जिन्ना के देश के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार बड़ी उम्मीदें लेकर अफगानिस्तान गए थे कि तालिबान को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अथवा टीटीपी पर लगाम लगाने के लिए राजी कर लेंगे। लेकिन हुआ उलटा। तालिबान ने खुद को इस पचड़े से अलग ही नहीं किया बल्कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के विरुद्ध पाकिस्तानी मंत्री की एक नहीं सुनी। लेकिन डार की इस काबुल यात्रा ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों में आए तनाव को एक बार फिर उजागर कर दिया। डार का यह दौरा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के मुद्दे पर चली आ रही हिंसक तकरार को सुलझाने की बजाय और उलझा ही गया है। पाकिस्तान की अफगानिस्तानी लड़ाका हुकूमत से टीटीपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को तालिबान ने हंसी में उड़ाकर जिन्ना के देश का मखौल ही उड़ाया।
पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने काबुल जाकर अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद के साथ ही कई अन्य शीर्ष तालिबान नेताओं से बात की। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) न सही, डार ने लाज बचाने को सुरक्षा, व्यापार और सीमा प्रबंधन जैसे मुद्दों को सामने रख दिया और उन पर ‘गंभीर’ चर्चा की। लेकिन सूत्रों के अनुसार, उन्होंने जैसे ही टीटीपी का जिक्र किया, वैसे ही तालिबान ने पाकिस्तान के उस अनुरोध को खारिज कर दिया कि टीटीपी को जिन्ना के देश की नाक में दम करने से बाज आने को कहें। तालिबान ने बेलाग अंदाज में कहा कि वह टीटीपी के आतंकियों पर किसी तरह की सख्ती बरतने के लिए तैयार नहीं है।

यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि टीटीपी का मुद्दा पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह संगठन पाकिस्तान के खिलाफ अफगान धरती का इस्तेमाल करता है और आतंकवादी हमलों को अंजाम देता है। पाकिस्तान ने तालिबान सरकार से कहा कि टीटीपी समस्या के समाधान के बिना सहयोग की गुंजाइश कम ही होगी। इसके बावजूद, तालिबान ने इस पर कोई ठोस कदम उठाने से इनकार कर दिया।
जिन्ना के देश के खिसियाए विदेश विभाग ने विज्ञप्ति जारी करके यह जताने की कोशिश की कि डार का यह दौरा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार और अन्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर था। दावा किया कि इस यात्रा से व्यापार और अन्य क्षेत्रों में बड़ी ‘कामयाबी’ मिली है। लेकिन विदेश विभाग असल बात छुपा गया कि तालिबान ने टीटीपी के मुद्दे पर डार को दो टूक जवाब दिया है।
दिलचस्प बात है कि पिछले दिनों तोरखम और अन्य सीमाओं पर दोनों देशों के बीच तलवारें खिंची हुई थीं। तोरखम पर तालिबान अपनी चौकी बना रहा था जिसे पाकिस्तान अपना इलाका मानते हुए संप्रभुता का उल्लंघन कह रहा था। लेकिन अंतत: तालिबान ने तोरखम सीमा पर अपने कब्जे की मुनादी कर दी थी और पाकिस्तान के फौजियों को गोलियों की बौछारें करके वहां से जान बचाकर भागने को विवश कर दिया था। एकबारगी तो लगा था कि तालिबान जिन्ना के देश पर हमला करके उसे मसल न दे।
विदेश मंत्री डार इस दौरे से दोनों देशों के बीच चले आ रहे तनाव को कम करने की उम्मीदें बांधे थे। लेकिन टीटीपी को लेकर कोई ठोस समाधान न होने से दौरा बेदम ही कहा जा सकता है। कहना न होगा कि तालिबान के इस रुख ने पाकिस्तान के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। साफ है कि दोनों देशों के बीच तनातनी के हाल—फिलहाल दूर होने के आसार नजर नहीं हैं।
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