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खुलेंगी साजिश की परतें !

26/11 मुम्बई आतंकी हमले का मुख्य सरगना है तहव्वुर राणा। उसे भारत सरकार अमेरिका से खींचकर यहां गई है। उससे प्रतिदिन पूछताछ हो रही है। इस पूछताछ से उन प्रश्नों का उत्तर मिलने की संभावना बढ़ गई है, जो अब तक अनुत्तरित हैं। इनमें एक प्रश्न भारत में आतंकवादियों की जड़ों से जुड़ा है और दूसरा आतंकी हमलों को ‘भगवा’ रंग में लपेटकर प्रचारित करने के ‘मास्टरमाइंड’ है

by रमेश शर्मा
Apr 23, 2025, 08:29 am IST
in भारत, विश्लेषण, महाराष्ट्र
एनआईए के कब्जे में आतंकवादी तहव्वुर राणा

एनआईए के कब्जे में आतंकवादी तहव्वुर राणा

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मुम्बई पर 26 नवम्बर, 2008 को आतंकी हमला हुआ था। पाकिस्तान के 10 आतंकवादी समुद्री मार्ग से मुम्बई आए थे। उनके पास आधुनिक हथियार और विस्फोटक थे। वे दो-दो की पांच टोली बनाकर मुम्बई के अलग—अलग स्थानों पर फैल गए। वे आधुनिक संचार की संपर्क प्रणाली से जुड़े थे। इससे उन्हें निर्देश मिल रहे थे। किसको कहां जाना है और किस मार्ग से जाना है, यह भी कोई उन्हें ‘गाइड’ कर रहा था। यह अब तक हुए सभी आतंकी हमलों में सबसे भीषण था। इसमें कुल 175 लोगों की जान गई और 350 से अधिक लोग घायल हुए। मुठभेड़ में नौ आतंकवादी मारे गए थे और एक आतंकवादी कसाब को जिन्दा पकड़ा गया था। जिस पर मुकदमा चला और उसे 2012 में फांसी दी गई।

तहव्वुर और हेडली

रमेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार

मुंबई पर हुए इस भीषण हमले की योजना कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तोयबा ने बनाई थी। तहव्वुर राणा और हेडली इस हमले के दो ‘मास्टरमाइंड’ थे। भारत सरकार तहव्वुर राणा को बड़े प्रयास के बाद भारत ला सकी है। तहव्वुर हुसैन राणा मूलतः पाकिस्तानी है। वह छात्र जीवन में ही कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तोयबा से जुड़ गया था। डाॅक्टरी की पढ़ाई पूरी करके वह पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर हो गया। 1990 में नौकरी छोड़कर उसने अनेक देशों की यात्रा की। इसमें भारत, कनाडा, दुबई और अमेरिका जैसे देश हैं। 1996 में उसने कनाडा की नागरिकता ली और स्थाई रूप से शिकागो में बस गया। यहां उसने इमिग्रेशन कंसल्टेंसी का व्यवसाय आरंभ किया।

लश्कर की योजना से उसे केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य देशों में भी आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है। पाकिस्तानी सेना की नौकरी छोड़कर कनाडा की नागरिकता लेना भी सामान्य नहीं लगता। पाकिस्तान के बाद कनाडा भी एक ऐसा देश है जहां भारत के विरुद्ध आतंकवाद के कुचक्र चलाए जाते हैं। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि लश्कर की योजना से ही उसने सेना की नौकरी की, और लश्कर की योजना से ही नौकरी छोड़कर उसने कनाडा को अपना ठिकाना बनाया। उसने लगातार भारत और मुम्बई की यात्रा की। उसकी यात्रा बढ़ने के साथ ही मुम्बई में आतंकवादी हमले भी बढ़े। 1993 से लेकर 2008 के बीच मुम्बई में बारह बड़ी आतंकी घटनाएं घटीं, जिनमें 350 से अधिक लोगों की जान गई। इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि तहव्वुर ने पूरी योजना से सेना की नौकरी छोड़ी। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उसका व्यवसाय केवल दिखावा हो और इसके बहाने आतंकवाद का नेटवर्क ही बनाना हो।

26/11 मुम्बई हमले का दूसरा मास्टरमाइंड डेविड कॉलमेन हेडली है। वह भी पाकिस्तानी नागरिक है। उसका असली नाम दाऊद सैयद गिलानी है। दाऊद गिलानी उर्फ डेविड और तहव्वुर छात्र जीवन के मित्र हैं। दोनों लश्कर-ए-तोयबा के लिए काम करते हैं। दाऊद गिलानी ने भी कनाडा जाने के बाद अपना नाम, पहचान और नागरिकता बदल ली। उसके काम करने के दो केंद्र थे एक डेनमार्क और दूसरा भारत। भारत में अपनी जड़ें जमाने के लिए हेडली ने मुंबई में तहव्वुर राणा की फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज की यूनिट शुरू की और उसके साथ अपनी एक ट्रैवल एजेंसी भी स्थापित की।

ट्रेवल एजेन्सी के माध्यम से वह और उसके एजेन्ट भारत में सरलता से घूमने लगे। हेडली की हर यात्रा के बाद भारत में कोई न कोई बड़ी आतंकी घटना घटी। हेडली लश्कर-ए-तैयबा की योजनानुसार अन्य देशों में आतंकी घटनाओं की तैयारी में जुटा रहा। उस पर कोपेनहेगन के डेनिश समाचार पत्र ‘जाइलान्ड्स पोस्टेन’ के कार्यालय पर हमले की योजना बनाने का भी आरोप लगा। हेडली 2009 में शिकागो के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार हुआ। उस पर मुंबई हमलों में सहभागी होने का भी मुकदमा चला। उसने अमेरिकी विशेष अदालत में मुंबई हमले के पीछे अपनी सहभागिता स्वीकार की और बताया कि पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आईएसआई ने यह हमला कराया। डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी ने अमेरिकी अदालत को यह भी बताया था कि वह हमलों से पहले आठ बार भारत गया था। मुंबई हमले के लिए स्थानों की रेकी, इनके चित्र और मानचित्र सभी उसकी टीम ने बनाए थे। इसके बाद लश्कर ने मुंबई पर इस आतंकी हमले की योजना बनाई। 24 जनवरी, 2013 को अमेरिकी न्यायालय ने हेडली को सजा सुनाई। हेडली अभी जेल में है।

आतंकवाद और पाकिस्तान

26/11 आतंकी हमले में पाकिस्तानी संबंध किसी से छिपा नहीं है। अमेरिकी गुप्तचर संस्था ने भी पाकिस्तान कनेक्शन खोज लिया था। अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण ही पाकिस्तान को भी यह स्वीकार करना पड़ा था कि हमलावर पाकिस्तानी नागरिक थे। पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने 12 फरवरी, 2009 को बाकायदा एक पत्रकार वार्ता में स्वीकार किया था कि 26/12 के हमलावर पाकिस्तान से ही भारत गए थे। उन्होंने यह भी बताया था कि पाकिस्तान के ही जावेद इकबाल ने हमलावरों को वीओआईपी फोन उपलब्ध कराया था और हमद अमीन सादिक ने धन की व्यवस्था की थी।

हमलावर कराची से जिस नाव पर सवार होकर निकले थे, वह बलूचिस्तान की थी। उनके अनुसार हमलावर थाटा, सिंध के समुद्री रास्ते मुम्बई पहुंचे थे। इसके बाद 21 नवंबर, 2009 को ब्रेशिया, इटली में दो पाकिस्तानी नागरिक गिरफ्तार हुए, उन्होंने स्वीकार किया कि 26/11 के हमलावरों को हथियार उन्होंने उपलब्ध कराए थे। ये दोनों भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घटनाओं से जुड़े थे और इंटरपोल ने उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। अक्तूबर, 2009 में एफबीआई ने डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी और तहव्वुर हुसैन राणा को गिरफ्तार भी कर लिया था। इन दोनों ने मुंबई हमले में अपनी सहभागिता भी स्वीकार कर ली थी। अदालत ने तहव्वुर को 14 वर्ष और हेडली को 34 वर्ष की सजा सुनाई।

फर्जी ‘भगवा आतंकवाद’

मुंबई हमले के बाद भारत में कुछ राजनेता, कुछ पत्रकार और छद्म सेकुलर समूह पाकिस्तान को क्लीनचिट देने और इसे ‘भगवा आतंकवाद’ से जोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का षड्यंत्र रचने लगे। आतंकवादी अजमल कसाब के हाथ में कलावा बंधा था। उसके पहचान पत्र में उसका नाम ‘समीर दिनेश चौधरी’ और पता 254, टीचर्स कॉलोनी, नगराभावी, बेंगलुरु लिखा था। अकेले कसाब ही नहीं, सभी आतंकवादियों के हाथ में कलावा बंधा था और सबके पास अपने पहचान पत्र हिन्दू नाम से थे। इस तैयारी से यह स्पष्ट है कि यह आतंकवादी हमला जितना भीषण था उतना ही कुटिल षड्यंत्र भी। कोई उस कुटिलता की कल्पना भी नहीं कर सकता जिसपर ये आतंकवादी काम कर रहे थे।

175 निर्दोष भारतीय नागरिकों के ये हत्यारे पाकिस्तान को आतंकवादी आरोपों से मुक्तकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी करके आए थे। इन आतंकवादियों को नाव से उतरते हुए मुम्बई के कुछ मछुआरों ने देखा था। पांच-छह आतंकवादियों के कंधे पर भगवा दुपट्टा भी पड़ा था। यदि सिपाही तुकाराम अपने प्राणों का बलिदान देकर कसाब को जीवित न पकड़ते तो पाकिस्तान को क्लीनचिट मिल ही जाती। यदि कसाब मारा जाता तो ‘भगवा आतंकवाद’ का नारा आसमान तक गूंज जाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का षड्यंत्र और गहरा होता।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का यह षड्यंत्र 2002 में गोधरा कांड के बाद आरंभ हुआ था। गोधरा में कारसेवकों को घेरकर मारने वाली वह हजारों की भीड़ कौन थी, उसकी हजारों तस्वीरें थीं, फिर भी ‘भगवा आतंकवाद’ का नारा उछालकर गुजरात के दंगों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का कुचक्र हुआ। इसे समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट में भी दोहराया गया और मालेगांव विस्फोट के बाद तो केंद्र और राज्य सरकार के कूछ सूत्र भी जुड़े और कूटरचित प्रमाण भी जुटाए गए। इस प्रयास में कांग्रेस के कुछ नेता, कुछ पत्रकार और छद्म सेकुलर बुद्धिजीवियों का एक समूह था। कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह और एक उर्दू पत्रकार अजीज बर्नी इसके अगुआ थे। अजीज बर्नी उन दिनों दिल्ली के एक उर्दू समाचारपत्र के संपादक था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाते हुए ‘भगवा आतंकवाद’ पर उसने कई लेख लिखे। इनमें गोधरा कांड और गुजरात के दंगों का भी हवाला था, बर्नी यहीं तक नहीं रुका। कसाब के जीवित पकड़े जाने के बाद भी उसकी धारा नहीं बदली। वह लगातार लेख लिखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा करता रहा। बाद में उसके लेखों के संकलन के रूप में पुस्तक भी प्रकाशित हुई। इस पुस्तक का विमोचन दिल्ली और मुंबई दो स्थानों पर हुआ। दोनों आयोजन में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह उपस्थित थे। अजीज बर्नी ने पुस्तक की प्रति हेमन्त करकरे की पत्नी को भी भेंट की। हेमन्त करकरे पुलिस अधिकारी थे। वे मुम्बई के इसी आतंकवादी हमले में मारे गए थे। हेमन्त करकरे ने ही मालेगांव विस्फोट की जांच की थी। उन पर साध्वी प्रज्ञा भारती ने झूठे सबूत गढ़ने और अमानुषिक यातनाएं देकर कागजों पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगाया था।

26/11 हमले पर अजीज बर्नी के लेखों के संकलन वाली इस पुस्तक का नाम- ‘आरएसएस की साजिश : 26/11 था। इस पुस्तक में बर्नी ने यह भी लिखा है कि हेमन्त करकरे की मौत आतंकवादियों की गोली से नहीं, अपितु सुरक्षाबलों की गोली से हुई। बर्नी ने यह भी दावा किया कि ‘इस हमले के पीछे आईएसआई या लश्कर नहीं, बल्कि मोसाद और सीआईए के गुप्त समर्थन से आरएसएस था।’ सामान्यतया किसी पुस्तक का विमोचन एक बार होता है, लेकिन इसका दो बार हुआ।

पहले लगातार लेख लिखना और फिर उन्हें पुस्तक का आकार देकर प्रचार के लिए पूरी शक्ति लगा देने से इसके उदेश्य को समझा जा सकता है। ये लेख और यह पुस्तक केवल पाकिस्तान की करतूतों पर परदा डालने तक ही सीमित नहीं थी। इसमें तो आतंकवादियों को भी ‘क्लीन चिट’ देने की झलक है। लेकिन कसाब के जिन्दा पकड़े जाने से आतंकी हमले का सच सामने आ गया। यदि कसाब जीवित न पकड़ा जाता तो पुनः कुछ लोगों को फंसाने का कुचक्र एक बार फिर चलता जैसा मालेगांव विस्फोट के बाद हुआ था।

दुनिया भर की जांच में यह तो आईने की तरह स्पष्ट है कि 26/11 के मुम्बई हमले के पीछे पाकिस्तान और आईएसआई का षड्यंत्र था। आईएसआई और लश्कर के निर्देशन में हुए इस भीषण आतंकी हमले और सभी दस आतंकवादियों को हिन्दू नाम के पहचान-पत्र, कलावा एवं कुछ को भगवे दुपट्टे में भेजने का मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा ही है।

उससे पूछताछ में यह स्पष्ट होने की आशा है कि भारत के कुछ राजनेताओं और बुद्धिजीवियों द्वारा आतंकी घटनाओं को ‘भगवा आतंकवाद’ में लपेटने की रणनीति केवल संयोग है अथवा इसका भी कोई पाकिस्तानी कनेक्शन है ताकि भारत के लोग आपस में उलझते रहें और पाकिस्तान निश्चिंत होकर भारत में अपनी आतंकी गतिविधियां चलाता रहे। तहव्वुर से पूछताछ में इस प्रश्न के समाधान के साथ दो और प्रश्नों के समाधान की आशा है। पाकिस्तान के अनुसार ये आतंकवादी सिंध के समुद्री मार्ग से भारत आये थे। तब भारतीय सीमा में आने के बाद मुम्बई पोर्ट पर पहुंचाने वाल सहयोगी कौन थे।

दूसरा प्रश्न यह है कि मुंबई पर हुए इस हमले के लिये कुल 26 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया था। 26 लोगों को प्रशिक्षण की बात पाकिस्तानी जांच एजेंसी आईएसआई के पूर्व महानिदेशक तारिक़ खोसा ने मार्च 2015 में कही थी जो पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र डॉन में प्रकाशित भी हुई थी। उनके अनुसार ‘थाटा’ नामक स्थान में हमलावरों को प्रशिक्षित किया गया था। मुंबई केवल दस आये तो अन्य सोलह लोगों को क्या दायित्व दिया गया था और इस समय वे कहां हैं। तहव्वुर राणा साधारण व्यक्ति नहीं है। उससे सच उगलवाना भी सरल नहीं है, फिर भी पूछताछ में इन प्रश्नों के समाधान की उम्मीद तो की ही जा सकती है।

मोदी सरकार की सफलता

इस समय मुम्बई हमले को सत्रह वर्ष होने वाले हैं। कसाब के जिन्दा पकड़े जाने से संदिग्धों के नाम भी सामने आ गए थे, जिनमें तहव्वुर राणा और हेडली भी थे। भारत और अमेरिका के बीच यह प्रत्यावर्तन संधि 1997 में हुई थी। लेकिन तहव्वुर को भारत लाने में सत्रह वर्ष लगे। मुम्बई पर जब आतंकवादी हमला हुआ तब केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। तब कांग्रेस के प्रमुख नेता आतंकवादी हमलों को ‘भगवा आतंकवाद’ में लपेटने का अभियान चला रहे थे। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद भारत सरकार ने वांछित आरोपियों को भारत सौंपने का अभियान चलाया। संकेत मिले हैं कि भारत ने लगभग पचास से ऊपर आरोपियों को सौंपने के लिये पत्र लिखे। लेकिन हाल ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बातचीत के बाद यह मार्ग निकल सका।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान दस कुख्यात अपराधियों और आतंकवादियों को भारत सौंपने पर चर्चा की है। इनमें गोल्डी बरार और अनमोल बिश्नोई भी शामिल हैं, जिनके अमेरिका में छिपे होने की आशंका है। संकेत हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मुंबई आतंकी हमलों के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यावर्तन के साथ कुछ अन्य को भेजने पर अपनी सहमति दे दी है। तहव्वुर राणा को अपने अधिकार में लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समस्त देशवासियों को यह संदेश दे दिया है कि आतंकवाद भले कितना पुराना हो, वह भूलने का नहीं और दुष्टों को उनकी दुष्टता का दंड देने केलिये सदैव तैयार रहना चाहिए। अब हमें यह आशा भी रखने चाहिए कि हेडली सहित भारत के अन्य अपराधियों को भी उनके किए का दंड मिलेगा।

Topics: तहव्वुर राणा और हेडलीआतंकवादी कसाबलश्कर-ए-तोयबादाऊद गिलानी उर्फ डेविडमालेगांव विस्फोटराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीपाञ्चजन्य विशेषभगवा आतंकवाद26/11 मुम्बई आतंकी हमला
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