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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी ने पिता के रूप में किया कन्यादान, बिटिया के पांव पखारे, बारात की अगवानी की

अक्षय कन्यादान महोत्सव में संघ प्रमुख ने बारात की अगवानी पिता की तरह की, ॉ125 जोड़ों का हुआ सामूहिक विवाह, सामाजिक समरसता की झलक

by WEB DESK
Apr 30, 2025, 11:59 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
बिटिया के पांव पखारते सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी।

बिटिया के पांव पखारते सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी।

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वाराणसी, (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने बुधवार को वाराणसी में आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव में शामिल होकर सामाजिक समरसता और पारंपरिक मूल्यों का उदाहरण प्रस्तुत किया। इसमें सवर्ण, दलित और पिछड़े समाज के 125 वर-वधूओं का सामूहिक विवाह संपन्न हुआ। सरसंघचालक जी ने पिता के रूप में कन्यादान किया और बिटिया के पांव पखारे।

खोजवां स्थित शंकुलधारा पोखरे पर आयोजित इस भव्य समारोह में डॉ. भागवत ने सोनभद्र के जोगीडीह गांव की वनवासी कन्या रजवंती का कन्यादान एक पिता के रूप में किया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने रजवंती के पांव पखारे और कन्यादान का संकल्प लिया। यह दृश्य पूरे समारोह का भावुक और प्रेरणादायक पल बन गया। रजंवती ने धर्म पिता डॉ मोहन भागवत के आर्शीवाद के साये में सोनभद्र रेणुकूट निवासी आदिवासी अमन के साथ फेरे लिए।

इस दौरान संघ प्रमुख ने बेटी को नेग में 501 रूपए दिया। वर अमन ने जब संघ प्रमुख के पैर छुए तो उन्होंने उसे आर्शीवाद देते हुए कहा कि मेरी बेटी का खयाल रखना और उसे हमेशा खुश रखना।

कार्यक्रम में डॉ. भागवत ने पारंपरिक परिधान-सफेद कुर्ता, पीली धोती और कंधे पर पीला गमछा धारण कर बारातियों का स्वागत भी किया। बारात में 125 दूल्हों की टोलियाँ घोड़ा, बग्घी और बैंड-बाजे के साथ द्वारकाधीश मंदिर से चलकर एकसाथ खोजवां स्थित आयोजन स्थल तक पहुंचीं। रास्ते भर इलाकाई व्यापारियों और स्थानीय नागरिकों ने पुष्पवर्षा और जलपान की व्य वस्था कर बारात का स्वागत किया।

सामूहिक कन्यादान में बढ़-चढ़कर भागीदारी- समारोह स्थल पर बनी 125 वेदियों पर शहर के गणमान्य नागरिकों ने कन्यादान कर पिता की भूमिका निभाई। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी उपस्थित रहे और नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया।

विवाह से बनता है कुटुंब और कुटुंब से समाज: मोहन भागवत

श्री मोहन भागवत ने महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा, “विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो कुटुंबों और व्यापक रूप से समाज के निर्माण का आधार है। कुटुंब मकान की ईंट के समान होता है, और यह संस्कारों से ही मजबूत होता है।” उन्होंने संस्कार को स्वभाव में बदलने का संदेश दिया। सरसंघचालक जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने कर्तव्यबोध को एक सामाजिक आयोजन में बदल दिया। उन्होंने कन्यादान में भागीदार बने शहर के विशिष्ट अभिभावकों से कहा कि वे वर-वधु से कम से कम वर्ष में एक-दो बार जरूर मिलें। परिवार में मात्र पति-पत्नी और बच्चे का भाव नहीं रखना चाहिए। इससे परिवार, समाज पीछे रह जाता है। अपने को परिवार का अविभाज्य अंग मानकर कार्य करना चाहिए। मानव संस्कृति को अमरता प्रदान करने का जो नैसर्गिक संस्कार है, उस परिणय संस्कार का संयोग काशी में भगवान द्वारिकाधीश के समक्ष पौराणिक शंकुलधारा कुंड पर देखने को मिला।

उपहारों से सजे नवजीवन की शुरुआत

विवाह के उपरांत नवदंपतियों को साइकिल, सिलाई मशीन, वस्त्र, आभूषण, नकद राशि, मिठाई और अन्य आवश्यक सामग्री उपहार में दी गई, जिससे वे अपने नवजीवन की शुरुआत आत्मनिर्भरता और उत्साह के साथ कर सकें।

 

 

Topics: सरसंघचालकमोहन भागवतवाराणसीआरएसएसअक्षय कन्यादान महोत्सव
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