर्गा सप्तशती सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में मोहिनी विद्या का उल्लेख करते हुए कहा गया है, “मारणं, मोहनं, वश्यं, स्तम्भोच्चाटनादिकम्। पाठ मात्रेण संसिद्धयेत कुंजिका स्तोत्र मुत्तमम्।।”
रामायण में उल्लेख मिलता है कि वनवास काल में सीता माता की खोज करते समय भगवान श्रीराम ने भी मोहिनी एकादशी व्रत को किया था। पौराणिक उद्धरण बताते हैं कि वानरराज बालि को मोहिनी विद्या सिद्ध थी। इसी महाविद्या के कारण उसकी ओर देखते ही शत्रु का आधा शक्ति और बल स्वत: समाप्त हो जाता था। महाबलशाली रावण को उसने इसी मोहिनी विद्या के बल पर परास्त किया था। महाभारत में भी विवरण मिलता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया था। मोहिनी एकादशी व्रत की महत्ता को उजागर करने वाला एक पौराणिक कथानक लोकजीवन में खासा लोकप्रिय है।
इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में भद्रावती नामक नगरी में धनपाल नाम का नगर सेठ रहता था जो सदा पुण्यकर्मों में लगा रहता था। मगर उसके पांच पुत्रों में सबसे छोटा धृष्टबुद्धि गलत संगत में पड़ कर कुमार्गगामी हो गया था। एक दिन उसके पिता ने उसे नगर के चौराहे पर दिनदहाड़े नगर वधू के साथ घूमता देख नाराज होकर घर से निकाल दिया।
परिवार, बन्धु बान्धवों व इष्ट मित्रों द्वारा परित्याग कर देने से इधर उधर भटकते भटकते हुए एक दिन वह महातपस्वी महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पर जा पहुंचा और शोक के भार से पीड़ित होकर मुनिवर कौण्डिन्य के चरणों में गिर कर उनसे मुक्ति की राह दिखाने की प्रार्थना करने लगा। महर्षि ने दया दिखाते हुए उसे बैशाख मास के शुक्लपक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बतायी विधि से पूरी श्रद्धा से उक्त व्रत का अनुष्ठान किया और निष्पाप हो दिव्य देह धारण कर श्रीविष्णु धाम को प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि तभी से सनातन धर्म में मोहिनी एकादशी व्रत की परम्परा शुरू हो गयी।
हमारे धर्मशास्त्रों में मोहिनी एकादशी को विशेष पुण्यदायी बताते हुए कहा गया है कि इस व्रत को करने से जीव के लोभ व मोह के सारे बंधन कट जाते हैं, निंदित पापकर्मों का शमन हो जाता है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है। वैष्णव धर्मावलम्बी इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के मोहनी स्वरूप की आराधना करते हैं। शास्त्र कहते हैं कि इस दिन जरूरतमंदों को भोजन-वस्त्रों का दान, ब्राह्मण को भोजन प्रसाद तथा गोमाता को गुड़-केला व हरा चारा खिलाने से भारी पुण्य फल प्राप्त होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी तिथि 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा।
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