गत अप्रैल को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने ‘यशवंत परिसर’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर ‘सील ट्रस्ट’ के अध्यक्ष अतुल कुलकर्णी, अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. राजशरण शाही, राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. वीरेंद्र सिंह सोलंकी, अखिल भारतीय छात्रा प्रमुख डॉ. मनु शर्मा कटारिया, दिल्ली प्रांत अध्यक्ष तपन बिहारी और प्रांत मंत्री सार्थक शर्मा मंच पर उपस्थित रहे। यह भवन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के प्रकल्प ‘SEIL–Students Experience in Interstate Living’ (अंतर-राज्य छात्र जीवन-दर्शन) का केंद्रीय कार्यालय है।
नौ मंजिला इमारत
यशवंत परिसर में स्वामी विवेकानंद की 12 फुट ऊंची और 1,250 किलो वजनी अष्टधातु की भव्य प्रतिमा तथा सभागार के बाहर 850 किलो की संगमरमर पर उत्कीर्ण सरस्वती माता की प्रतिमा स्थापित की गई है, जो परिसर को एक विशिष्ट सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान करती है। ऊर्जा संरक्षण को ध्यान में रखते हुए भवन का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि प्राकृतिक प्रकाश और वायु का अधिकतम प्रवेश संभव हो सके।
यह आधुनिक भवन निर्माण के सभी मानकों पर खरा उतरता है। परिसर में ओपन थिएटर का निर्माण किया गया है, जहां परिषद् की विविध गतिविधियां संचालित होंगी। नौ मंजिला इस इमारत में दो बेसमेंट, एक भूतल तथा छह ऊपरी तल हैं, जिसमें डेढ़ सौ से अधिक लोगों की क्षमता वाला अत्याधुनिक सभागार, (मल्टीपर्पस हॉल) ऑडिटोरियम, शोधार्थियों के लिए सुसज्जित पुस्तकालय तथा पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों के लिए आवास की सुविधा उपलब्ध है, जहां वे महीनों रहकर अपनी अकादमिक गतिविधियां संचालित कर सकते हैं।
अपने उद्बोधन में श्री भागवत ने कहा कि दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर विद्यार्थी सहयोग से कार्यालय की स्थापना एक बड़ी उपलब्धि है। हमने इस कार्यालय का नाम ‘यशवंत’ रखा है, जिसे यशवंतराव जी के जन्म शताब्दी वर्ष में स्थापित किया गया। जिस प्रकार ‘सील’ प्रकल्प को यशवंतराव जी ने आगे बढ़ाया था, उसी भावना से यह विद्यार्थी परिषद का कार्यालय बना है, जिसमें ‘ज्ञान, शील और एकता’ का मूल भाव निहित है।
विद्यार्थी परिषद को समझना हो तो उसके कार्यकर्ताओं को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि परिषद कार्यकर्ताओं के अनुभवों से गढ़ी गई है, संघ पर संकट के समय भी राष्ट्रीय विचार के आधार पर कार्य करते हुए परिषद ने अपने आकार को पाया है। कार्यालय केवल एक भवन नहीं, कार्य का आलय होना चाहिए, क्योंकि जैसा कार्य होगा, वैसी ही परिषद बनेगी। संगठन में आत्मा और बुद्धि के साथ शरीर भी आवश्यक है; अधिक तामझाम की आवश्यकता नहीं, अपितु मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए।
अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. राजशरण शाही ने कहा कि अभाविप के कार्यालय का लोकार्पण उन सैकड़ों कार्यकर्ताओं की सहभागिता और तप से संभव हुआ है, जिन्होंने इस स्वप्न को साकार करने के लिए अपना योगदान दिया। अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने कहा कि यह कार्यालय न केवल हमारे कार्यों को नई गति देगा, बल्कि देश के दूर-दराज क्षेत्रों में कार्य विस्तार के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
बता दें कि अंतर-राज्य छात्र जीवन-दर्शन प्रकल्प की स्थापना 1966 में पूर्वोत्तर भारत एवं शेष भारत के बीच संवाद, स्नेह और सांस्कृतिक एकात्मता को प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से हुई थी। यह प्रकल्प आज हजारों युवाओं को देश की विविधता को समझने और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को सशक्त बनाने हेतु प्रेरित कर रहा है।
समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, श्री अरुण कुमार तथा श्री मुकुंद सी. आर., अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर, अभाविप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री आशीष चौहान, पूर्व उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू, वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी, भाजपा अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा, श्री धर्मेंद्र प्रधान, श्री पीयूष गोयल, श्री मनसुख मांडविया और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित थे।
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